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Madhu Vashishta

Action Inspirational

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Madhu Vashishta

Action Inspirational

भूरा रंग (प्रकृति औरनिर्भरता)

भूरा रंग (प्रकृति औरनिर्भरता)

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अब आंटी ऐसी हो गई हैं! अगर तुमने पहले देखा होता ना तो तुम मान नहीं सकती थी। इतनी एक्टिव और इतने अच्छे-अच्छे ड्रेसेस पहनती थी कि पूछो ही मत। माधुरी पास में रहने वाली अपनी ननद गीता को बोलती हुई जा रही थी। भावना जी के कानों में आवाज आई और कमरे में जा कर आईने के सामने उन्होंने खुद पर सरसरी सी निगाह डाली और वास्तव में हैरान रह गई। बिखरे बिखरे से बाल, बिना इस्त्री करा हुआ और घिसा हुआ 15 साल पुराना सूट, ना माथे पर बिंदी और ना ही बालों में सिंदूर। सूना सूना गला और कान में छोटे से टॉप्स। बेडौल सी, यह क्या हालत बना ली थी उन्होंने।

अभी 5 साल पुरानी ही तो बात है वह स्कूल में वाइस प्रिंसिपल थी। रिटायरमेंट के समय पिंक साड़ी पहने हुए वह गजब की खूबसूरत लग रही थी। पूरी जिंदगी अनुशासित ही रही। सुबह 4:00 बजे उठकर घर का सारा काम सिस्टम से निपटा कर, राहुल और गगन को तैयार करके लंच पैक कर के वह अपने स्कूल जाती थी। घर का सारा काम करने के बावजूद भी उनपर सूती कलफ लगी हुई साड़ी बहुत फबती थी। घर में बहू से दादी तक का सफर और स्कूल में टीचर से वाइस प्रिंसिपल तक का सफर उनकी उम्र का कुछ नहीं बिगाड़ पाया था। रिटायरमेंट के समय भी वह बेहद चुस्त और खूबसूरत लगती थी।

रिटायरमेंट तक उनके दोनों बेटों का विवाह हो चुका था और दोनों के चारों बच्चे भी स्कूल में दाखिले के लिए तैयार ही थे क्योंकि उनकी एक बहू स्कूल में और एक दफ्तर में नौकरी करती थी तो घर के काम के लिए बाद में उन्होंने एक फुल टाइम मेड भी रख ली थी। जो बच्चों को और वर्मा जी को समय पर खाना बना कर दिया करती थी। प्रिंसिपल बनने के बाद भावना जी की व्यस्तताएं बढ़ गई थी क्योंकि घर में बहुएं भी वर्किंग ही थी तो क्रमशः धोबन और घर की सफाई के लिए अलग मेड लगा ली गई थी।

रिटायरमेंट के बाद भावना जी की व्यस्तताएं भी खत्म हो गई थी और घर के हर काम करने के लिए मेड तो थी ही, भावना जी को जल्दी उठने की जरूरत ना होती। छोटे-मोटे काम भी और बच्चे कर दिया करते थे। हालांकि उनकी साड़ियां तो वही थी लेकिन अब उनमें वह कलफ नहीं लगाती थी। उन्होंने घर में भी काम करना बिल्कुल छोड़ दिया था। उन्हें लगता था कि वह जीवन में बहुत काम कर चुकी हैं और अब उन्हें सिर्फ आराम ही करना चाहिए। अपने शरीर के बढ़ते भार को, शुगर और बीपी को भी उन्होंने नजरंदाज कर दिया था। अब तो किसी के विवाह आदि के न्यौते में जाने के लिए भी वह बहुओं को ही भेज देती थी।

जब से पेंशन का एटीएम का कार्ड बना तो उन्हें बैंक जाने की भी जरूरत नहीं होती थी क्योंकि सारे वस्त्र भी टाइट हो रहे थे तो उन्होंने गर्मियों में अपने पुराने घिसे सूट / गाउन ही आरामदायक लगते थे। पूरा दिन एसी और टीवी के सामने बैठकर अलसाई रहने के अलावा और कोई काम नहीं था।

यह तो 2 दिन पहले बड़ी बहू की छोटी बहन माधुरी जो कि उनके रहन-सहन के ढंग से बहुत ज्यादा प्रभावित रहती थी अब के उन्हें देख हैरान होकर भावना जी से बार-बार यही पूछती रही कि आंटी आपको हो क्या गया, उम्र तो आपके लिए एक नंबर थी और अब -----? वापस जाते हुए जब माधुरी अपनी ननद गीता को भावना जी के बारे में बता रही थी तो वह खुद हैरान हो उठी। वास्तव में वह बेहद वृद्ध लग रही थी।

उसके बाद उन्होंने टीवी ना देख कर अपने बालों को डाई लगाई। अपनी कॉटन की साड़ी में कलफ लगाया। सुबह सवेरे जब वर्मा जी सैर के लिए जा रहे थे तो भावना जी भी उनके साथ आ खड़ी हुई और बोली अब से मैं भी तुम्हारे साथ ही जाऊंगी। जबसे वर्मा जी के दोनों बेटों ने फैक्ट्री का काम संभाल लिया था तो वर्मा जी ने अपने आपको अपने मित्रों और सीनियर सिटीजन क्लब में व्यस्त कर लिया था। फैक्ट्री तो वह कभी कभार ही जाते थे। अब जब भावना जी ने भी साथ चलने को कहा तो उन्हें बहुत खुशी हुई। कुछ दिनों की सैर और योगा से ही भावना जी में बेहद कॉन्फिडेंस और बहुत फर्क आ गया था। अब फिर से उनके कपड़े इस्त्री करे हुए और बेहद सलीके से होने लगे थे। अपना ख्याल रखने के कारण अब उनका बीपी शुगर भी कंट्रोल में ही रहता था।

आज माधुरी जब दोबारा से घर में आई तो भावना जी को देख कर फिर से हैरान होकर वाली आंटी आपने कोई एंटी एजिंग क्रीम लगाई क्या? हंसते हुए भावना जी बोली तुम ही तो हो मेरी एंटी एजिंग क्रीम। अब बताओ अब मैं तुम्हारी पुरानी वाली आंटी लग रही हूं या नहीं?

कूल!! ग्रेट!! वर्मा जी भी हंसते-हंसते बोले माधुरी तुमने तो जादू ही कर दिया था, अब तो हम दोनों भी अच्छे साथी बन गए हैं। यह तो घर से बाहर ही नहीं निकलती थी लेकिन अब हम दोनों साथ घूमते हैं। आज सीनियर सिटीजन क्लब में इनका प्रोग्राम भी है। शाम को घर के सब बच्चों के साथ तुम भी आना। आज हमारे क्लब के बहुत सारे प्रोग्राम की यह ऑर्गेनाइजर भी है।

पाठकगण, लोग एकदम सही कहते हैं मन के हारे हार है मन के जीते जीत। उम्र सिर्फ एक नंबर है और यह तुम्हारी सोच पर ही निर्भर करता है कि तुम जिंदगी कैसे बिताओगे? 


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