Sangeeta Aggarwal

Inspirational

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Sangeeta Aggarwal

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भूल सुधार

भूल सुधार

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कुछ फैसले जिंदगी पर बहुत भारी पड़ते हैं ये बात श्याम लाल जी को आज समझ आई जब विवाहित बेटी विधवा बन घर आकर बैठ गई । कितना कहा था श्रुति बेटा ने उसे पढ़ना है पर नही तब ऊँचे खानदान से रिश्ता आने के गुमान मे किसी की नही सुनी।सोचते- सोचते श्याम लाल जी अतीत मे चले गए।।! 


" सुनो श्रुति की माँ राम बाबू ने अपनी श्रुति बिटिया के लिए बहुत बड़े खानदान का रिश्ता बताया है।लड़के वालो का करोड़ों का घर, व्यापार है!" एक दिन श्याम बाबू अपनी पत्नी रमा जी से बोले।


" अरे पर अभी तो श्रुति पढ़ रही।उमर भी क्या है उसकी कुल 20 अभी क्या जल्दी है शादी की 2-3 साल रुक जाओ।इतने पढ़ाई भी पूरी हो जायेगी और बिटिया अपने पैरों पर खड़ी हो सियानी भी हो जायेगी!" रमा जी ने कहा।


" इतने अच्छे रिश्ते पेड़ पर नही उगते श्रुति की माँ जो तोड़े और कर दिया ब्याह।तुम तैयारी करो बस अपनी श्रुति राज करेगी वहाँ!" श्याम लाल जी बोले।


श्यामलाल जी के आगे किसी की एक ना चली और श्रुति का रिश्ता कर दिया गया।बड़ा खानदान देख ना तो ज्यादा पड़ताल की गई और दान- दहेज भी भर भर दिया।


" बाबूजी।इससे अच्छा ये पैसा मेरी पढ़ाई मे लगा देते तो मैं अपने पैरों पर तो खड़ी हो जाती!" एक दिन श्रुति ने श्यामलाल जी से हिम्मत करके कहा।


" बेटा तेरा दुश्मन नही हूँ मैं तू वहाँ राज करेगी राज।।!" ये बोल श्यामलाल जी काम मे लग गए। 


श्रुति गौतम की दुल्हन बन ससुराल के लिए विदा हो गई।।शुरु मे सब अच्छा था पर जैसे ही एक साल बाद श्रुति के बेटी हुई सबके रंग ढंग बदल गए।अब श्रुति की उस घर मे एक नौकरानी की हैसियत रह गई।क्योंकि श्रुति की सास और दोनो जेठानियों के कोई लड़की नही थी तो घर मे उनकी ही चलती थी।।फिर भी श्रुति अपनी बेटी के लिए सब सह रही थी।


अचानक एक दिन उसपर वज्रपात हुआ।फैक्टरी से घर आते मे एक्सीडेंट मे गौतम चल बसा। और श्रुति शादी के दो साल बाद ही विधवा हो गई।

उसके ससुराल वालों ने श्रुति को ये कहते हुए निकाल दिया कि जब बेटा नही रहा तो हम दो- दो का बोझ क्यों उठाएं।मजबूरन श्यामलाल जी को श्रुति और उसकी बेटी को घर लाना पड़ा।


आज श्यामलाल जी को अफसोस था कि दो साल पहले बेटी की शादी न कर उसे पढाया होता तो ये सब ना होता।। 


" अजी क्या सोच रहे हो!" अचानक रमा जी की आवाज़ सुन श्यामलाल जी जैसे नींद से जागे हों।


" क्या क्या कह रही थी तुम!" 


" क्या हुआ बैठे बैठे सो गए थे क्या !" रमा जी बोली।


" सो तो 2 साल से रहा था मैं श्रुति की माँ अब तो जगने का वक़्त आया है!" श्यामलाल जी बोले।


" कैसी बातें कर रहे हो आप।!" 


" सच बोल रहा हूँ मैं।श्रुति बेटा ओ श्रुति बेटा!" श्यामलाल जी ने श्रुति को आवाज़ दी।


" जी बाबूजी !" श्रुति बेटी को गोद मे लिए आई। 


" ला बुलबुल को मुझे दे रमा,इसे सम्भाल आज से इसकी जिम्मेदारी तुम्हारी है!" श्यामलाल बच्ची को रमा जी को देते हुए बोले।


श्रुति और रमा जी हैरानी से श्यामलाल जी को देखने लगे।


" क्या देख रही हो तुम दोनो मुझे,माना दो साल पहले मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई जो श्रुति की पढ़ाई छुड़ा इसका ब्याह कर दिया पर अभी भी देर ना हुई है।श्रुति तू तैयार हो।अभी हम कॉलेज जायेंगे और तेरी रुकी पढ़ाई फिर से चालू कराएंगे,मेरी बेटी अपने पैरों पर खड़ी होगी। किसी पर बोझ नही होगी मेरी बेटी!" श्यामलाल जी बोले।


" बाबूजी " श्रुति बस इतना बोली और रो पड़ी।


" ना मेरी बच्ची तेरे इन आंसुओं का जिम्मेदार मैं हूँ।मुझे माफ कर दे!" श्यामलाल जी हाथ जोड़ते हुए बोले।


" नही बाबूजी।ये मेरी किस्मत थी!" श्रुति बाप के गले लग बोली।


" नही तेरी किस्मत तू खुद बनायेगी अब जितना चाहे उतना पढेगी और नौकरी करेगी।ना तू किसी ससुराल वालों के भरोसे रहेगी ना भाई के तू चल मेरे साथ रही बच्ची की बात उसके लिए मैं और तेरी माँ है!" श्यामलाल जी बोले।


दोस्तों कुछ माँ बाप बेटी का रिश्ता ऊँचे खानदान मे करने को उसके सपने भी मार देते और जब ऐसा कुछ होता तो अफसोस करते।।जीना मरना किसी के हाथ मे नही।।पर अपनी बेटियों को लायक बनाना तो हमारे हाथ है तो उनकी शादी की चिंता ना करते हुए उनकी पढ़ाई की चिंता करो जिससे कल को कोई बेटी श्रुति की तरह दुख ना उठाये।



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