भूल का एहसास
भूल का एहसास
आकांक्षा कमरे में बैठी जार जार रो रही थी। सूने पड़े घर में उसकी आवाज गूंज रही थी ।आज जो भी हुआ उसकी जिम्मेदार भी तो वह खुद ही है,अतुल उसे छोड़कर हमेशा के लिए जा चुका है,अब पछताने के लिए कुछ भी नहीं नहीं रह गया है,वो अपने आप पर ही नाराज हो रही है, आखिर क्यों वह अतुल के इतने करीब आई जबकि उसे पता था कि वह शादीशुदा और चार बच्चों का पिता है! भले ही अपनी पत्नी के साथ उसके रिश्ते जैसे भी हों लेकिन बच्चों को बहुत चाहता है,ना जाने क्या कशिश थी उसमें जो उसकी तरफ मैं खींचती ही चली गई, आकांक्षा ने सोचा, आगे पीछे कुछ भी सोचे बिना एक अंजाने डोर में उस संग बंधती ही चली गई, मर्दों का क्या है उन्हें तो बस नए-नए फूलों की तलाश होती है,हम लड़कियों को ही मर्यादा में रहना चाहिए, माँ भी तो यही कहती थी, अभी माँ की बहुत याद आ रही है, काश तुम यहाँ होती तो आज मुझे सही गलत का फर्क सीखा देती, माँ तुम क्यों चली गई मुझे छोड़ कर, माँ को याद करके आकांक्षा एक और बार फफक पड़ी।
जी भर कर रो लेने के बाद उसका जी कुछ हलका हो गया, उसे भूख लग आई, उठ कर रसोई में गई एक कप कॉफी और थोड़ी सी भूनी मूँगफली लेकर आई,अब उसे कुछ बेहतर महसूस हुआ उसने सोचा चलो जो भी हुआ अच्छा ही है ,अब जल्दी से किसी पर भी आँखें मूँदकर भरोसा नहीं करूँगी ,अच्छा हुआ समय रहते कम से कम अतुल संभल गया और चला गया।मेरे पास तो पूरा समय है एक अच्छा इंसान मिल ही जाएगा,अगर कोई ना भी मिला तो अपना ध्यान मैं खुद ही रख सकती हूँ, जो भी हुआ वह ठीक ही है,वरना अपनी ही नजरों में गिर कर फिर से उठ पाना मुश्किल हो जाता, आईने में खुद को देखते भी शर्म आती,अतुल की पत्नी और बच्चों का भविष्य बरबाद होने से बच गया साथ ही उसके एक कदम से मेरा भविष्य भी बच गया।
और आकांक्षा एक नई सुबह का इंतजार करने लगी। ।