बहू बनना है या बेटी ??
बहू बनना है या बेटी ??
"कामिनी.. जीजी का फोन आया था जो रिश्ता उन्होंने बताया था उन्हें हमारी कृतिका की फोटो पसंद आई है अब वो मिलना चाहते हैं हमसे !" विशाल जी घर आ अपनी पत्नी से बोले।
" ये तो बहुत अच्छी बात है ..कब आना चाहते वो!" कामिनी जी खुश होते हुए बोली।
" परसों रविवार का दिन रखा है उन्होंने जीजी भी आ जाएंगी .. तुम सब तैयारी अच्छे से कर लेना कोई कमी ना रहे ।" विशाल जी बोले।
" आप फिक्र मत कीजिए सब हो जाएगा !" कामिनी जी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा।
कामिनी जी और विशाल जी के दो बच्चे है छोटा किंशुक जो बी.टेक कर रहा है बड़ी कृतिका जो एम.बी.ए. करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करती है । क्योंकि कृतिका छब्बीस साल की हो गई तो उसकी बुआ यानी विशाल जी की बहन ने एक रिश्ता बताया था जिसकी बात विशाल जी कर रहे हैं।
तय समय पर लड़के वाले आए... उनकी आवभगत अच्छे से की गई।
" देखिए विशाल जी हमे कृतिका बेटी वैसे तो बहुत पसंद आई हमारे बेटे क्षितिज को भी पसंद है.. पर हम उससे और आप सबसे रूबरू मिलना चाहते थे जिससे कोई फैसला ले सकें।" लड़के के पिता देवराज जी बोले।
" जी बिल्कुल .. आपने बिल्कुल सही किया वैसे भी शादी ब्याह के मामले में बहुत सोच - समझ कर चलना चाहिए।" विशाल जी बोले।
" तो आप बुलाइए बिटिया को हम सब उससे मिलने को उत्सुक हैं!" लड़के की मां सरिका जी बोली।
" कामिनी जाओ कृतिका को ले आओ!" विशाल जी बोले।
" हां तो कृतिका बेटा आपके क्या शौक हैं!" कृतिका के आने पर सरिका जी ने पूछा।
" आंटीजी ज्यादा नहीं बस मुझे लिखना पसंद है घर सजाने का शौक तो बचपन से है मुझे साथ ही थोड़ा बहुत घूमने का !" कृतिका ने बिना हिचक जवाब दिया।
" बहुत अच्छा बेटे घूमने का शौक तो हमारे क्षितिज को भी है ... तुम कुछ पूछना चाहती हो हमसे ?" देवराज जी बोले।
" जी अंकल मैं.... क्या!" कृतिका अपने मां पापा को देखते हुए बोली।
" हां बेटा तुम्हे भी हक है सब जानने का तो जो पूछना या कहना चाहती हो बेहिचक कहो!" सरिका जी बोली।
" जी आंटी जी बस एक बात कहनी है मुझे शादी के बाद मैं जॉब नहीं छोड़ूंगी !" कृतिका आत्मविश्वास से बोली।
" छोड़नी भी नहीं चाहिए ... तुमने इतनी मेहनत की है यहां तक पहुंचने में तो तुम्हे पूरा हक है अपनी जॉब का फैसला लेने का क्यों मम्मा पापा !" इस बार क्षितिज बोला।
" बिल्कुल बेटा !" देवराज जी बोले।
" बेटा कृतिका तुम्हे क्षितिज से कुछ पूछना हो तो तुम पूछ सकती हो यहां नहीं तो अंदर चले जाओ चाहे तो !" सरिका जी बोली।
" नहीं आंटीजी ऐसा कुछ नहीं है हां क्षितिज जी को मुझसे कुछ पूछना हो वो पूछ सकते हैं!" कृतिका ने जवाब दिया।
" कृतिका आपके इस आत्मविश्वास को देख मुझे कुछ नहीं पूछना बाकी जो कुछ है मम्मा पापा डिसाइड करेगे!" क्षितिज ने जवाब दिया।
" लो जी बच्चों ने तो मोहर लगा दी अब आप लोग बताइए क्योंकि हमारी तरफ से तो आप हां ही समझाइए ... हमारी कृतिका आपके घर बेटी बनके रहेगी ऐसा हमें यकीन है !" कृतिका की बुआ सुधा जी बोली।
" माफ़ कीजियेगा सुधा जी पर हम कृतिका को बहू बनाने आए हैं ... बेटी बनना उसके हाथ में है !" सरिका जी बोली।
" जी.... हम कुछ समझे नहीं !" कामिनी जी बोली।
" देखिए गुंजन हमारी बेटी है इसे गलत बात पर मैं डांटती भी हूं और रोकती भी हूं .... जैसा कि हर मां अपनी बेटी के साथ करती आप भी कृतिका के साथ करती होंगी ?" सरिका जी ये बोल कामिनी जी को देखने लगी।
" जी बिल्कुल ग़लत बात पर तो हर मां बाप टोकते ही हैं क्योंकि मां बाप से बड़े शुभचिंतक बच्चों के कोई नहीं होते!" कामिनी जी ने कहा।
" जी बिल्कुल सही कहा आपने ... पर आजकल की लड़कियां मां की डांट बर्दाश्त कर लेती पर सास का समझाना उन्हें बुरा लगता ... पर अगर हम बेटी बना कर बहू को लेकर जाएंगे तो बेटी जैसे ही उसे लाड़ करेगे तो डांटेंगे भी क्यों कृतिका बेटा ....और अगर बहू लेकर जाएंगे तो लाड़ तो लड़ाएंगे पर वो रिश्ता नहीं बन पाएगा जो मेरा गुंजन के और आपका कृतिका के साथ है। इसलिए मैने कहा कि हम बहू लेकर जाएंगे बेटी बनना कृतिका के हाथ में है क्योंकि ताली दोनों हाथ से बजती है मैं मां तभी बनूंगी जब कृतिका बेटी बनना चाहेगी !" सरिका जी ने हंसते हुए कहा।
" सच में सरिका जी अपने बहुत अच्छी बात कही बेटी बनाने का मतलब सिर्फ बेटी की तरह आज़ादी ही नहीं बल्कि व्यवहार भी बेटी की तरह किया जाए तभी तो इस बात का सही मतलब निकलता है !" विशाल जी बोले।
" हां तो कृतिका बेटा अब तुम सोच लो तुम्हे बहू बनना है कि बेटी !" देवराज जी हंसते हुए बोले।
" आंटीजी क्या आप मुझे अपनी दूसरी बेटी बनाएंगी !" कृतिका सरिका जी के पास आ बोली।
" बिल्कुल बेटा पर आंटी नहीं मम्मा कहो !" सरिका जी कृतिका को गले लगाती हुई बोली।
" और पापा मम्मा मैं आपका दूसरा बेटा बनने को तैयार हूं!" क्षितिज कामिनी जी और विशाल जी से बोला।
" बेटा आपको तो हमने देखते ही अपना बेटा मान लिया था !" विशाल जी क्षितिज को गले लगाते हुए बोले।
" लो जी तो रिश्ता तो हो गया तय अब तो मुंह मीठा कराइए आप समधन जी !" देवराज जी कामिनी जी से बोले ।
" बिल्कुल भाई साहब ।" कामिनी जी ने सबको मिठाई दी।
विशाल जी ने देवराज जी को मिठाई खिला गले लगा लिया और सरिका जी ने कामिनी जी को ।
" हमारे परिवार में आपका स्वागत है भाभी बहुत जल्दी आपको बाजे गाजे के साथ ऑफिशियली अपना बनाकर ले जाएंगे हम क्यों भैया।" गुंजन कृतिका को गले लगाते हुए बोली।
गुंजन के ऐसा बोलने पर कृतिका और क्षितिज दोनों शर्मा गए और सभी हंस पड़े।
दोस्तों ये सच है बेटी सिर्फ कहने से नहीं बना जाता सास को मां सा मान दिया जाए और बहू को बेटी सा लाड़ तभी रिश्ते सार्थक होते। यहां सरिता जी की सोच बिल्कुल सही है मेरी नजर में .... और आपकी ??
