बहू-बेटी
बहू-बेटी
"अम्मा जी ओ ! अम्माजी, कहाँ हो?
"अरे! कमली, काहे गला फाड़ रही है। बहू से पैर दबवा रही थी। दिन भर घर की चौकसी करते कमर दुख रही है। बहू कहाँ देख पाती है सब । इसकी अम्मा ने इसे कुछ सिखाया ही कहाँ?"
"अम्माजी सुना है भूरी की सास भूरी से दिन भर सेवा करवाती है, फिर भी जली भुनी रहती है।"
हाय! मेरी फूल -सी बच्ची को उस पहाड़ जैसी औरत ने मजदूरिन बना दिया है।"
अरे! नाशपीटी तू क्या सुन रही है। जा मेरे लिए चाय बना फिर आकर पैर दबाना।" अपनी बहू से कहती है।
अम्माजी फिर सुड़क -सुड़क कर चाय गटकते हुए अपनी बहू से पैर दबवाते हुए अपनी पड़ोसन कमली से समधन की शिकायतें लगाए जा रही थी। वहीं दूसरी तरफ़ किसी की फूल जैसी बेटी की भावनाओं को मसलने का अहसास तक नहीं था।
