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dr Nitu Tated

Drama Inspirational Children

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dr Nitu Tated

Drama Inspirational Children

सुबह का भूला

सुबह का भूला

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"राजू ,राजू! जरा इधर आओ।"

माँ राजू को पुकार कर अपनी बाँहों में भर लेती है।

" देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाई हूँ?

"क्या है माँ?"

" आँखें बंद करो।"

"ये लो।" दोनों हाथों से अपनी आंखों को ढकते हुए कहता है ।

रोहिणी अपने हाथ में एक पैकेट खोलती है जो अखबार में लपेटा हुआ होता है और उसमें से एक चटक लाल रंग का शर्ट निकाल कर राजू के सामने रखती है।

" आँखें खोलो राजू !"

"अरे वाह! माँ, यह तो मेरा प्रिय रंग है। तुम हमेशा मेरे मन की बात कैसे जान लेती हो?

माँ मन ही मन खुश होती है। बस वह चाहती है कि वह कितने भी दुख झेले पर उसका बच्चा हमेशा खुश रहे। अपनी हर तनख़्वाह के पैसों से वह राजू के लिए कुछ न कुछ जरूर लाती है।

बस.... यहीं पर रोहिणी गलती कर जाती है। खुद घर-घर बर्तन मांज कर केवल दो साड़ी में ही अपनी पूरी जिंदगी निकाल देती है और औलाद के लिए न जाने क्या-क्या करती है।

पर राजू बड़ा होते-होते गलत संगत में पड़ जाता है। माँ से झूठ बोलकर सब पैसे उड़ाता है।

अरे! राजू पिछले सप्ताह ही तो दो हज़ार दिए थे न तुझे।"

"माँ! नई क्लास लगाई है। बहुत मेहनत कर रहा हूँ। तू मुझे बड़ा आदमी बनाना चाहती है न?"

"हाँ, हाँ बेटा! तू खूब पढ़ना और बड़ा आदमी बनना।"

एक दिन उसकी सहेली कमली जो उसी के साथ घर काम के लिए जाती है उस से मिलने आती है।

"रोहिणी! मदन बता रहा था राजू आज कल कक्षा से कई बार गायब रहता है।"

"क्या कह रही है कमली? वह तो मुझसे लगातार पैसे ले जा रहा है।"

"जरा नज़र रख उस पर...।" कमली सलाह देते हुए चली जाती है।

रोहिणी मन ही मन कुछ तय करती है।

"मैडम! मुझे सात दिन की छुट्टी चाहिए।" रोहिणी ने अपनी मालकिन रमोना से कहा।

"क्या हुआ? सब ठीक है न ! तुम तो कभी दो दिन की छुट्टी भी एक साथ नहीं लेती।" रमोना ने पूछा।

"कुछ बहुत जरूरी काम पूरा करना है जो अब तक पूरा नहीं किया ।"

"ठीक है जाओ। अपना ध्यान रखना। ये कुछ रुपये रख लो।" रमोना उसे 5 हज़ार देकर कहती है।

"धन्यवाद मैडम!"

रोहिणी सबसे पहले मोबाइल की दुकान पर जाकर एक सस्ता मोबाइल खरीदती है।

घर आकर पड़ोस की सोनू को बुलाकर फ़ोटो खींचना और वीडियो बनाना सीखती है। उसे थोड़ा तो उसकी मैडम ने अपने मोबाइल पर बताया ही था। झटपट सीख कर बाहर निकलती है और राजू की स्कूल पहुँचती है।

" नमस्ते! मास्टर जी , राजू आया क्या आज?"

"राजू तो बीमार है न? उसने 10 दिन की अर्जी दी हुई है।" मास्टरजी कहते हैं।

रोहिणी सिर पीट लेती है। सोचते हुए भारी कदमों से घर की ओर जाती है कि दसवीं में पढ़ने वाला लड़का इतना झूठ कैसे बोल सकता हैं?

शाम 5 बजे राजू घर आता है।

"माँ! कल मास्टर जी ने गणित की कक्षा में ज्यादा समय रुकने कहा है तो देर होगी।" राजू कहता है।

रोहिणी मन ही मन क्रोधित व दुखी होती है पर ऊपर से संयम बरतते हुए कहती है," ठीक है बेटा! तेरे दोस्त भी रुकेंगे?"

"हाँ न माँ! मदन, राकेश, जयेश हम सब है।" 

दूसरे दिन जैसे ही राजू निकलता है रोहिणी उसके पीछे-पीछे चलने लगती है। राजू अपनी स्कूल से विपरीत दिशा में आगे बढ़ता है जहाँ उसके तीनों दोस्त मिलते हैं। सब गाँव के बाहर खंडहर में जाते हैं। वह सकते में आ जाती है। कुछ लोग वहाँ जुआ खेल रहे थे। राजू और उसके साथी भी उनके साथ बैठ कर पैसे लगा रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला भी रहे थे।

रोहिणी ने इस पूरे कांड का वीडियो लिया और सीधी पुलिस थाने गयी।

"थानेदार साहब! कुछ कीजिए। मेरा एक ही बेटा है। उसके अलावा मेरा कोई नहीं है। इन लोगों ने मासूम बच्चों को झूठ बोलना सिखाकर जुआ खेलने बिठा दिया। स्कूल की जगह इनका पूरा दिन यहाँ कटता है।" और वह फफक-फफक कर रोने लगी।

"आप बिलकुल चिंता न करें।" थानेदार उसी वक्त खण्डर पर छापा मरता है और सबको गिरफ़्तार कर लेता है। राजू के साथ सभी बच्चे भी पकड़े जाते हैं। राजू अब बहुत रोता है और पछतावा करता है। उसे लगता है माँ को कुछ पता नहीं। वह घर पर इंतज़ार करेगी। तभी थानेदार आता है और सबसे उनके माँ -पिताजी के नम्बर लेता है। 

कुछ घण्टों बाद थानेदार आकर बच्चों से कहता है," राजू की माँ ने सब बच्चों को छुड़ा दिया है।

राजू बुक्का फाड़ कर रोता है और माँ के पैरों में गिरकर माफ़ी माँगता है कि वह कभी ऐसा नहीं करेगा।

रोहिणी थानेदार के कहने पर राजू को सच बताती ही नहीं है कि उसी के कहने पर वे पकड़े गए हैं।

राजू को अब समझ आ जाता है कि उसके लिए क्या सही है और माँ के लिए उसका क्या कर्तव्य है। मन लगाकर पढ़ाई करने की ठान लेता है।

रोहिणी एक हफ़्ते तक राजू के साथ वक्त बिताती है कि कहीं फिर गलत कदम न उठा ले और तसल्ली होने पर वह वापस काम पर लौट जाती है।

"सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते।"

वह मन ही मन खुद से कहती है। 



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