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dr Nitu Tated

Drama

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dr Nitu Tated

Drama

एक धोखेबाज़ अजनबी

एक धोखेबाज़ अजनबी

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मीरा सोचने लगी, " मैं उस अज़नबी से जुड़े रिश्ते को क्या कहूँ ? 

वह इसे कोई नाम देना ही नहीं चाहती थी।जब वह पहली बार सुजल से एक कॉमन ग्रुप के माध्यम से मिली तो उसने सोचा ही नहीं था कि वह अचानक ही किसी अज़नबी के इतनी करीब आ जायेगी।

 सुजल अविवाहित और हम उम्र भी था।

"मुझे इतना आकर्षण क्यों महसूस हो रहा है ? "मीरा सोचने लगी।

मीरा के पास सब कुछ तो है,एक प्यार करने वाला परिवार, मनचाहा पति, एक समझदार बेटी और अच्छी नौकरी। फिर क्यों ये बेचैनी उसे हो रही है ? अंदर की उथल - पुथल वह समझ ही नहीं पा रही है। उसे घण्टों सुजल से बतियाने में मज़ा आने लगा। 

सब अपनी दुनिया में व्यस्त थे। मीरा में आये बदलाव को कोई महसूस तक नहीं कर पाया। मीरा को तो जैसे ऐसे ही किसी साथी की चाह थी जो उसे सुने, उसके मन की थाह ले,उसकी मौजूदगी को तवज्जो दे और अपना अनमोल वक्त निकाल कर उससे घण्टों चैटिंग करें।

दिन - रात वह यही सोचने लगी कि क्या वह अपने पति और परिवार से छल तो नहीं कर रही।पर ....दूसरे ही क्षण वह यह ख्याल मन में लाती कि किसी के साथ मन मिल जाए तो बात करने में हर्ज कैसा ? 

उसमें कुछ-कुछ किशोरावस्था जैसी भावनाएँ हिलोरे लेने लगी।

मन ही मन सोचती "उसे भी अपनी ज़िंदगी जीने का हक है,खुश रहने का हक है। "

तभी सुजल का एक संदेश आया " मीरा मैं अब तुम्हारे प्रेम में पागल हुआ जाता हूँ।कुछ करो अन्यथा मुझे करार न आएगा।" मीरा चौंक गई।

वह ऐसे किसी व्यवहार के लिए तैयार न थी।

सुजल जानता था कि उसका परिवार है। मगर वह खुद पर काबू न रख पाया।

वह कहता था,"मुझे तुमसे कुछ न चाहिए,पर मुझे प्रेम की अनुमति दे दो। मैं तुम्हें चाहता हूं, प्रेम करता हूँ। तुम्हें महसूस कर अपने पास बुलाना चाहता हूँ।" 

ये भला कैसे संभव है ? वह एक ऐसा साथी चाहती है जिसमें कोई बेवजह माँग न हो। वह बेखौफ उसे अपने दिल की बात कर सकें।

आखिर उसने सोच लिया कि सुजल को सब कुछ समझाना ही होगा। एक गलत कदम घर - परिवार को बिखेर सकता है।

उसके मन में भी भावनाएँ हैं ...पर क्या यह समाज इसे स्वीकार कर पायेगा ? समझ पायेगा ? इस समाज को ऐसे रिश्तों की गढ़न अस्वीकार्य है। 

उसे आखिर रहना तो यहीं है,इन्हीं समाज के लोगो के बीच। 

दिन - रात उसे सुजल के ख्याल घेरे रहता, अजीब- सी खलबली थी।

वह सोचने लगी, " क्या है यह अनुभूति ? जिसने उसका सुकूँ छीन लिया। करे तो क्या।" 

सुजल को छोड़ना नहीं चाहती और उसकी जो माँग है उसे स्वीकर भी नहीं करना चाहती। वह केवल पवित्र बंधन चाहती है। वह सुजल के बारे में सोचते हुए लिखती है-

"तुमने जो भरा वह मेरा खालीपन था

देह का जहाँ कोई सरोकार ही न था

तुम समझते हो मुझे गहराई तक उतर

क्या ढूंढ़ पाऊँगी साथी तुम -सा इतर ?"

 सुजल का दीवानापन देख रही थी,वह खुद भी बावली हुई जा रही थी। वह देह से परे एक अलौकिक रिश्ते की नींव रखने की इच्छुक थी परन्तु उसे सुजल के अरमानों का भी अहसास था। 

"एक बार मुझसे अकेले में मिल लो प्लीज।" सुजल अकसर उससे कहता। वह इनकार कर देती।

बहुत सोच - विचार के साथ एक दिन उसने सुजल से पूछा, " जब आपको समझने वाला कोई साथी मिले तो उसे अपने छोटे से स्वार्थ के लिए खुद से दूर कर देना सबसे बड़ा पागलपन न होगा ? आगे आप खुद बहुत समझदार हैं।"      

उस क्षण उसने कह तो दिया पर क्या ऐसा रिश्ता सम्भव है ? क्या इसे ऐसे ही चलने दिया जाए या.......। इसी उधेड़बुन में कई दिन निकल गए।

 एक दिन अचानक मीरा के पति के हाथ में उसका मोबाइल आ गया और उसने भी सभी संदेश पढ़ लिए जो सुजल ने मीरा को किए थे।

 हालांकि उसने यह भी देखा कि एक तरफा केवल सुजल ही उसे प्रेम का इजहार कर रहा है।मीरा उसे समझाने की कोशिश कर रही है कि वह केवल मित्रता चाहती है परंतु आखिर पुरुष का मन तो पुरुष का मन है।उसके मन में अंदर तक चोट पहुंची जिससे वह बेहद टूट गया।

 उसने मीरा को कहे बिना उसी के फोन से सुजल को मैसेज किया " तुम हमारी जिंदगी में क्यों खलल डाल रहे हो ?क्या तुम जानते नहीं कि हमारा हँसता- खेलता परिवार है ? "

"क्या तुम्हें इस चीज का एहसास नहीं कि तुम्हारे इस एक गलत कदम से पूरा परिवार बिखर जाएगा ?"

"अगर सच में मीरा से प्रेम करते हो तो उसकी जिंदगी से दूर, बहुत दूर चले जाओ,कभी ना लौटने के लिए।" सन्देश के अंत मे लिखा है-एक बेहद प्रेम करने वाला मीरा का कृष्ण यानी उसका पति।

यह संदेश पाते ही सुजल के होश उड़ जाते हैं।

 देर शाम तक मीरा को सुजल का कोई संदेश नहीं आता तो उसे बड़ी बेचैनी होती है।आत्मग्लानि होती है उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? 

सोचती है "क्यों वह सुजल के मैसेज का इंतजार करती रहती है जबकि वह उससे प्रेम का इजहार करता है तो वह अच्छा महसूस नहीं करती है।"

उसे ऐसा लगता है कि वह अपने पति से कहीं ना कहीं दगा कर रही है तो फिर क्यों आखिर क्यों ? वह सुजल के संदेश का इंतजार कर रही है।

बड़ी देर इंतजार के बाद किसी अनजान नंबर से मीरा को फोन आता है और केवल एक ही वाक्य में फोन बंद कर दिया जाता है " मेरा'तुम्हारा अब कोई संबंध नहीं।हम कभी संपर्क नहीं करेंगे।"

 मीरा समझ जाती है कि कहीं कुछ गड़बड़ हुआ है।

 उसे बेचैन देखकर उसके पति पूछते है "क्या हुआ मीरा आज बड़ी अनमनी-सी दिखाई दे रही हो ? आजकल तो मुझसे बात भी कम करने लगी हो।तुम्हें पता है ना मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ।"

 मीरा को ऐसा लगा जैसे वह रँगे हाथों पकड़ी गई हो। उसकी किसी बात का वह उत्तर ही न दे पाई। केवल फूट-फूट कर रोने लगी। 

वह अपने पति रोहन से बेहद प्रेम करती थी। उन दोनों ने ज़िन्दगी की कठिन डगर पर एक दूसरे का खूब साथ निभाया।लेकिन जैसा कि हर रिश्ते में होता है,इस रिश्ते में भी गर्माहट कुछ कम हो गयी थी पर प्रेम कम न हुआ था।रोहन और मीरा का काम उन्हें एक दूसरे से दूर ले गया।साथ रह कर भी साथ न थे।मीरा की सुरीली आवाज,चेहरे और सुंदरता की सुजल ने जब लगातार तारीफ़ की तो झुकाव उसकी तरफ बढ़ता गया।रोहन से अपनी तारीफ़ को तरसती मीरा समझने लगी कि रोहन को उसकी कदर नहीं रही।

इतने सारे काम एक साथ करते हुए वह थक चुकी थी।नीरस जीवन में सुजल एक ठंडी हवा के झोंके की तरह आया। ये अहसास उसे अंदर तक गुदगुदा गया था।परन्तु वह कभी नहीं चाहती थी कि रोहन को सुजल के बारे में पता चले। वह जानती थी कि वह दो नाव पर सवारी कर रही है। पर अंजाम के बारे में सोचना ही नहीं चाहती थी।

अब रोहन सब जान चुका था। उसने सोचा कि मीरा को इस पूरी उधेड़बुन से बाहर निकालने के लिए उसे बहुत ही सावधानी और समझदारी से काम लेना होगा।

रोहन कहता है " आओ मीरा! हम एक नई शुरुआत करें।समझे एक दूसरे को और साथ निभाये।" मीरा हामी भरती है।

 वह रोज ही शाम को काम के बाद कुछ देर मीरा के साथ टहलने अवश्य जाता। कभी पैदल तो कभी कार में तो कभी उसे उसकी मनपसंद आइसक्रीम खिलाता था तो कभी सैर सपाटे के लिए समुद्र के तट पर ले जाता,कभी पान खिलाता या कभी पिक्चर लेकर जाता।धीरे-धीरे मीरा सुजल मेंअटपटे से व्यवहार को भूलने लगी।

उसकी जिंदगी में अचानक ही आया और अचानक ही चला गया।

एक दिन रात को जब दोनों लॉन्ग ड्राइव पर गए तो मीरा फूट कर रोई। "मुझे माफ़ कर दो रोहन। मैं बहक गयी थी।"

उसने स्वीकार किया कि उसका मन उसकी तरफ से कुछ समय के लिए कुछ उचट - सा गया था।एक ढर्रे पर दौड़ती जिंदगी से थक गई थी। वह चाहती थी कि रोहन भी उसे पहले जितना समय दे, पहले जितना प्यार दे।

 अगर ऐसा होता तो वह कभी दूसरे की तरफ आकर्षित ना होती लेकिन तुमने तो मुझसे पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया था। 

"मैं मानती हूं कि मेरी गलती है कि सुजल की तरफ आकर्षित हुई लेकिन वह क्षणिक था। उसमें वासना का कोई भी अंश मात्र भी नहीं था।मैं पूरी तरह से तुम्हारी तरफ समर्पित हूं,हमेशा ही रहूँगी।"

सुबकते हुए "मेरा हाथ हमेशा यूं ही थामे रहना। एक दूसरे से बात कर पाए इतना समय तो हमें देना ही होगा।"

रोहन भी समझ गया कि पति-पत्नी के रिश्ते रूपी पौधे को प्रेम से सींच कर,समय रूपी जल और विश्वास रूपी खाद देकर ही अटूट बनाया जा सकता है।

वह कहता है" जीवन की राह में ऐसे तो कई रोड़े आएँगे पर हम दोनों ही एक-दूजे को संभाल ले तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"

अंत में उसने सुजल को भी मन ही मन धन्यवाद कहा कि अगर वह उनकी ज़िंदगी में न आता तो वह समझ ही नहीं पाता कि प्यार करना ही जरूरी नहीं जताना भी आना चाहिए। सामने वाले को यह अहसास कराना जरूरी है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।

 इस तरह खुशी से दिन गुजर रहे होते हैं कि एक दिन अचानक एक बड़ा-सा लिफाफा उनके दरवाजे पर पड़ा मिलता है। यह लिफाफा रोहन के हाथ में आ जाता है जिसमें मीरा और सुजल की कुछ आपत्तिजनक तस्वीरों के साथ एक पत्र होता है जिसमें यह लिखा होता है

 " यदि तुम मुझे फिर से नहीं मिलोगी या मेरे साथ नहीं आओगी तो सोशल मीडिया पर सारी तस्वीरें पोस्ट कर दूंगा।"

 रोहन मीरा को भनक भी नहीं पड़ने देता और सुजल की शिकायत अपने करीबी मित्र से करता है जो कि उस शहर का कमिश्नर होता है। सारी बातें बता सुनकर कमिश्नर एक योजना बनाता है और कहता है " मीरा के द्वारा सुजल को फोन करवाओ।उसे एक निश्चित स्थान पर बुलाओ।"

 मीरा से कहलवाओ "मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पा रही हूँ। मैं खुद तुमसे मिलना चाहती हूं।"

शाम को रोहन घर जाकर मीरा को सारी बातें बताता है।मीरा घबरा जाती है लेकिन वह भी सुजल को सबक सिखाना चाहती है क्योंकि जो तस्वीरें सुजल ने भेजी है ऐसा उनके बीच कभी हुआ ही नहीं।

रोहन ! मेरा यकीन करो।मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया। ये सब झूठ है।" मीरा सफाई देती हुई कहती है।

"उसने इन तस्वीरों के साथ छेड़खानी की और मेरा चेहरा वहां पर चिपका दिया। "

कमिश्नर की योजना के अनुसार मीरा सुजल को कॉल करती है और मिलने का स्थान निश्चित करती है।

 दूसरे दिन शाम को वे होटल सन एंड सैंड में मिलते हैं। 

सुजल को देखते ही मीरा भावुक हो जाती है किंतु दूसरे ही क्षण वह अपने आप को संभालती है और सोचती है

 "इसी ने मेरी जिंदगी बर्बाद करने का सोचा है।इसे किसी तरह बख्शना नहीं है।"

दिखावे के लिए सुजल को जाकर गले मिलती है और कहती है " मैं खुद तुम्हारे बिना नहीं रह पा रही थी।" सुजल भी कहता है " मैं खुद तड़प रहा था। अब हम कभी जुदा नहीं होंगे बस तुम अपने घर में जितना भी सोना और नकदी है लेकर मुझे यही मिलो।हम आराम से कहीं दूर जाकर ऐश से रहेंगे।" 

मीरा उसकी हाँ में हाँ मिलाती है और रात को मिलने का वादा करके चली जाती है।

रात को वह सारे सामान के साथ सुजल को ठीक उसी स्थान पर मिलती है जहाँ उसे कहा था।

"ओह! मीरा मुझे पूरा विश्वास था कि तुम आओगी।"

जैसे ही मीरा वह बैग सुजल के हाथ में रखती है पीछे से रोहन दो पुलिस वालों के साथ आकर सुजल को पकड़वा लेता हैं और मीरा को उसकी चुंगल से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।

मीरा बोल पड़ती है "इसे ही कहते हैं सच्चा प्यार जो रोहन ने किया। तुमने तो केवल प्यार का नाटक किया और जिसने चाहा था उसे धोखा देने की पूरी साजिश रची। अब सड़ना लंबे समय तक जेल में।" 

यह कहकर वह रोहन के गले लगकर पश्चाताप करते हुए फूट -फूट कर रोने लगती है।


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