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dr Nitu Tated

Others

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भूले बिसरे गाँव के लम्हें

भूले बिसरे गाँव के लम्हें

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वह गाँव आज भी बसता है मेरे भीतर

उसके गलियारों में बीता सुनहरा बचपन

घर की दहलीज को लांघता अल्हड़पन

माँ की हिदायतों को न मानता था मन

                         

कभी रेत के ऊँचे-ऊँचे टीलों पर चढ़ते

कभी नदियों के साथ ही हिलोरें मारते

पतंग के साथ साथ हवा से होड़ लगाते

तितली को पकड़ने पर रंग में रंग जाते

                            

कंचों के साथ खेल धूल में सने धूप सेंकते

विटामिन-प्रोटीन की कमी हम न समझते

छुप्पन छुपाई,लँगड़ी गुल्ली-डंडे से खेलते

दोस्तों के घरों में ताश की महफ़िल सजाते

                             

स्कूल के बाहर ठेले का समोसा भेलपुरी

खाते मिलकर सब दोस्त चलती थी उधारी

कुल्फी खाने में ही खत्म होती पूंजी सारी

फिर किस्मत आजमाने को खोलते लॉटरी

                          

मेहमानों के आने पर नए ट्रे सेट निकलते

घर मे हो फ़ोन तो गली की शान कहलाते

किराए के वीडियो पर पापा पिक्चर लगाते

मेले और सर्कस तो कभी कबार जा पाते


पड़ोसन काकी की रोटी लगती थी मीठी

सर्दियों की रात में जल उठती थी अंगीठी

तरसती-सी आँखें बरसात की बाट जोहती

मामा के घर जाते पड़ते ही गर्मी की छुट्टी

                           

रविवार को करते थे रामायण का इंतज़ार

एक ही दिन बस आता था फिल्मी चित्रहार

दोस्तों से माँग कर खाते थे, न होती मनुहार

गाँव ही घर लगता, गाँव वाले मानो परिवार

                            

वाशिंग पावडर निरमा को चहकते हुए गाते

आई लव यू रसना गाकर पूरा ही गटक जाते

कॉमिक पहले कौन पढ़ेगा? ये बारी थे लगाते

नुक्कड़ की दुकान वाले चाचा हमेशा झिड़कते


अब तो किसी भी चीज़ से मोहित हो न पाते

कीमती घड़ी हो या गाड़ी देर तक न चला पाते

रिश्ते भी अब तो सोच समझ कर रचाये जाते

अवसरवादी जग मे कुछ को अपने करीब पाते

                               

क्यों हम जीवन भर बचपन से मासूम न रह पाते?

क्यूँ मासूमियत चली जाती और कठोर बन जाते

घर तो है बड़े महँगे पर दिल क्यों हुए इतने सस्ते

काश !!मेरे गाँव के पल फिर से लौट कर आ पाते



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