एक बेटी की अनोखी पहल
एक बेटी की अनोखी पहल
"जीवन में अनेक क्षण ऐसे आते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते कि हमने ऐसा क्यों किया ?" अपेक्षा इन्हीं ख्यालों में डूबी हुई थी तभी नन्हा हर्षद आकर उसकी साड़ी का पल्लू खींचते हुए कहता है "चलो न माँ ! आपने कहा था आप खेलोगी।"
" हाँ भाई हाँ! चलो तुम्हारी बात को भला मैं कैसे टाल सकती हूँ?
अपेक्षा का ससुराल और मायका लखनऊ में ही था। जब भी मायके जाती तब वह देखती कि पिता निरंतर अकेलेपन का शिकार हुए जा रहे हैं। लगभग 15 वर्ष पहले की बात है। 15 वर्ष की अपेक्षा और 13 वर्ष के अंकित की माँ एक रात अचानक चल बसी। ना कोई बीमारी न कोई तकलीफ़। इतनी कम उम्र में माँ के चले जाने पर दोनों बच्चे और पिता संभल ही नहीं पा रहे थे। रिश्तेदार आते-जाते कहते थे "आलोक भाई को दूसरी शादी कर लेनी चाहिए। उनकी उम्र ही क्या है? 40 में तो आदमी पूरा जवान होता है।"
अपेक्षा की नानी का भी यही कहना था, "दामाद जी !आपको अपने और बच्चों के लिए दूसरी शादी जरूर करनी चाहिए। सब ठीक जाएगा।"
नानी और दादी दोनों ही आकर घर को संभाल रही थी। अंकित और अपेक्षा समझदार बच्चे थे। पापा को दुखी देख अकेले में भले ही आँसू बहाते परंतु उनके सामने सामान्य ही बने रहते।
दुखी आलोक दोनों को गले लगाकर सुबक पड़ता है। वह मन ही मन सोचता है ,"कल्पना तुम हमें इतना जल्दी क्यों छोड़ कर चली गई ?"
प्रकृति का नियम है- परिवर्तन
धीरे-धीरे तीनों सामान्य जीवन यापन करते है।
तभी एक दिन अपेक्षा को अपने पिताजी के मोबाइल में एक सुंदर लड़की की फोटो दिखाई देती है।
"पापा! आपके मोबाइल में जिस लड़की की फोटो है। वह कौन है ?
आलोक सकपका जाता है, "बेटा वह मेरी दोस्त है जिसका नाम शिवानी है। हम दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं।"
वह अपनी बेटी को शिवानी के बारे में इस तरीके से नहीं बताना चाहता था।" पापा क्या सच है कि वह आपकी सिर्फ दोस्त है?"
आलोक अपनी माँ और सास के बारे में बता चुका था कि शिवानी तलाक शुदा है और वह भी उसे पसंद करती है और शादी भी करना चाहती है। उनकी तरफ से उसे हरी झंडी मिल चुकी थी परंतु बच्चों को बताने में संकोच कर रहा था। जानता था कि माँ के स्थान पर किसी को रखना इतना आसान न था। आलोक ने माँ के कहने पर शिवानी को एक रविवार घर पर बुलाया। वह आलोक की माँ और अंकित को बहुत पसंद आई।
वह अपेक्षा से भी बात करने की भरसक कोशिश करती रही। तुम्हारी प्रिय फिल्म कौन सी है? तुम्हारी खास सहेली कौन है? जैसे अनगिनत सवाल करती रही परंतु वह तो अभी भी मुँह फुलाए बैठी रही। शिवानी ने हँस कर टाल दिया।
"अपेक्षा, अपेक्षा" रात को जब शिवानी घर चली जाती है तब आलोक जोर से चिल्लाकर अपेक्षा को आवाज देता है।
"क्या मैंने आपको यही संस्कार दिए है। आज शिवानी से ऐसा व्यवहार क्यों किया?
“पापा वह मेरी माँ की जगह लेना चाहती है और यह कभी नहीं हो सकता। छी: आप कितने गंदे हो। हमारी माँ को इतना जल्दी भूल गए। नई माँ लाकर आप हमें भी भूल जाओगे और घर से निकाल दोगे। सौतेली माँ बहुत बुरी होती है।”
आलोक की माँ करीब आई और बोली, “बेटा तुम शिवानी से विवाह कर लो, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।”
“नहीं माँ! मेरे लिए खुद की खुशी से पहले दोनों बच्चों का सुख है। कल्पना मेरे भरोसे इन्हें छोड़ गयी है।“
वक्त पंख लगा के उड़ता गया । अपेक्षा अब डॉ अपेक्षा बन गयी थी और एक बच्चे की माँ भी।
अंकित, पापा और अपेक्षा को लेकर माउंट आबू घूमने गया था तब अचानक उसे शिवानी दिखाई दी। पापा और अंकित को थोड़ी देर में आने को कहकर वह शिवानी के पीछे गई ।
“शिवानी जी !
शिवानी पहले तो चौंक जाती है फिर अपेक्षा को बड़े प्यार से देखते हुए कहती है, “कितने सालों बाद देखा है।”
अपनी बात को अपेक्षा आकार देने की कोशिश करती है, “शिवानी जी !मैं तो छोटी और नादान थी पर आपने जिद क्यों नहीं की पापा से?”
“ अपेक्षा मैं भी आगे बढ़ गई, नहीं चाहती थी कि मैं किसी का घर तोड़ने की जिम्मेदार कहलाऊँ।“
“तो आपने फिर किससे शादी की?
“बार-बार मन नहीं जुड़ता अपेक्षा! आलोक से पहले जिससे मेरी शादी हुई थी, वह बहुत बुरा अनुभव था। तलाक के बाद सोचा था, अब किसी पुरुष से न जुड़ पाऊँगी परंतु आलोक बहुत ही सज्जन इंसान थे । जाने कैसे जुडती गई ?आलोक ने जब कहा कि अपेक्षा इस रिश्ते से राजी नहीं इसलिए यह रिश्ता नहीं होगा। मैं टूट-सी गई ।”
अपेक्षा पश्चाताप की आग में जलने लगी। नादानी में उसने न जाने क्या कर दिया ?
शिवानी अपनी बात आगे बढ़ाती है,” पिछले कई वर्षों से यहाँ माउंट आबू में ब्रह्मा कुमारी के आश्रम में शांति की तलाश में रह रही हूँ ।
“शिवानी जी! क्या आप मुझे माफ करके अपने आप को और मुझे दूसरा मौका मौका देंगी? मैंने आप दोनों के साथ बहुत गलत किया है, अब उस भूल को सुधारना चाहती हूँ।
शिवानी ठगी-सी बस उसका मुँह देखती रह गई । वह आज भी आलोक को भूल नहीं पाई इसलिए किसी और रिश्ते में बंधने का मन ही नहीं किया परन्तु प्रत्यक्ष कुछ कह ना पायी। अपेक्षा उनका मोबाइल नंबर लेकर फिर मिलने का वादा कर चली जाती है। शिवानी की चुप्पी में छुपी हाँ को समझ लेती है और कुछ ठान लेती है।
वापस आने पर हर्षद के जन्मदिन की बड़ी-सी दावत देती है और शिवानी आलोक के अलावा सबको इस योजना में शामिल करती है। जन्मदिन पर सारे मेहमानों के बीच अपेक्षा मंच पर चढ़ती है और सब को संबोधित करते हुए कहती हैं,” पूरे परिवार और मित्रों को मेरा प्यार भरा प्रणाम । आप सब ने आकर इस दिन को और भी यादगार बनाया, अपना आशीर्वाद हर्षद पर हमेशा बनाये रखना। आज मैं आप सबसे कुछ खास कहना चाहती हूँ । पिताजी ने मुझे और अंकित को माँ और पापा दोनों का प्यार दिया। दिव्य जैसे पति को पाकर मैं बहुत ही खुश हूँ। उन्होंने हमें कुछ तकलीफ होने नहीं दी और मैंने पिताजी के साथ क्या किया? माँ के जाने के बाद उन्हें बिल्कुल अकेला छोड़ दिया । वे एक रिश्ते में बंधना भी चाहते भी थे। मेरी वजह से कभी नहीं बंधे। आज हम दोनों भाई-बहन पिताजी को उनकी खुशी लौटाना चाहते हैं। उनका आगामी जीवन अब अकेलेपन में नहीं गुजरेगा ।"
तभी अंकित की पत्नी सुधा, शिवानी को साथ लिए मंच पर आती है। आलोक ठगा -सा रह जाता है। दिव्य और अपेक्षा आलोक के पास जाते हैं और उनका भी हाथ पकड़कर उन्हें शिवानी के पास ले आते हैं।
“पापा यह लीजिए रिंग, शिवानी जी को पहना कर उन्हें हमेशा के लिए अपना बना लीजिए।” दिव्य कहता है।
आलोक शिवानी की आँखों में अपने लिए हामी और प्यार देखकर समझ जाता है कि बच्चों की योजना में शिवानी भी शामिल है।
“ मम्मी जी ! आप भी पापा जी को रिंग पहना दीजिए। सुधा चुहलबाजी करते हुए कहती है।
सारे मेहमान तालियों से अनोखे युगल का स्वागत करते हैं।
वह माँ की तस्वीर को प्रणाम करती है और कहती है, ”देर से ही सही पर माँ तेरी बेटी ने अपने पापा को आखिरकार उनकी खुशी लौटा ही दी।“
इस तरह एक बेटी का अनोखा प्रायश्चित पूरा होता है।
