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dr Nitu Tated

Inspirational

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रानी और केसरी की जीत

रानी और केसरी की जीत

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8 वर्षीय रानी और केसरी राजस्थान के किसी छोटे-से गाँव में रहती थी और आपस में पक्की सहेलियाँ थी। उनके गाँव में सदियों से जात-पात का भेदभाव होता था | वे उस वर्ग की लड़कियाँ थी जिन्हें हीन समझा और अछूत माना जाता था |उन्हें पढ़ने-लिखने के अधिकार नहीं थे | 


जब भी वे अपने माँ -बापू के साथ खेतों में काम करने जाती थी तब दोनों ही गाँव के तालाब किनारे बनी स्कूल को बहुत ही ललचाई हुई नज़रों से देखती हुई बातें करती थी|


“रानी कितना अच्छा होता न जो हम भी स्कूल जाते |”


"हाँ ! केसरी पर ऐसा भला कैसे होगा ?” दोनों ही अनमनी-सी वहाँ से चल दी |ऐसा लगभग रोज ही होता | वे यूँ ही रोज़ स्कूल की बातें करती और खेती-बाड़ी करने में जुट जाती |सूबेदारों,ज़मींदारो और ठाकुरों की औलादों को बस्ते,कापी और किताब के साथ आते -जाते देखती तो मन मसोस कर रह जाती | एक दिन केसरी का बालमन जिज्ञासु होकर अपने बापू से पूछ ही बैठा “हमें भी स्कूल जाना है| हम क्यों नहीं जा सकते?” 


केसरी के पिता बड़े उदास हुए और बोले “वे जाति के निचले पायदान पर खड़े समाज मे पैदा हुई थी,ऊपर से छोरियाँ, तो पढ़ने - लिखने का तो सवाल ही नहीं था। हमारा काम इनका मैला उठाना और अपनी थोड़ी जमीं पर अपने लिए अन्न उगाकर खाना है| हम तो इनकी बावड़ी,कुँए और तालाब के पानी को छू भी नहीं सकते |


रानी थोड़ी आक्रोश के साथ बोल पड़ी “ क्यों भला ? क्या हम इनसान नहीं ? रानी के पिता उसे झिड़कते हुए से बोले “ चुप हो जा ! कोई सुन लेगा तो आफत आ जाएगी |”  रानी और केसरी बेचारी चुप -सी हो गयी |वैसे थी तो वे छोटी जाति की परन्तु सपने उनके बड़े-बड़े थे। रानी को नाचने और केसरी को गाने का शौक था। पढ़ने लिखने की अकूत इच्छा के साथ उनको अपनी इस कला में कुछ कर दिखाने की मंशा थी पर वे जानती थी कि ऐसा हो नहीं सकता। 


रानी केसरी से पूछती है “क्या हम हमेशा इनका मैला उठाएँगे ? हम अपनी इच्छा से कभी नहीं जी पाएंगे क्या?


सबके सामने वे कामकाजी लड़कियाँ बनी रहती। भरी दुपहरी में जब काम से थोड़ी राहत पाती तो भाग कर बरगद के पेड़ के नीचे सुस्ताने के बहाने अपनी कला की भूख को शांत करती। केसरी टूटी हण्डिया की थाप पर सुर लगाती और रानी उस पर थिरकती। बस दोनों इसी में प्रसन्न रहती। 


“रानी तू क्या बढ़िया नाचती है रे !” केसरी जब बोली तो रानी भी बोल पड़ी “ ये तो तेरी हण्डिया की थाप का कमाल है |” दोनों जोर-जोर से खिलखिलाने लगी | 


अभावों में रहने वाली प्रतिभाएँ अकसर ख़ामोशी में शोर मचा ही देती है|एक बार जब वे खेत से लौट रही थी तो भोंपू वाले को बोलते हुए सुना," सुनो,सुनो,सुनो आज से ठीक दस दिन बाद दशहरे के अवसर पर एक प्रतियोगिता का आयोजन रखा गया है ।“


वे दोनों ध्यान से सब सुनती हैं | एक-दूसरे को देख मन ही मन ठान लिया कि जो भी होगा,हिस्सा जरूर लेंगे|


भोंपू वाला आगे कहता है “सरपंच जी ने सरकार के आदेशानुसार प्रतिभाओं को एक सुनहरा मौका प्रदान किया है। जो कोई भी इस प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम आया उसे शहर की शाला में पूरे खर्चे सहित पढ़ने भेजा जाएगा। यह खर्चा सरकार द्वारा उठाया जाएगा। 12वीं तक पूरी पढ़ाई निःशुल्क होगी।इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए जाति और लिंग का कोई बंधन नहीं|


 सुनो,सुनो,सुनो।"


बस फिर क्या था? 


रानी और केसरी के अरमानों को तो मानो पंख ही लग गए हो परन्तु अगले ही पल ये सोचकर उदास हो गयी कि माँ -बापू छोटी जाति के तो थे और उनके पास पैसे भी नहीं थे कि उनकी आस पूरी कर सकें। फिर भी घर जाकर डरते-डरते रानी अपनी माँ को बताती है “माँ! ऐसा मौका क्या पता कभी आएगा कि नहीं | माँ सुनो न माँ ,कुछ कर दो ,बापू को आप ही मना सकती हो |


माँ भी सोचने लगी “ मैंने तो पूरी ज़िन्दगी अपनी इच्छाओं को मार कर बिता दी अब अपनी लाड़ो के साथ यह न होने दूँगी |” वह अपने पति को विश्वास में लेती है और केसरी की माँ से उसके पिता को भी समझाने के लिए कहती है|


 अब जब उन्होंने देखा कि यह उनकी बेटियों के लिए सुनहरा मौका है तो उन्होंने पूरा साथ देने की ठानी। पाई-पाई जो बेटियों की शादी के लिए बचाई थी अब उनकी इस प्रतियोगिता के लिए जो भी खर्च था उसके लिए देने को भी तैयार हो गए।

दोनों के बापू शहर गए और एक ढोलक और दोनों के लिए नए वस्त्र लेकर आए ।रानी और केसरी का उत्साह तो सातवें आसमान पर था ।


वाह! रानी हम नए कपड़े पहनकर मंच पर जाएँगे । चहकते हुए केसरी बोल पड़ी।


“हाँ! हाँ! केसरी तू ढोलक बजाना,मैं तेरी ढोलक की लाजवाब थाप पर सुंदर नृत्य करूँगी। हम कोशिश करेंगे तो जीत जाएँगे ।बस वे कड़ी मेहनत कर केवल उस दिन का इंतजार कर रही थी जब अपनी कला को मंच पर प्रदर्शित कर सके ।


वह दिन भी आ ही गया। परन्तु जैसे ही सूबेदार के बेटे को पता चला कि जिस मंच पर वह गीत गाने वाला है वहाँ पर रानी और केसरी जैसी तुच्छ जाति की लड़कियां भी प्रदर्शन करेंगी तो उसने हंगामा खड़ा कर दिया।


“ये छोटी जाति वाले जो हमारे साथ खड़े होने लायक नहीं है और अब ये हमारे साथ एक मंच पर नाचेंगे और गाएँगे ?” उसने अपने सभी दोस्तों को भी इसमें शामिल कर लिया ।

“ हाँ! ये नहीं हो सकता|” सब एक सुर में चिल्लाने लगे ।


 शहर से आये सरकारी आयोजकों में से एक ने कहा “यहाँ जाति का कोई बंधन नहीं है।“


सरपंच जी ने संज्ञान लेते हुए मंच पर पर आकर यह घोषणा की “प्रतिभा किसी जाति,धर्म या वर्ग विशेष की बपौती नहीं ।इस मंच पर जो चाहेगा वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकता है।“


आयोजकों में से ही किसी ने बात को समाप्त करते हुए कहा “अगर किसी ने इस में अड़चन डालने की कोशिश की तो उसके साथ सख्त कार्यवाही की जाएगी ।“


थोड़े से विरोध के बाद अब गाँव की ऊँची जाति के लोग समझ गए कि उनके दिन लद गए ।अब देश का मौसम बदल रहा है ।यहाँ जाति की उच्चता को नहीं वरन आपकी प्रतिभा, आपके ज्ञान को पहचान मिलेगी ।


रानी और केसरी के साथ और भी कई छोटी जाति के लोगों ने उच्च जाति वालों के साथ मंच साझा किया और उत्तम प्रस्तुतियाँ दी ।


प्रतियोगिता समाप्त होती है| रानी और केसरी ने अपना प्रदर्शन बहुत ही दिल से किया।


 “रानी मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा है |’केसरी बोली 


“केसरी देव के भरोसे छोड़ दे| हमने अपनी पूरी मेहनत की |”रानी हिम्मत देते हुए कहती है|


परिणाम रानी और केसरी के हक में रहा ।वे दोनों प्रथम आई ।पूरे गाँव ने और प्रतियोगिता के आयोजकों ने उनकी बहुत सराहना की।


 सरपंचजी ने कहा, “ऐसी प्रतिभाओं को आगे बढ़कर अपने हुनर को पूरे देश ही नहीं दुनिया में दिखाने की जरूरत है और साथ ही साथ इनकी पढ़ाई भी पूरी होनी बहुत ही आवश्यक है।“


 रानी और केसरी मंच पर आती है और आयोजकों से एक गुजारिश करती है । 


रानी कहती है, "माफ कीजिएगा सरपंच जी और माननीय आयोजक साहब।सिर्फ मैं और केसरी ही नहीं ,इस गाँव की बहुत-से ऐसे ब्च्चे हैं जो पढ़ना- लिखना चाहते हैं लेकिन पढ़ ही नहीं पा रहे हैं|”


केसरी बात को आगे बढ़ाती है,”हमें आप शहर ना भेजे । हमारे गाँव में ही छोटा सा स्कूल बना दे जहाँ हर कोई पढ़ सके, आगे बढ़ सके । इस गाँव में प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन उन्हें ज्ञान देने वाला कोई नहीं ।"


छोटी-सी लड़कियों के मुँह से ये बात सुनकर सब बहुत ही भावुक हो जाते हैं । आयोजक वादा करते कहते हैं,”बहुत जल्दी इस गाँव में लड़कियों के लिए सुविधासंपन्न पाठशाला बनेगी और तुम्हारे साथ- साथ सभी निशुल्क पढ़ाई कर पाएंगे । जहाँ जाति का भेदभाव नहीं होगा ना ही लिंग का।“


रानी और केसरी ने अपने साथ-साथ अपने जैसी न जाने कितने ब्च्चों की जिंदगी में ज्ञान की रोशनी पैदा करने की ठान ली। एक साल के भीतर ही पहली से बाहरवीं तक की कक्षाओं की पाठशाला खुल गयी। जहाँ सभी जाति के ब्च्चे मिलजुल कर पढ़ने लगे। जहाँ ज्ञान व कला की गंगा साथ -साथ प्रवाहित हो रही थी।


 सच में उस दिन उस गाँव में भी एक रावण जला जो जातिगत भेदभाव जैसे न जाने कितने सिरों को लेकर लोगों का हनन कर रहा था और उस रावण को राम ने नहीं सीता ने जला कर एक नई शुरूआत की।



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