भरोसा

भरोसा

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सरकारी अस्पताल की ओपीडी में पर्ची बनवाने के लिए बहुत ही लंबी लाइन ऊपर से गर्मी का महीना। कई कई पंखे चलने के बाद भी सभी पसीने से तरबतर थे। राधा अपने चार महीने के बेटे को किसी तरह गोदी में संभाल, अपने पल्लू से उसको हवा कर रही थी। खुद उसे भी प्यास के मारे बेचैनी हो रही थी। वैसे तो हर बार उसका पति उसके साथ आता था लेकिन आज काम से छुट्टी ना मिलने के कारण उसे अकेले ही आना पड़ा।

पीछे खड़ी औरत सहानुभूति दिखाते हुए बोली "आज गर्मी बहुत है और यह लाइन सरक ही न रही है। देखो ना सरकारी कर्मचारी कैसे धीरे-धीरे काम करने में लगे हैं। इनको पब्लिक का बिल्कुल भी ध्यान न है।"

राधा ने हां में सिर हिला दिया और फिर से बच्चे के ऊपर पल्लू से हवा करने लगे। उस औरत ने फिर से बात आगे बढ़ाई " छोटे बच्चे के साथ कितना मुश्किल है । वैसे क्या हुआ है बच्चे को!"

" इसका निमोनिया बिगड़ गया है। बस उसी के लिए यहां चक्कर काटने पड़ते हैं। प्राइवेट अस्पताल में तो हाथ लगाने के भी डॉक्टर ₹500 वसूल लेता है।"

" सही कह रही हो बहन। हम दिहाड़ी मजदूरी वालों की इतनी औकात कहां। तभी तो यहां गर्मी में अपनी जूतियां घिस रहे हैं।"

राधा को अब उससे बातें करने में मजा आ रहा था क्योंकि इस कारण एक तो समय कट रहा था। दूसरे गर्मी से ध्यान भी हट रहा था। "तुम किस की दवाई के लिए आई हो।"

" अरे, मेरे बच्चे को उल्टी दस्त लगे हुए हैं।उसी की दवाई के लिए आई हूं।"

"पर तुम तो अकेली हो।बच्चा कहां है।"

"वह देखो, वहां अपनी बुआ की गोदी में बैठा है। उसने बेंच की ओर इशारा करते हुए हाथ हिला दिया। वहां बैठी हुई औरत ने भी उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा। "अकेले मेरे तो बस की नहीं। तुम्हारे साथ कोई नहीं है क्या?"

"नहीं आज इसके पापा को छुट्टी नहीं मिली।" वह कुछ ओर कहती। इतनी देर में ही उन दोनों का नंबर आ गया। पर्ची बनवा, वे दोनों लाइन से निकल डाक्टर के कमरे के बाहर नंबर लगा खड़ी हो गई। अब तक दोनों में अच्छी खासी जान पहचान हो गई थी ।

राधा ने कहा "बहन जी आपके पास पानी है क्या! प्यास लगी है।"

तो वह औरत बोली "अरे नहीं मेरा भी खत्म हो गया है। प्यास तो मुझे भी लगी है। अच्छा मैं पानी भरकर लाती हूं।" वह उस दूसरी औरत के पास गई और वापस आकर बोली "मुझे तो बच्चे को दूध पिलाना है। पानी के वहां भीड़ ज्यादा है। इसकी बुआ को कहा तो वह मुंह बनाने लगी। ऐसा करो तुम बच्चे को थोड़ी देर उसे पकड़ा कर पानी ले आओ। जब तक मैं तुम्हारे बच्चे का ध्यान रखती हूं।"

राधा प्यास से बेहाल थी। उसे उसकी बात सही लगी इसलिए अपने बच्चे को उसे पकड़ा। पानी भरने के लिए चली गई। पानी भर पांच 7 मिनट में जब वह वापस आई तो वहां पर वह दोनों औरतें ही नहीं थी और ना ही बच्चा। शायद उसका नंबर आ गया हो ।ये सोच वह डॉक्टर के कमरे में देखने के लिए घुसने लगी। पीछे से भीड़ चिल्लाई कि नंबर नहीं है। फिर भी जबरदस्ती वह अंदर गई तो वहां भी वे नहीं थी। अब तो उसके होश उड़ गए और वे जोर-जोर से रोते हुए अपने बच्चे को ढूंढने लगी। अब तक सबको माजरा समझ आ चुका था कि वह औरतें बच्चे को लेकर भाग चुकी हैं। सारे अस्पताल में हड़कंप मच गया। सभी ढूंढने में उसकी मदद करने लगे लेकिन उनका कुछ पता ना चल सका। कुछ ही देर में उसका पति भी वहां आ गया।

अस्पताल प्रशासन ने पुलिस को सूचना दे दी। कुछ ही देर में पुलिस भी वहां थी। राधा से औरतों का हुलिया जाना। उन्होंने अस्पताल के आस-पास बैठे हुए भिखारियों व खोमचे वालों से उन औरतों का बारे में जानकारी हासिल की। कुछ महत्वपूर्ण सुराग उनके हाथ लगे।

तेजी से कार्रवाई करते हुए ,पुलिस ने जानकारी के मुताबिक उस झुग्गी बस्ती में छापा मारा लेकिन जब तक वह दोनों वहां से निकल चुकी थी। पड़ोसियों से पता चला कि उस औरत का नाम मीना था और उसका पति शराबी था। हां दोपहर को वह दूसरी औरत के साथ आई थी और उनके पास एक बच्चा था। पूछने पर उसने बताया कि यह इसकी गांव की है और यहां बच्चे के इलाज के लिए आई थी और आज शाम को वह वापस गांव चली जाएगी। पड़ोस वालों से जानकारी ले वह रेलवे स्टेशन की ओर गए।

कुछ घंटों की मेहनत के बाद उन्होंने उन दोनों औरतों को दबोच लिया। उनके पास से राधा का बच्चा भी मिल गया। पुलिस स्टेशन आकर पूछताछ में उन दोनों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि वह अस्पताल के आसपास ही घूमती हैं और ऐसी औरतों पर नजर रखती हैं। जिनके बच्चे छोटे हो और जो अकेले उनके इलाज के लिए आती है। मौका मिलते ही वह बच्चों को अगवा कर , मोटी रकम ले निसंतान दंपतियों को बच्चा बेच देती हैं।

आज राधा अपनी थोड़ी सी लापरवाही से अपने बच्चे को सदा के लिए खो देती । वह तो पुलिस की मुस्तैदी कहो या उसकी किस्मत कि समय रहते पुलिस को सारी जानकारी मिल गई और वह एक बहुत बड़ी अनहोनी होने से बच गई। इसलिए कभी भी अनजान व्यक्ति पर भरोसा ना करें। क्योंकि इस दुनिया में जब अपने ही भरोसा तोड़ने में एक पल नहीं लगाते तो अंजान की तो बात ही क्या है।



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