भरोसा
भरोसा
समीर कहाँ है ? ईश्वरचंद्र जी ने घर में प्रवेश करते हुए पूछा ।
कहाँ रहेगा ? बाहर दोस्तों के साथ मिलकर पढ़ रहा होगा !
सब तुम्हारी लाड़ प्यार का नतीजा है, अभी रात के दस बज चुके हैं और महाशय अभी तक घर नहीं लौटे हैं !
कितनी बार कहा है जब तक नौकरी नहीं लग जाती, कुछ टियुशन वगैरह कर ले, कुछ आय भी हो जाएगी और मन भी लगा रहेगा !
मगर न ऽ ऽ कोई क्यों मेरी सुने ? दोस्तों के साथ मिलकर आवारागर्दी कर रहा होगा ! !
ऐसे होती है प्रतियोगिता की तैयारी ? ?
उस जमाने में जब मैं बैंक और रेलवे की परीक्षा दिया करता था तो करीब दस घंटे- --
अजी छोड़ो न ऽ ऽ पत्नी ने टोकते हुए कहा
उस जमाने की बात छोड़ो ,आज सरकारी नौकरी पाना आसान है क्या ? ?
जाओ हाथ मुँह धो लो, गरम रोटी बन रही है, खाना खा लो।
समीर कोशिश तो कर रहा है, जवान बेटा है ज्यादा बोलना भी ठीक नहीं।
ईश्वरचंद्र एक दीर्घ श्वास छोड़ कर कुर्सी पर बैठ गए।
बेटी प्रिया ने पिताजी को पानी लाकर दिया।
दिन भर टी.टी.इ. की ड्यूटी निपटा कर ईश्वरचंद्र काफी थक जाते थे। उम्र भी हो गई थी, महीने भर बाद उनकी रिटायरमेन्ट थी।
दो बेटियों की शादी हो चुकी थी। उनकी दो और बेटियाँ काॅलेज में पढ़ रही थी।
बेटा समीर ग्रेजुएट है और दो वर्षों से सरकारी नौकरी की चेष्टा में लगा हुआ है।
इन दिनों ईश्वरचंद्र काफी तनाव में रहते थे। रिटायरमेन्ट की तिथि नज़दीक आते जा रही थी, और उनका दिमाग नाना प्रकार के उधेड़बुन में लगा रहता ।
पी.एफ. से जितने पैसे मिलेंगे उससे प्रिया की शादी तो हो जाएगी। गाँव का मकान बेचकर और कुछ लोन लेकर उन्होंने यह मकान ख़रीद लिया था। मगर केवल पेंशन से घर चलाना मुश्किल होगा !
इन चिन्ताओं के कारण उन्हें रात में ठीक से नींद भी नहीं आती थी। ऊपर से बी.पी.,शूगर जैसी आधुनिक बिमारियों ने भी उन्हें घेर लिया था ।
सुबह उठकर उन्होंने समीर से कहा, बेटा मैं तुम्हें डोनेशन देकर बाहर पढ़ने भेज न सका ----। मेरे पास उतने पैसे नहीं थे---''।
पिताजी मुझे और समय दीजिए, मैं कुछ न कुछ कर लूँगा !
अब ईश्वरचंद्र जी चुपचाप रहने लगे थे, किसी से ज्यादा बातें नहीं करते थे।
कल उनका रिटायरमेन्ट का प्रोग्राम है।
आज रेलवे की अंतिम ड्यूटी करनी है।
सुबह उठकर नहा धोकर पूजा पाठ किया और जाने के लिए तैयार होने लगे।
सुनो मालती ! हम सब कुछ दिनों के लिए बाहर घूम आएँगे ! फिर मैं कुछ प्राइवेट जाॅब कर लूँगा---।
सुनिए जी आप उतने मायुस मत होइए ! सब ठीक हो जाएगा !
ईश्वर चंद्र जी मुस्कराते हुए बाहर निकल गये ।
दोपहर में घर पर फोन आया- ---ईश्वरचंद्र का एक्सिडेंट हो गया है, वे अस्पताल में भर्ती हैं---।
समीर अपनी माँ के साथ दौड़ा -दौड़ा अस्पताल पहुंच गया।
सहयोगी ने बताया कि टिकट चेकिंग के दौरान उन्होंने कहा कि उनकी तबियत ठीक नहीं है। फिर बाथरूम गये, आते समय ट्रेन के दरवाज़े के पास हाथ धो रहे थे, अचानक उनका सर चकराया, वे खुद को संभाल नहीं पाए और बाहर गिर गये ।
मैं भी दौड़ते हुए गया मगर देर हो चुकी थी।
सहयोगी ने रोते हुए कहा- --सब कुछ पलक झपकते हो गया था।
डाक्टर ने आकर कहा ईश्वरचंद्र को होश आया है और वे समीर से मिलना चाहते है ।
समीर अंदर चला गया। पिता ने आँखें खोल कर समीर के माथे पर हाथ रखा और एक कागज़ उसके हाथों में थमा कर सदा के लिए आँखें बंद कर ली।
दो दिन कैसे बीता, समीर को कुछ पता ही नहीं चला। आज अंतिम संस्कार के बाद समीर श्मशान में एक सूखे वृक्ष के नीचे बैठा था। उसे
रह -रह कर पिता का मुस्कुराता चेहरा याद आता, और आँखें गीली हो जाती। उसने पाॅकेट में हाथ डाला तो कागज़ का टुकड़ा निकल आय । समीर कागज़ पढ़ने लगा- --
"प्रिय बेटा,
मैंने बहुत सोच समझ कर यह कदम उठाया है ।
मैं अपनी नौकरी तुझे दिये जा रहा हूँ। मुझे तुझपर पूरा भरोसा है।
बहनों की शादी धूमधाम से करना और अपनी माँ का ख्याल रखना।
सदा खुश रहना। पत्र को पढ़ने के बाद फाड़ कर फेंक देना ।"
पत्र पढ़कर समीर के हाथ पाँव काँपने लगा, पिताजी ये आपने क्या किया???
वह ज़ोर- ज़ोर से रोने लगा ।
कुछ लोग उसके नज़दीक आने लगे थे,
उसने कागज़ को फाड़ कर हवा में उड़ा दिया ।
समीर को लगा कि वे कागज़ के टुकड़े न होकर उसके पिताजी है, जो आसमान में उड़े चले जा रहे हैं।
समीर ने रोते हुए हाथ उठाकर कहा- -
-"पिताजी मैं आपका भरोसा टूटने नहीं दूँगा।"