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chandraprabha kumar

Classics Inspirational

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chandraprabha kumar

Classics Inspirational

भृंगी कीट द्वारा प्राप्त शिक्षा-२४

भृंगी कीट द्वारा प्राप्त शिक्षा-२४

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एक भृंगी कीड़ा जिस किसी कीड़े को पकड़कर अपने छत्ते मे रखता है, वह कीड़ा भय के मारे भृंगी कीड़े का चिन्तन करते -करते उसी का आकार प्राप्त कर लेता है। दत्तात्रेय जी ने उससे सीखा कि मनुष्य एकाग्र होकर अपना मन किसी में लगा दे ,तो उसी वस्तु के जैसा हो जाता है। इसलिए तन्मय होकर भगवान का ही चिंतन करना चाहिए।

दत्तात्रेय जी कहते हैं- हे राजन् ! एक बार एक बर्र (भृंगी )ने एक कमजोर कीड़े को अपने छत्ते में जबरन घुसने के लिये बाध्य किया और उसे वहीं बन्दी बनाये रखा।उस कीड़े ने भय के कारण अपने बन्दी बनाने वाले का निरंतर ध्यान किया और उसने धीरे धीरे बर्र जैसी स्थिति प्राप्त कर ली। इसी प्रकार मनुष्य भी भय से , राग से,द्वेष से ,प्रेम से या किसी भी भाव से अपने मन को जिसमें लगा दे ,एकाग्र कर दे ,वह उसी स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। 

 वास्तव में किसी विशेष वस्तु का निरन्तर ध्यान करते रहने से मनुष्य की चेतना उस वस्तु के गुणों से पूरित हो जाती है। अत्यन्त भय के कारण वह छोटा कीड़ा बड़े बर्र के लक्षणों तथा कार्यों में ही लीन था और इस तरह वह बर्र के अस्तित्व में प्रवेश कर गया। ऐसे ध्यान के कारण उसे अगले जीवन में बर्र का ही शरीर प्राप्त हो गया। चेतना की ऐसी तल्लीनता से मनुष्य को अगले जीवन में वैसा ही स्वरूप प्राप्त होगा ,जिसका वह चिंतन करता रहता है।यह शिक्षा कीट जगत से सीखी जा सकती है ।

यदि हम सीखना चाहें , तो बहुतों से बहुत कुछ सीख सकते हैं । पेड़ - पौधों से,फूल- पत्ती से हवा से, पानी से , हर चीज़ से कुछ न कुछ सीखने के लिए मिल ही जायेगा। यहॉं ध्यान में लाने की एक बात यह है कि भगवान् ही सबके गुरु हैं। वे ही भिन्न - भिन्न रूपों में हमें सिखाते रहते हैं। 


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