लास वेगास से न्यूयार्क की उड़ान
लास वेगास से न्यूयार्क की उड़ान
यू एस फ्लाइट में लास वेगास समय से क़रीब डेढ़ बजे दिन में प्लेन में बैठे।प्लेन ने धरती छोड़ी, सारा दृश्य छोटे से परिदृश्य में सिमट गया। कोलोराडो रिवर, अलग- अलग ब्लाक सब दिखाई दे रहे थे। एरोप्लेन नीले आसमान की ओर धीरे -धीरे उठता गया ।यहाँ तक कि बादलों के ऊपर से उड़ने लगा ।पूरी तह सफ़ेद बादलों की लगी थी,रुई से भी सफ़ेद ,बर्फ़ीली चादर सी। ऊपर नीला आसमान ।साफ़ नीला आसमान। लगता था कि नीली छत के नीचे सफ़ेद ग़लीचे के ऊपर से प्लेन चला जा रहा है।
दृश्य की मनोरमता में खोई हुई थी कि अचानक एक सफ़ेद धूल उड़ी,वह धूल नहीं उड़ते बादल थे। तेज़ी से चलते हुए। जैसे पेंटिड डेज़र्ट में धूल का ग़ुबार उठता है, गुलाबी धूल का गोल चक्कर में, ऐसे ही यहाँ सफ़ेद धुआँ सा उठा। तेज़ी से चलते हुए वह रुई के फाहे सा हल्का होकर बादल बन गया। छोटे बादल ,बड़े बादल ,बादलों का रेला सा तेज़ी से दौड़ रहा था। बीच बीच में आसमान झांकता ,उधर ऊपर बादलों की पतली झीनी चादर तेज़ी से दौड़ रही थी, उड़ रही थी, भाग रही थी, नीचे मोटा ग़लीचा बादलों का बदस्तूर बिछा हुआ था।अचानक बादल सारे आसमान में छा गये। ऊपर भी बादल ,नीचे भी बादल ,आगे भी बादल ,पीछे भी बादल ,दाएँ भी बादल , बाएँ भी बादल।लगता है कि सफ़ेदी के अनंत विस्तार के अलावा कुछ नहीं है। इतना घना कि कहीं नीलिमा का पता नहीं।
फिर थोड़ा और आगे बढ़े तो बादल नीचे झुक आए । आसमान का नीलापन दिखाई देने लगा। लेकिन जहाँ नीलापन दिखाई दे रहा था वहॉं सफ़ेद सुरमई बदल दौड़ रहे थे ,फैल रहे थे ,सिमट रहे थे तरह तरह की आकृति बनाते ,रंग बनाते । सफ़ेद के कितने शेड, सुरमई के कितने शेड। नीचे के बादलों का ग़लीचा अब हट गया है और ज़मीन झांकने लगी है। लेकिन हरियाली की जगह कालिमा दिखाई दे रही है। पानी का भ्रम होता है। पर और आगे जाकर साफ़ रोशनी में ज़मीन , हरियाली के शेड ,ज़मीन पर पीले पैच सब दिखाई दे रहे हैं।
ज़मीन से ऊपर सफ़ेद दुग्ध धवल बादल के नन्हे टुकड़े इधर - उधर फैले हुए और उसके ऊपर प्लेन ,उसके ऊपर नीला सुरमई आसमान। कैसी अजब छटा है! कैसी कारीगरी! कौन बुन रहा है यह सब ? बाहर क्षितिज पर नीलिमा एवं धवलिमा ऐसी मिल गई हैं कि कहाँ आसमान ख़त्म हुआ ,कहाँ बादल शुरू हुए ,कहॉं धरती है ,सब कुछ गड़मड़ हो रहा है। नीलिमा एवं धवलिमा का मिलन।
प्लेन का लंबा पंख दिखाई दे रहा है किसी चिड़िया के लंबे डैने जैसा ,जिसकी नोक पर बल्ब जल रहा है। डैने के नीचे दो काले छोटे पर से निकले हैं। बादलों की कितनी लेयर हैं ! कभी प्लेन मंद गति से चल रहा है ,गति का पता नहीं चलता ,एकदम स्थिर,डैने हिलते तक दिखाई नहीं देते। पर कभी कभी ज़ोर से हिचकोले लेकर प्लेन अपना आभास करा देता है। कभी ऊपर उठता मालूम होता है ,कभी नीचे गिरता। एक सॉंय - सॉंय की आवाज़ लगातार कान में बनी हुई है। यह प्लेन की ही गति की आवाज़ है। कभी डैने तिरछे झुकते हैं, तो कभी सीधे होकर ऊपर को उठते हैं।45-50 हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर प्लेन चल रहा है ,पॉंच सौ मील प्रतिघंटा की गति से। नीचे कोई आबादी नहीं। सब कुछ जनशून्य दिखाई देता है। शून्य का असीम विस्तार। जिसमें केवल प्लेन की आवाज़ ही शांति भंग करती है। आस -पास के पैसेंजर धरती से संबंध जोड़ते हैं, नहीं तो कितने एकाकीपन का आभास होता है और विराट के आगे अपनी क्षुद्रता का भान। इस विराट में हमारी जगह कहॉं है ?
बादलों का पहाड़। सफ़ेद एवरेस्ट की चोटी का भ्रम। पूरी क़तार पहाड़ों जैसी। मोटी घनी तह। लगता है कि सफ़ेद बर्फ़ीले पहाड़ के नीचे साफ़ समुद्र का पानी है। पर यह दृष्टि भ्रम है। न वह पहाड़ है , न नीचे सागर है। ये बादल हैं जो खेल रहे हैं । क्षण भर में रंग बदलेंगे। नीचे की धरती दूर से नीला आभास दे रही है। और लो ! यह बादलों का पहाड़ बिखर गया जैसे किसी बच्चे ने अपने ताश के पत्तों का पहाड़ बिखरा दिया। धूल सी उड़ी और बादलों की चादर सी बिछ गई। चंदोवा सी। जिसमें सफ़ेदी कम,धुँधला सा धूल का रंग भी समा गया है। यह सारे में फैल गया है। अब धरती के दृश्य सब लुप्त हो गए और ऊपर नीचे सब जगह बादल ही बादल । जिन्हें चीरता हमारा हवाई जहाज़ चला जा रहा है गंतव्य की ओर। इतनी तेज़ सांय-सांय शुरू हो गई है कि बारिश होने का एहसास हो रहा है ,पर बारिश हो नहीं रही है। सफ़ेद दैत्याकार कुहासा सा सारे में फैल गया है,कुछ दिखाई नहीं देता ,सिवाय सफ़ेदी के। नीलिमा , हरीतिमा ,सुरमई बादल ,कुछ नहीं। बादल भी चलते फिरते अठखेलियां करते दिखाई नहीं दे रहे। सब जगह लगता है कि धुन्ध ही धुन्ध है। और धुन्ध को चीरते हम बढ़ रहे हैं।
प्लेन की यात्रा इतनी अच्छी भी हो सकती है , यह सोचा नहीं जा सकता। प्रतिपल दृश्य बदलते हैं। खिड़की के पास बैठने का अपना सुख है। उससे नीचे का भी देखा जा सकता है जब प्लेन धीरे - धीरे ऊपर उठता है ,और जब नीचे के दृश्यों को पार करता आगे बढ़ता है। कोई -कोई व्यक्ति कहते हैं कि “प्लेन की खिड़की के पास कोई नहीं बैठना चाहता ,सब कोई आइल में ( किनारे की सीट पर)बैठना चाहता है ।”पर आइल में वही बैठना चाहेगा जो या तो सोता है या पढ़ता है और बाहर ऑंख उठा कर देखना भी नहीं चाहता। उन्हें बादलों की अठखेलियों में समय बिताना समय का नष्ट करना लगता है। पर यह धरती से कुछ समय के लिए ऊपर उठना कितने आमोद से भर देता है ,मन हल्का कर देता है ,वे नहीं जानते।
हम लास वेगास देखकर न्यूयॉर्क वापिस जा रहे हैं। लास वेगास अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध अमेरिका का एक प्रमुख शहर है, जिसे “ एंटरटेनमेंट कैपिटल ऑफ वर्ल्ड “ भी कहा जाता है, जो अपनी चमक- दमक, लाइट, जुआ, और मनोरंजन के लिए जाना जाता है ।यहॉं कुछ प्रसिद्ध रिसोर्ट और कैसीनो हैं , इसीलिए इसे ‘सिन सिटी’ भी कहा जाता है।यात्रा के बीच में चार्लोट डगलस अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में प्लेन बदलेंगे,जो उत्तरी कैरोलिना, अमेरिका में है।
कुछ ही देर में बादलों की धुन्ध फिर साफ़ हो गई। बादलों के कंगूरों पर सूर्य की किरणें चमकने लगीं। सफ़ेद बादल अलग से दिख रहे हैं ,नीला आसमान अलग से दिख रहा है। मोटे मोटे बादलों के ऊँचे ऊँचे ढूह लग रहे हैं।जहॉं बादलों की झीनी झीनी चादर बिछी है वहॉं नीलिमा का आभास हो रहा है। धरती दिखाई नहीं दे रही है। लग रहा है कि बादलों की उबड़- खाबड़ धरती के ऊपर प्लेन उड़ रहा है। नीलिमा, शुभ्रता एवं पीत आभा का अजीब संगम है। अद्भुत सौंदर्य है।” क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयताः।” जो क्षण क्षण में नवीन रूप पाये, वही सुन्दरता है। इसलिए प्रकृति नित नवीन है। हर बार नए प्रयोग। अतीत से कोई मोह नहीं।तेज़ी से बनते बिगड़ते दृश्य। हम भी यात्रा समाप्ति पर फिर रोज़मर्रा की जिन्दगी में रम जायेंगे। न ये बादल याद रहेंगे, न यह उड़ान।
अभी पॉंच बजे का समय लास वेगास के अनुसार है। जैसे जैसे शाम उतर रही है बादल स्वर्णाभ होते जा रहे हैं। घने मोटे बादल स्वर्णाभ हो चमक रहे हैं और बादलों का धुंआ या भाप नीचे उड़ रही है। जगह जगह स्वर्णाभ टापू से बन गये हैं। धरती नहीं झॉंक रही। बस नीलिमा का विस्तार नज़र आता है।
हरीतिमा एवं नीलिमा एकाकार होकर पानी का आभास दे रही हैं। कोई चित्रकार होता तो अपनी तूलिका से चित्र उकेर देता। पर नभ के अपार विस्तार पर क्षण क्षण बदलते परिदृश्यों को एक छोटे से फलक पर उकेरना संभव नहीं। इसका एक छोटा टुकड़ा ही पकड़ में आ सकता है ,वह भी पूरी तरह नहीं। स्वर्णाभ, पीताभ और नीलाभ के कितने शेड है यह कहे नहीं जा सकते हैं केवल महसूस किए जा सकते हैं। श्वेत के भी कितने शेड हैं यह केवल अनुभव किए जा सकते हैं। सुरमई सफेद, गुलाबी सफेद, पीताभ सफेद, नीलाभ सफेद, धूल भरा सफेद,धुन्ध लिए सफेद। आकाश के अनन्त फलक पर पूरी कुशलता से उस अदृश्य चितेरे ने अपना कमाल दिखाया है।आज प्लेन में बैठकर उसे देखने का सौभाग्य हमें मिल गया।
छिपता सा सूरज आसमान में रोशनी भरे दे रहा है।ढलते सूरज का यह दृश्य अनोखा है। कभी बदली में छिपता सूरज , कभी चमकता सूरज, कभी बादलों को गुलाबी रंगता सूरज ,तो कभी धरती को बदली में डुबाता सूरज।
लगता है कि घटाएँ घिर आई हैं। शायद पानी बरसेगा। पर बरस नहीं रहा । बादल लुप्त होकर अब बस हल्के गुलाबी ,हल्के बैंगनी,हल्के नीले,हल्के सफेद रंग, हल्के सुरमई रंग रह गए हैं। और प्लेन इन सबसे अनजान एकरस गति से उड़ रहा है ,साथ-साथ हम भी उड़ रहे हैं।बाहर बारिश बरसने जैसा एहसास हो रहा है ,पर खिड़की से बूँदें दिखाई नहीं दे रही हैं। शायद पानी नहीं बरसेगा। पर बदली घिरकर अंधेरा किए दे रही हैं।
दूर छोर पर एक मोटी लकीर शुभ्र मेघों की खिंची है। जिसमें बीच -बीच में गुलाबी रंग भरे हैं और ऊपर नीचे कालिमा लिए हल्का आसमानी रंग। अद्भुत सौंदर्य है। नीचे धरती दिखनी शुरू हो गई है उसके ऊपर बादलों की झीनी- झीनी चादर से तेज़ी से भाग रही है। प्लेन के पंख का रंग और बादलों के नीचे से झाँकती धरती का रंग एकाकार हो रहा है ।ऊँचे बहुत ऊँचे ,बादलों से ऊँचे हमारा प्लेन उड़ रहा है कि हम नीले आसमान तले, यहाँ तक कि अपने एरोप्लेन के नीचे बादलों की अठखेलियाँ और रंग बिरंगे बदलते हुए रूप देख पा रहे हैं। धीरे धीरे अंधेरा घिरने लगा है। लगता है कि लास वेगस व न्यूयॉर्क के समय का संधिकाल है। समय की सीमा पार करके जल्दी शाम आ गई है। तीन घंटे पहले आ गई है।
कभी कभी कैसा तो लगता है ,जो करना है तुरंत कर डालो। समय हाथ से निकला जा रहा है। कुछ नहीं बचेगा। सब ख़त्म हो जाएगा। हमारी अंजुली बहुत छोटी है। लेने को बहुत कुछ है। फ़ोकस बिखरता है तो ज़िंदगी बिखरती है। हर समय असफलता ठीक नहीं। कुछ नहीं सीखो तो असफलता भी बेकार है। कुछ नहीं करो तो दृष्टिकोण भी बेकार है। फिर लगता है कि क्या करो ? सब कुछ समय के पर्दे पर खो जाएगा। कुछ नहीं बचेगा। न हमारा हर्ष ,न हमारा विषाद।
पता नहीं कैसी विभूतियां थीं जो अभी तक मानव जाति पर राज कर रही हैं। श्रीराम ,श्रीकृष्ण को गए हज़ारों वर्ष हो गए ,हम आज भी भारत में उन्हीं को याद किए जा रहे हैं। एक धरती ये भी है जहाँ उन्हें कोई नहीं जानता, उनका नाम तक नहीं सुना । सब अपने भोग विलास में मग्न।जुआ ,शराब, रमणी- बस यही उनकी जिन्दगी है। खाते हैं, पीते हैं, ऐश करते हैं और मस्त रहते हैं। बच्चे, माता-पिता, बूढ़े- सबकी समस्यायें निपटाने का तरीक़ा फ़रक- फ़रक है। स्त्रियों का पहनावा खान- पान अलग है।
सोसायटी अलग है। यहॉं होमलैस हैं, अर्थात् जिनका कोई घर नहीं है। घरेलू हिंसा है। एक पड़ोसी दूसरे को नहीं जानता। दुनिया के समाचार टी. वी. पर सुनते हैं, पर दूसरे के सुख -दुःख में भागीदार नहीं।कोई कुछ सूचना नहीं देता। कोई मदद नहीं करता। जो कुछ सूचना लेनी हो, कंप्यूटर पर खोजो या फिर कष्ट उठाओ।
पूरा अंधेरा घिरने लगा है। हमारा प्लेन भी उतरने वाला है। घोषणा हो चुकी है।चार्लोट डगलस अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ( उत्तरी कैरोलिना ,अमेरिका)आने वाला है। शहर की बत्तियाँ दिखनी शुरू हो गई हैं।प्लेन नीचे उतरने वाला है। न्युयार्क का टाईम शुरू हो गया है। रात्रि के नौ बजने वाले हैं। लास वेगास के समय से शाम का छह बजना चाहिए ।पर यहॉं रात हो चुकी है। हम तीन घंटा आगे आ गये।
हम रात्रि के नौ बजे चार्लोट डगलस अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे। फिर आधे घंटे बाद साढ़े नौ बजे प्लेन में बैठे। रात्रि दस बजे ( न्यूयार्क टाईम से) प्लेन चला। प्लेन टेक ऑफ कर रहा है। अँधेरे में जगमगाती शहर की रोशनी पीछे छूटी जा रही है। प्लेन के टी.वी. स्क्रीन पर सूचना दिखाई गई, फिर रिमोट कंट्रोल से टी. वी. का पर्दा अन्दर चला गया और फिर छत बन गया।क्या चमत्कार है! सब जगह चमत्कृत करने वाली चीज़ें हैं।धन कुबेर कंट्री में यात्रा कर रहे हैं।
एयर- होस्टेस अच्छी है ,वह प्लेन चलने पर निटिंग ( बुनाई)करने बैठ गई। प्लेन की पीछे की सीटें ख़ाली हैं, जहॉं हम बैठे हैं। मैं खिड़की वाली सीट पर हूँ, बीच की सीट ख़ाली है। फिर बेटी व बच्चे बैठे हैं।रात्रि के साढ़े ग्यारह बजे तक न्यूयार्क पहुँचेंगे।
एयरपोर्ट पर मटर, कौर्न और गाजर का सूप दिया गया।फिर टमाटर, फूलगोभी और मशरूम का पिज़्ज़ा खाया। पिज़्ज़ा अच्छा था कैलिफॉर्निया का।
आसमान में बाएँ हाथ पर चॉंद निकला है। अंधेरे आसमान में चन्द्रमा का प्रकाश चमक रहा है। नीचे चार्लोट शहर की बत्तियाँ जगमगा रही हैं। प्लेन के ऊपर की स्टडी लाइट जला ली है और मैंने लिखना शुरू कर दिया है। धीरे धीरे प्लेन ऊपर उठ रहा है और शहर की बत्तियों की चमक हल्की पड़ती जा रही है। अंधकार घनीभूत हो रहा है। ऊपर से ही पर्यवलोकन अच्छा लग रहा है। नीचे मानव निर्मित विद्युत् का ,ऊपर प्राकृतिक प्रकाश चंद्रमा का फैल रहा है। शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा है। आज 24 अगस्त है ,29 अगस्त की पूर्णिमा है, अर्थात् आज नवमी तिथि है। प्लेन आगे बढ़ रहा है। धीरे - धीरे शहर पीछे छूट रहा है।
कितने ही व्यक्ति ऐसे होते हैं कि उनका सामीप्य सुखद होता है।एक इंग्लिश महिला मेरे पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गई। उसकी मेरे बग़ल वाली खिड़की की सीट थी पर वह इत्मिनान से पीछे बैठ गई और बोली कि “कोई एतराज़ करेगा तो आगे आ जाऊँगी।सीट ख़ाली है।” तो अब मैं भी अपनी जगह छोड़कर पीछे वाली सीट पर आ गई।
रात के अंधकार को चीरता और शोर मचाता प्लेन चल रहा है। मेरे दाएँ हाथ पर पीठ पीछे चंद्रमा आसमान में चमक रहा है। नीचे इक्की दुक्की बत्तियाँ दिखाई दे रही हैं ।प्रकृति अंधकार की चादर ओढ़े बैठी है। अब न बादलों की अठखेलियां हैं , न सूर्य किरणों की ऑंखमिचौली ,न आकाश की नीलिमा है, न नीचे पृथ्वी की हरीतिमा।पहिले से दैत्याकार धुँध को चीरता हुआ हवाई जहाज़ बढ़ रहा था, अब अंधकार को चीरता हुआ बढ़ रहा है। पर शुक्ल पक्ष होने से नवमी के चंद्रमा का सुखद प्रकाश फैल रहा है और मार्ग को आलोकित कर रहा है। जहाँ जहाँ चाँद की रोशनी पड़ रही है,उस मार्ग पर चंद्र -ज्योत्स्ना प्रकाश बिखेर रही है।चॉंद के प्रकाश से दूर का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ लग रहा है। अभी तक नीचे के मकान दिखाई दे रहे हैं। छोटे छोटे मकान चाँद की रोशनी में नहाए हुए । चाँद की रोशनी अंधेरे में कितना प्रकाश फैला सकती है यह पहली बार जाना। ‘उजला पाख’ का मतलब आज स्पष्ट हो गया। एक चाँद से पूरी रात आलोकित हो रही है। धरती तक वह प्रकाश फैल रहा है। सपनों को जगाता मीठी नींद सुलाता चाँद का प्रकाश। शांत ,सरल ,स्निग्ध ज्योत्स्ना का मद फैलाता चाँद। यह प्रकृति का रात्रि बल्ब है। मध्याह्न के प्रखर सूर्य प्रकाश से कितना विपरीत। प्रकृति निस्तब्ध है। अंधकार में कुछ दिखाई नहीं दे रहा सिवाय नभ में चमकते चाँद के। शहर धीरे धीरे पीछे छूट रहा था। नीचे की बत्तियाँ विरल होते होते लुप्तप्राय हो गई हैं।
मेरे से ज़रा सी असावधानी हुई और पैन नीचे सीट पर गिर गया। पकड़ने की कोशिश की तो और गिर गया। पैन तो उठा लिया पर उसकी कैप का पता नहीं चला। अब प्लेन रुकने पर ही ध्यान से देखना होगा।
एयर होस्टेस शीतल पेय व पानी लेकर आई । शीतल पेय में क्या लेना है यह पूछा- कोकाकोला,जिंजरैला, एपल जूस, औरेंज जूस और क्रैनी एपल जूस। मैंने कोकाकोला लिया और जिंजरैला लिया। नतिनी ने मेरे से कहा-“ जिंजरैला ले लीजिये, पेट के लिए अच्छा रहता है”।उसने स्वयं भी जिंजरैला लिया। साथ में स्नैक्स में प्रैटजेल का पैकेट लिया, उसे दिया।
खिड़की से नीचे झॉंककर देखा, पूरा अंधेरा था। बाहर कुछ भी दिखाई नहीं दिया। कोई बत्ती भी नहीं टिमटिमा रही थी।ऊपर चॉंद भी आसमान में नज़र नहीं आ रहा था।अंधेरे को चीरता तीव्र गति से वायुयान बढ़ा चला जा रहा था। रात का संगीत सुनने के लिए मैंने पैन को विश्राम दिया ,रात्रि के ग्यारह बजने वाले थे।
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