छोटी- छोटी चीजें
छोटी- छोटी चीजें
ये छोटी छोटी चीज़ें हमें कितनी ख़ुशी से भर देती है , हमें पता भी नहीं चलता पर किसी को उसके जन्मदिन पर गुलदस्ता दे देना ,किसी को सुबह सुबह नमस्कार कर लेना ,किसी को बाहर जाते समय यह कह देना कि हम बाहर जा रहे हैं ,या बाहर से आकर कह देना कि हम आ गए हैं बहुत मायने रखता है । हम समझ नहीं पाते कि ये साधारण सी चीज़ें भी कितनी ख़ुशी से भर देती हैं । दूसरों का ध्यान रखो ,अच्छा व्यवहार करो ,उनके प्रति स्नेह दर्शाओ ,और उनके सुख-दुख में शामिल होओ ,तो यह देखने में छोटी पर प्रभाव में बहुत बड़ी बात है।
मेरी छोटी बहिन बहुत अकेली हो गई है और अब इस वय में अपने बेटे के पास बाहर विदेश में रह रही है । छोटा सा घर। दसवीं मंजिल पर मकान। कहीं आना न जाना, कहीं मिलना ना जुलना। बस एक कमरा और एक खटिया, यहीं तक ज़िंदगी रह गई। कभी- कभी बाहर ड्राइंग रूम में दस- पन्द्रह मिनट टी. वी. देख लिया और बस। या कभी उस पर राम कथा का कोई धार्मिक एपिसोड देख लिया जो भारत से प्रसारित होता है।
वह अकेली थी। बेटा बहू भी बाहर हफ़्ते भर के लिए चले गए थे। पीछे में उसका बर्थ -डे आया। उसने फ़ोन पर मुझसे कहा कि -“मेरी बर्थ- डे है।” मैंने उसे बधाई दी और कहा कि-“ अच्छा है , तुमने बता दिया। मुझे याद ही नहीं रहा था।”
फिर दूसरे दिन बात हुई तो उसने बताया कि - “ मेरी मेड ने मुझे दो बड़े- बड़े लाल गुलाबों का बुके लाकर दिया था, मेरे जन्म दिन वाले दिन। वह फूल वाले बाज़ार गई थी, जो यहॉं से दूर था और पैदल ही गई और आई।और दो बड़े- बड़े गुलाबों का अच्छे से बना हुआ बुके मुझे दिया।मुझे बहुत खुशी हुई। यह मेरे जन्मदिन का पहला बुके था। आज तक किसी ने मुझे बुके नहीं दिया था , ना फूल दिए थे।”
यह छोटी- छोटी बातें ज़िन्दगी में कितनी खुशी भर देती हैं, हमें पता भी नहीं चलता। इसके बाद का जन्मदिन देखने के लिए मेरी बहिन नहीं रही। लगता है कि भगवान् ने उसकी यह इच्छा भी पूरी कर उसे अपने पास बुला लिया। वह बुके उसका पहला और आखिरी बुके रहा। ज़िन्दगी कितनी रहस्यमयी है, कुछ पता नहीं चलता कब क्या हो जाय।
आजकल के बच्चे कहीं जाते हुए किसी से कुछ पूछते नहीं हैं।बिना बताये निकल जाते हैं। कहॉं जा रहे हैं, कब तक आयेंगे कुछ नहीं बताते।
एक बार मेरी सास मेरे पास आई हुई थी। मेरे बच्चे जब स्कूल जाते थे तो उनसे बोलकर जाते-“ बड़ी अम्मा! हम स्कूल जा रहे हैं।” आने पर बताते कि -“ आ गये।”
वैसे भी कभी कहीं बाहर खेलने जाते तो उनसे बताकर जाते कि-“ हम बाहर जा रहे हैं।” आकर लौटकर भी कहते कि-“ हम आ गये।”
इससे बड़ी अम्मा को बड़ी खुशी मिलती । वे मेरे से कहने लगीं-“ बच्चे बहुत प्यारे हैं। बड़ा ध्यान रखते हैं। मेरे से बताकर जाते हैं, आने पर बताते हैं।”
बड़ा आदमी क्या चाहे ,ज़रा सा आदर ज़रा सा प्यार। इसी से खुश हो जाते हैं।आजकल सब अपने में इतने व्यस्त हैं कि इतनी सी बात भी नहीं कर पाते।
