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chandraprabha kumar

Others

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chandraprabha kumar

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यात्रा बीजिंग की एरोप्लेन से

यात्रा बीजिंग की एरोप्लेन से

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           कभी सोचा नहीं था कि चीन जा सकेंगे, घूमने के लिए। पर  कुछ  वर्ष हुए,अचानक जाने का प्रोग्राम बन गया।नई दिल्ली से एक ट्रैवल एजेंसी ४५ लोगों का ग्रुप लेकर  हवाई जहाज़ से चीन की राजधानी बीजिंग और शंघाई तथा जियॉंग आदि जगहों पर ले जा रही थी और ठहरने आदि का  भी प्रबंध करा रही थी। अच्छा अवसर मिल गया चीन घूमने का।हम भी परिवार सहित  मध्य जून में चल दिए। चीन में पुरानी सभ्यता के संस्कार अभी भी हैं। यदि चीन भ्रमण के लिए पति साथ नहीं जा रहे हों तो पति की अनुमति जरूरी है अन्यथा वीज़ा नहीं मिलेगा।पति को लिखकर देना पड़ता है कि पत्नी की चीन यात्रा पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।  अर्थात् पति की अनुमति आवश्यक है, तभी वीज़ा मिलेगा, अन्यथा नहीं।

            तैयारी के साथ एरोड्रोम पहुँच गए।नई दिल्ली से प्लेन सुबह साढ़े चार बजे बीजिंग के लिए चल दिया। भारत  में सूर्योदय होने वाला था, पर बीजिंग में सूर्योदय हो चुका था ढाई घंटा पहले ही। जून की गर्मियों में सुबह का समय। प्लेन की खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगे। आसमान नीचे एकदम काला दिखाई दे रहा था, ऊपर आसमानी और बीच में नारंगी रंग के कितने ही शेड थे। पूरी पट्टी नारंगी रंग की। गहरा और हल्का नारंगी रंग। कौन अदृश्य चित्रकार इतने बड़े कैनवास पर चित्र बना रहा था ! हम विस्मय विमुग्ध देख रहे थे।

       इतने में एयरहोस्टेस ने आकर  खिड़की बन्द कर दी। एकमात्र दृश्य विलुप्त हो गया।क्यों खिड़की बन्द की नहीं मालूम। धीरे- धीरे प्लेन आकाश में ऊँचे उठा। प्लेन की सब लाईटें बुझा दी गईं। बाहर के प्रतिक्षण बदलते रंग चमकते रहे।जब प्लेन ऊपर आसमान में पूरा उठ गया तो फिर बत्तियॉं जला दी गईं, खिड़की खोल दी गई।बाहर धीरे- धीरे प्रकाश घना होता जा रहा था, फैल रहा था। लगता था कि खिड़की के बाएँ हाथ पर पूरब है। धीरे- धीरे प्रकाश प्रखर होता जा रहा था, जैसे अचानक बल्ब की रोशनी तेज हो गई हो।

      थोड़ा आराम के लिए पैर फैलाने के लिए कुछ जगह खोजने लगे, तभी निगाह गई, कुछ ऊपर उठा हुआ दिख रहा था , उसे नीचे किया, वह पैर टिकाने के लिए ही था।  आराम का साधन था। पैर फैलाकर आराम से बैठ गये।

    बाहर धीरे- धीरे लालिमा घटती जा रही थी, धवलता बढ़ रही थी कि ऑंखों में चौंध आनी शुरू हो गई। प्लेन टेक ऑफ के बाद और ऊँचा उड़ा। लगा जैसे आसमान में एकाकी चिड़िया की तरह उड़ रहे हैं। कहीं कुछ नहीं। शून्य का विस्तार। धरती से ऊपर ।धरती की उलझनों से दूर । हवा में ठण्डक। उत्तर की ओर जा रहे हैं। सहसा सूरज निकला। धूप छा गई। बादलों में चमक आ गई। इतनी चमक कि देखना मुश्किल था। आसमानी रंग में सफ़ेद रंग मिलकर धूमिल सा हो रहा था।

      अब हम बादलों के बीच से उड़ रहे थे। सफ़ेद बादलों का विस्तार, ऊपर आसमानी आसमान। धरती से यह नज़ारा नहीं  देख सकते, इसलिए अनमोल था।  हवाई जहाज लम्बे पंख पसारकर आसमान में उड़ रहा था।साइंस का चमत्कार । दो घंटे में एरोप्लेन से शंघाई से बीजिंग पहुँच जाते हैं जबकि ट्रेन से चौदह घंटे लगते हैं। सब कुछ फलांघते हुए आसमान ही आसमान से उड़कर पहुँच जायेंगे। सफेद धूसर बादल। बादलों से ऊपर प्लेन उड़. रहा है। बादल नीचे हैं, ऊपर हम हैं। नीला आसमान देख पा रहे हैं। प्रकृति का यह विराट सौंदर्य मन में असीम शांति भर रहा है।उदात्त विचार आ रहे हैं।

      सूर्य एकदम नेत्रों के सामने खिड़की से होकर आ गया है ।बादलों में चमक भर गई है। इतनी शुभ्रता कि आँख ठहर नहीं पा रही है, चौंधिया गई है।  सूर्य की ओर देखना मुश्किल है। अंबरमणि अपने पूरे वैभव में चमक रहा है ।दिगंत तक प्रकाश का विस्तार हो रहा है। प्रति क्षण प्रकृति रंग बदल रही है। यह सब किसके अनुशासन से हो रहा है? इसमें हमारा योगदान तो कुछ नहीं है। हम तो केवल विस्मय से निहार रहे हैं।सूर्य ने वातायन से प्रवेश कर तपाना  शुरू कर दिया है। भोर में जो कंबल ओढ़ रहे थे उसकी कोई ज़रूरत नहीं रहीं।  शाम पॉंच बजे के आस- पास   प्लेन बीजिंग पहुँच जायेगा।

       शंघाई एयरपोर्ट पर प्लेन से उतरे, यहॉं पूरी चैकिंग फिर से हुई ।  इसके बाद फिर प्लेन में बैठे। प्लेन से चलते ही रहे। धरती दिखाई नहीं दे रही, सिवाय सूर्य के कुछ नहीं।

      बादल तरह तरह के चित्र बना रहे हैं। कहीं बर्फ के गोले की तरह सफ़ेद  नीली आभा लिए  घोड़े जैसी शेप, तो कहीं हाथी जैसी, कहीं टीले जैसी  ,कहीं घाटी सी। धूसरित आकाश में नए नए चित्र उभर रहे हैं ।भारत से भी पूरब जा रहे हैं सूर्य की ओर। बादलों को चीरकर  वायुयान बढ़ता जा रहा है अविराम  स्थिर गति से  एक सी ऊँचाई पर। सिवाय प्लेन की घर्र घर्र की आवाज़ के सब कुछ शांत निस्तब्ध।

      एयर होस्टेस जूस सर्व कर रही है। पहिले औरेंज जूस दिया, फिर एप्पल जूस दिया।, दोनों अच्छे थे। यह एहसास हुआ कि इतनी देर से प्यास लग रही थी। सुबह पॉंच बजे दाल, चावल, मलाई कोफ़्ता और बन दिया गया था। कॉफ़ी व जूस। तब से अब चार बजे तक कुछ नहीं ।भूख का भी एहसास हो रहा था। पता नहीं था कि लंच सर्व होगा या नहीं।

         रास्ते भर एनजॉय करते हुए जा रहे हैं। कहा भी गया है कि-“  रास्ते के साथ-साथ प्रसन्नता है।” सारे तेवर देख रहे हैं । यूं भी अच्छा, वो भी अच्छा। इतनी ऊँचाई पर निस्तब्ध प्लेन में उड़ते हुए कोई आकर जूस पकड़ा जाए कितना तो अच्छा लगता है।

       सफ़ेद के भी कितने शेड होते हैं,नीले के भी कितने शेड। क्या कोई कलाकार इन दैवीय रंगों का मिश्रण कर सकता है ? कभी  रंगों में इतनी कम चमक कि देखने में आँखों को सुकून मिले ।कभी इतनी चमक कि देखा ही न जाये।  रंग वही सफेद । आभा अलग अलग । जहॉं सफ़ेद और नीला मिले हुए थे, अब एक स्पष्ट लाइन खिंच गई है।आकाश उल्टे कटोरे सा ऊपर भास रहा है। बादल नीचे दरी की तरह बिछे हुए हैं। फिर ये सब  दृश्य समाप्त हो गया।  अब नीचे सफेद , ऊपर नीला रंग और बीच में हमारा प्लेन।

      बादल  फिर धुनी हुई रुई से उठ रहे हैं। या जैसे खूब फिंटकर फूल गये हैं। बादल वही,  पर प्रतिक्षण रंग रूप व आकृति पलट रही है। क्षण क्षण में नवीनता।नीलिमा के कितने शेड ! धवलिमा के कितने शेड ! बीच में सुरमई के शेड।रंगों का यह खेल जो सुबह से चल रहा है, तब सतरंगी  था।अब दो रंगों का खेल , पर अगणित परिवर्तन रूपान्तरण । लगता है कि तूलिका हर बार चित्र पलट देती है। जैसे जितने मानव उतने रूप जबकि सामग्री वही।

     रुई के हल्के- हल्के फाहे से बादलों की ऑंधी सी चल रही है। शब्द यहॉं मौन। देखो और  खो जाओ । महसूस करो प्रकृति की भव्यता को, दिव्यता को।

 वर्णन करने में शब्द असमर्थ हैं। बादल कभी नीचे मोटे सफ़ेद कालीन  से बिछ जाते हैं ,कभी उड़ते हैं  कभी ठहर जाते हैं ,कभी टीले से उठते हैं ,तो कभी लहरों से बल खाते हैं। लगता है कि सफेद समुद्र लहरा रहा है , लहरें उठ गिर रही हैं।फिर नदी की तरह एक तरफ बादल बह रहे हैं। नीचे भी नीला आसमान, ऊपर भी नीला आसमान। यह विराटता ये अनन्तता , इससे कहीं  ओर छोर नहीं। दृष्टि में कोई रुकावट नहीं। असीम विस्तार, असीम छटा। मन अभिभूत हो जाता है।

      कहीं बादलों के टीले से, कहीं दोनों तरफ़ सफ़ेद किनारे बीच में नीली नदी बहती सी। कहीं-कहीं बादल पतले पतले ऐसे उठे हुए हैं  कि दूर से बर्फ़ से ढके पेड़ों का एहसास देते हैं अंदर से झाँकती नीलिमा हरीतिमा सी लगती है। कहीं बादल पहाड़ों की खोह जैसे लग रहे हैं जिसमें नीलिमा  कालिमा लिए खोह है  ,पर्वत कन्दरा हैं। ऊपर नीला आसमान उठते बादलों से धुंधला रहा था, कहीं धुंधला सफेद कहीं हल्का नीला।

    कहीं बादल ख़ुद पहाड़ों की तरह उठ रहे हैं, नीचे पतली नीली लकीर छोड़ते हुए ,जो गहरी घाटी में किसी क्षीणकाया नदी का एहसास दे रहे हैं। बादल जितनी तेज़ी से बनते हैं, उतनी ही तेज़ी से बिगड़ते हैं। या बिगड़ना कहना ग़लत होगा-क्योंकि एरोप्लेन तीव्र गति से भागा जा रहा है , तो आगे बढ़ने पर चित्र पलट जाता है। अब बादल आसमान में इस तरह तैर रहे हैं जैसे नीचे वाले बादलों पर चंदोवा ताने हुए हैं। या जैसे फैली हुई नदी के बीच बीच में टापू हैं।

      नीला सफ़ेद नीला सफ़ेद, ये किस चित्रकार के रंग हैं ! यह सूर्योदय नहीं है। सूरज चमक रहा है। पर सफ़ेद और नीले का खेल हो रहा है। इतने बड़े कैनवास पर यह किसकी तूलिका है जो चित्ताकर्षक है ,मन मोह रही है , ऑंखें हटने का नाम नहीं ले रही हैं। मानो प्रति पल बदलते सौंदर्य से मोहित हो नेत्रों से ही रसपान कर रही हैं। सबसे सुखद है प्रकृति का साहचर्य ।

     समुद्र , पर्वत, नीर में जो सौन्दर्य ,शीतलता ,आध्यात्मिकता है, उसका  सबका मिश्रण यहाँ एक जगह है।इतनी बार हवाई जहाज़ से यात्रा की। कभी रात्रि के अंधकार में की, जहॉं कुछ दिखाई नहीं देता। पर खुले आकाश में चमकते दिनमणि के सान्निध्य में बादलों की ये अठखेलियाँ, नीलिमा के ये अनोखे रंग मन को मोह ले रहे हैं। लगता है कि पूरा यात्रा का आनंद यहाँ आकर ठहर गया है। प्रति पल बदलते रूप! कितना लिखा जाए ,कितना रंग बिखेरें।शब्द तो वही हैं ।प्रतिपल नया अर्थ कहाँ से लाएं।

     बादल अब  नीचे पहाड़ की चोटी बना रहे हैं। लगता है कि नीला समुद्र फैला है। बीच बीच में बादलों के पहाड़ उठे हुए हैं,ऊपर भी नीला नभ ,जैसे मैनाक समुद्र से प्रकट हुआ हो  मारुति को विश्राम देने। कभी वीथिका से बादल बिछ जाते हैं, जैसे तीन लेन वाली सड़क हो, जहॉं बीच में नीली धारी की लाईन पड़ी है। पूरब की धरती की ओर बादलों के बीच की यह यात्रा अनूठी है।

     चरैवेति चरैवेति- यह लेखनी भी अविराम चले, इन फुदकते खेलते बादलों की तरह अनायास ही। नीलिमा के विविध रंग तरह तरह के शेड दे रही हैं बादलों को। यहॉं बादलों को स्पर्श तो नहीं कर पा रहे पर नयनों से स्पर्श करने जैसा अहसास हो रहा है।यह हवाई यात्रा बनते बिगाड़ते रूप पलटते बादलों के बीच की यात्रा है, जहाँ आस्मां समुद्र जैसा लग रहा है और हम  उसे चीरते हुए आगे बढ़ रहे हैं। बादल और आसमान का भेद ही ख़त्म है। बस नीलापन और शुभ्रता का खेल है। सुरमई कब गाढ़ा होकर सलेटी काला बन जाता है, पता नहीं चलता।

       धूप आँखों पर आने लगी है। सूर्य सामने यहाँ का दर्शन दे रहा है। लगता है कि सुरमई चादर में सूरज लिपटा है। आसमान एक है पर कितनी गहराई का आभास।

     घोषणा हुई कि “हवा टरबुलेंट है  सीट बेल्ट बाँध लें। टॉयलेट यूज़ नहीं करें।” पूर्वीय आकाश था ,हवा की कहीं बात नहीं थी। हवा ने भी अपनी शक्ति अपनी मौजूदगी का एहसास करा दिया। यह हवा ही है जो इतनी तेज़ी से बादलों को उड़ा रही है ,तरह तरह की आकृति बना बिगाड़ रही है, उन्हें चला रही है ,कभी रुई के नरम फाहों सा, कभी कठोर चट्टान सा। लगता है कि जैसे नदी में बहुत सारे हिप्पोपोटामस स्नान कर रहे हों, और पहाड़ी किनारे पर निकली हुई हो।

      अमेरिका में ग्रैंड केन्यन में पर्वत थे , पेनटिड डेज़र्ट में रेत के दून थे । यहाँ आकाश में बादलों का खेल है। कितनी जगह प्रकृति अलग अलग अपना रूप दिखा रही है। पर वही सूरज है ,वही नभ है, वही चॉंद, वही धरा। ‘वसुधैव कुटुंबकम् ‘ सही कहा गया है।यह असीम विस्तार फिर भी सब एक।

    प्रशांत महासागर देखने कैसे हम लॉस एंजेलिस गए थे, यहॉं भी वहीं प्रशांत महासागर है लेकिन दूसरे छोर पर। सातों समुद्रों वस्तुतः एक हैं, पृथ्वी को घेर परिक्रमा सी करते हैं, पर कहने में अलग अलग हैं।

       ओह ! अब नीला आसमान नीचे है, ऊपर सूरज के पास शुभ्र बादल हैं। यह उलटफेर कैसे हुआ ! नीचे आसमान थोड़ी बैंगनी रंगत लिए नीला है ।ऊपर हल्का आसमानी शेड लिए बादल है ।सब रंग एक दूसरे में गड़मड़ हो रहे हैं। एक कविता की पंक्तियां याद आ रही हैं-

  “वृन्दावन में नव मधु आया

   मधु में मन्मथ आया,

    उसमें आकर्षण,

   हाँ राधा आकर्षण में आई,

    राधा में माधव, 

     माधव में राधा मूर्ति समाई।”

           यहॉं भी श्याम और गौर का ऐसा मेल है कि श्याम गौर में मिला है या गौर श्याम में मिला , कुछ पता नहीं चाहता । कौन किसमें तिरोहित हुआ। यहॉं दोनों रंगों में होड़ मची है। कभी एक रस हो रहे हैं, कभी अलग- अलग। कभी कोई भेद पता नहीं चलता।

         बदली घिर आई तो सभी धूल धूसरित हो गया ।न नीला है न गौर। दोनों मिलकर मटमैला हो गये। सूरज छिप गया, बादलों से ढका। चॉंद से भी क्षीण नज़र आ रहा है। कह नहीं सकते कि इसी मार्तण्ड का तेज इतना फैला था कि आँखें चौंधिया रहीं थीं।

   अब  घोषणा हो गयी कि “ सीट बेल्ट बाँध लें,प्लेन उतरनेवाला है। बीजिंग आने वाला है।”

     बादलों की अठखेलियाँ गायब हो गईं। सूरज छिप रहा था। बादलों का एक कोना गुलाबी हो गया। नीले में गुलाबी कोना।ऊपर चॉंद जैसा क्षीणकाय सूरज। अब धूसरित बादलों में हल्के नारंगी रंग की लम्बी नदी सी। बादलों की एक ऑंधी आई और रहा सहा सूरज भी ढक गया।शाम जैसा समय हो गया। यात्रा भी समाप्ति की ओर है। यात्रा शुरू की  थी सूरज उगने के साथ , खत्म  हो रही है सूरज छिपने के साथ।

     अब बीजिंग के ऊपर से प्लेन उड़ रहा है।  अक्षर  बी की ध्वनि पी की तरह होने से  अंग्रेज़ों ने  इसे पेकिंग कहना शुरू किया  था, पर अब फिर बीजिंग कहा जाने लगा। नीचे हरियाली का विस्तार है और लाल व नीले आसमानी रंग के छतवाले मकान दिखाई दे रहे हैं। एक लम्बी सी पतली नदी बहती दिख रही है।  जो शायद योंगडिंग नदी है, जिसके किनारे बीजिंग बसा है।ऊपर से बहुत साफ-सुथरा अच्छे से प्लानिंग किया गया व्यू दिख रहा है। मकान व बिल्डिंग बहुत अच्छे लग रहे हैं। धीरे धीरे सारे शहर का चक्कर काटता प्लेन  एरोड्रोम की तरफ जा रहा है। लम्बे से ड्राइव के बाद प्लेन लैंड कर गया। एक बस आकर हमको दूसरी तरफ ले गई। वहॉं एरोड्रोम से बाहर निकले।

       एजेण्ट से तय की गई बस में बैठे और होटल राइट व्यू की बारहवीं मंजिल पर रूम नम्बर 1215 व 1216  में ठहरे। बहुत सुन्दर व्यू रास्ते में मिला।ऊँची-ऊँची अनगिनत इमारतें। तरह तरह के डिज़ाइन व वास्तुकला के नमूने। चौड़ी सड़कें। दोनों तरफ़ हरियाली, खुली खुली जगह , दोनों तरफ़ वृक्षों की क़तार । बीच- बीच में हैज, आने व जाने हेतु अलग- अलग लेन। नियमित ट्रैफिक, बहुत कम ट्रैफिक लाइट। जाम कहीं नहीं मिला , जो हमारे यहॉं दिल्ली , मुम्बई ,कोलकाता में आम है।सड़कें साफ- सुथरी। भव्य गगनचुंबी इमारतें ,अट्टालिकाएँ । ऊपर नीला आसमान। डूबते सूर्य की किरणें अट्टालिकाओं के शीशों से टकराकर प्रतिबिंबित होकर उन्हें  भी लाल बना दे रहीं थीं। नीचे के पानी में सूर्य की करणें पड़तीं तो वहॉं सूर्य चमकने लगता।

      जितना सुंदर प्राकृतिक दृश्य था ,उस से कम सुंदर शहर नहीं था। न्यूयार्क में मैनहैटन  व वहाँ की ऊँची इमारतें देखी हैं,पर यहाँ की भव्यता व विशालता के सामने वे भी छोटी लग रहीं थीं ।मैनहट्टन का एरिया छोटा है, वह लम्बाई में हडसन नदी के किनारे बसा है , दोनों तरफ ऊँची अट्टालिकाओं से बीच का आकाश बहुत टेढ़ा मेढ़ा व संकरा लगता है। इसके विपरीत यहॉं जगह ही जगह फैल से है। उन्मुक्त अट्टालिकाएं हैं,खुला -खुला सब कुछ है। सुनते हैं कि यह सब काया कल्प दस वर्षों के अंदर हुआ है और सरकार द्वारा सारी इमारतें बनवाई गई है ,कोई प्राइवेट  इमारत नहीं है।

    सुबह पूर्वीय आकाश के प्राकृतिक सौंदर्य ने अभिभूत किया था। शाम को यहाँ  की भव्यता ,विशालता ,रख रखाव  व सफ़ाई एवं कलात्मकता ने मोह लिया। लगता है दुनिया का सबसे वैभवशाली विशाल क्षेत्र देख रहे हैं। उस पर यह दो हजार पुरानी संस्कृति की धरोहर को संजोए हुए है।

       यह विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो आज भी जीवित है। पुरातनता एवं आधुनिकता का ऐसा संगम दुर्लभ है। कैसे यह ऊँचाई यहाँ के लोगों ने हासिल की ,यह जानने का विषय है। बिना दृढ़ इच्छा -शक्ति ,संकल्प एवं लगन के ऐसा नहीं हो सकता। कठोर परिश्रम से ही वैभव बढ़ता है ,लक्ष्मी की कृपा होती है।यहाँ की युवा पीढ़ी सुन्दर, स्वस्थ,दुबली-पतली लगी । अनावश्यक मोटापा  नज़र नहीं आया।

         चीन जाने के बारे में कभी सोचा नहीं था। कैसे तो प्रोग्राम बना और कार्य रूप में परिणत भी हो गया । और आज हम यहॉं चीन में बीजिंग की सड़कों पर घूम रहे हैं, यहॉं के गंगा होटल में शाकाहारी हिन्दुस्तानी खाना खा रहे हैं। लगता है कि यह ट्रिप यादगार रहेगा।

     रात्रि का समय हो गया। यहॉं का समय ढाई घंटा आगे है। यहॉं से सुबह क़रीब साढ़े चार बजे उठना  भारत के दो बजे के आसपास है।

      सुबह उठकर चीन की ऐतिहासिक दीवार देखने जाना है ।सुबह आठ बजे निकलना है। सात बजे नाश्ते के लिए पहुँचना है ।सुबह उठने का अलार्म लगाकर रात्रि विश्राम किया।






               












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