भोर का सपना
भोर का सपना
आदरणीया बुआ
आपका पत्र पाकर बेहद क्षोभ हुआ। दुनिया का कथन 'औरत ही औरत के राह में रोड़ा अटकाती है' से औरत होने के नाते मेरी सहमति नहीं होती है लेकिन
मेरी लाड़ली बहन के आँखों में ज्वालामुखी का साया और चेहरे पर अलावोष्णिमा होना स्वाभाविक था, किसी के यह कहने पर 'अकेली औरत रह जाने का मजा ही मजा है'। इसे कहते हैं किसी के पाँवों के नीचे अंगारों का दरिया बिछाना।
मेरी प्यारी बहना का ज्वालामुखी बन उसके ऊपर ही फट पड़ना चाहिए था। उसका अकेले रहने का निर्णय उसका अपना चयन है। किसी के द्वारा उसपर लादी गयी मजबूरी नहीं। ये चेहरे को चमकाए रातों के घाव को क्रीम के नीचे छुपाये तितली बनी बिचरती हैं उनकी हँसी के पीछे छिपे मजबूरी को बाखूबी जानती है किटी पार्टी की जनता। ऐसी महिलाओं के लिए साहित्य किटी पार्टी ही तो है। संवेदनहीन रबड़ की गुड़िया सी सजी शीशे के पीछे से झांकती। आजकल के रोबोट उनसे बेहतर हो रहे हैं।
बहना का ख्याल रखियेगा और उससे कहियेगा कि ऐसी बातों के लिए ही इन्सानों को दो कान मिले हुए हैं। जिनका सिरा ना तो दिल की ओर जाता है और ना दिमाग की ओर। राह में मिले छोटे-छोटे रोड़े पहाड़ के शीर्ष पर चढ़ने के माध्यम होते है। उदाहरण यूँ ही थोड़े न बना जाता है।
सभी को यथायोग्य प्रणामाशीष
आपकी भतीजी