भक्तमाल
भक्तमाल
प्रतिदिन मंदिर में खूब चढावा आता। पंडित मक्तमाल
के परिवार का खर्च इसी मंदिर की चढो़त्री से ही चलता था। वह निस्वार्थ भाव से , लोभ, लालच को छोड़कर, संतुष्टि भाव से पूजा पाठ करता था। मंदिर में आसपास के गाँव के बहुत से लोग आते थे। एक दिन उस मंदिर में एक परी आई। उसने पंडित भक्तमाल से कहा-"पंडित जी मैं भी पूजा में शामिल होना चाहती हूँ। परन्तु यह परी रूप केवल तुम्हारे और भगवान के सामने है जिस दिन तुम मेरे बारे में किसी से कह दोगे तो मैं अपने लोक चली जाऊँगी"
भक्तमाल बोला -तुम तो दूसरे लोक की रानी परी हो। उसने कहा भगवान तो सबके होते हैं हमारे तुम्हारे। पंडित ने कहा - ठीक है तुम सुबह सात बजे और शाम को सात बजे आ जाया करो। रानी परी अब ऐसा ही करती। एक दिन भक्तमाल की पत्नी ने देखा यह कौन सी नारी है जो इतना सज -धज के आती है उसने उस पर नजर रखना शुरु कर दिया। उसने देखा यह तो मंदिर में आते -जाते समय बाहर ही वेश बदल लेती है और रोज़ भगवान की आरती में शामिल हो जाती है। उसने पति से कहा- अरे! तुम जानते हो वह पंख वाली महिला कौन है। पंडित ने कहा- मंदिर में बहुत से लोग आते हैं मुझे तो भगवान से मतलब है। वह बोली- मैंने छिपकर देखा है। वह मंदिर में आते जाते समय रूप बदल लेती है। भक्तमाल डर गया वह कुछ ना बोल सका। उसे याद था जबसे रानी परी आई है। मंदिर की रौनक और चढा़वा बढ़ गया है। वह भगवान की कृपा मानकर स्वीकार कर लेता। लोभी पत्नी ने कहा- अरे! पूजा पाठ छोडो़ ,उसी परी से धन दौलत माँग लो। चैन से रहेंगे। सुन लो अगर तुम धन दौलत नहीं लाए तो घर में घुसने नहीं दूँगी। भक्तमाल घबरा गया। दूसरे दिन भक्तमाल ने अपनी व्यथा परी से कह सुनाई।
उसने कहा- मैं कल तुम्हें मालामाल कर दूँगी।
भक्तमाल ने कहा- मुझे धन नहीं चाहिए। आप मेरी पत्नी की लोभी बुद्धि बदल दीजिए।
उसने कहा- मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती हूँ।
भक्तमाल घर नहीं गया। वहीं मंदिर में सो गया। सुबह-सुबह रानी परी ने भक्तमाल के घर को धन दौलत से भर दिया। उनकी लोभी पत्नी दौड़ती -दौड़ती मंदिर आई। पंडित भक्तमाल ने कहा- तुम्हें दौलत मिल गई।अब मैं चला।
भक्तमाल को लगा मेरी आत्मा परी के पास से होते हुए आकाश की ओर जा रही है। पत्नी को अपनी ग़लती समझ में आ गई। वह पछता रही थी। पर अब...'पछताय का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत।'