आशीर्वाद
आशीर्वाद
राजा फकीरचंद अपने राज्य में न्याय के लिए जाने जाते थे। बहुत मन्नतों के बाद उनकी रानी सिकोली ने पुत्र-पुत्री
जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। राज्य में खुशियाँ मनाई गई। राजपुत्र सौगात का सभी आदर करते परन्तु राजपुत्र सौगात की शैतानियों से पूरा राज्य परेशान। वे जिसे भी देखते घडे़ में पानी ले जाते हुए या किसी के घर में मिट्टी के घडे़ भरे हुए अपनी गुलेल से फोड़ देते। यह बात राजा के पास पहुँची राजा ने रानी सिकोली से कहा- रानी बोली- पूरे राज्य में ताँबे, पीतल के बर्तन पानी भरने के लिये बँटवा दिए जाएँ। वैसा ही किया गया। रानी और उनकी बहन शैलानी ने बहुत समझाया- सौगात अपनी
शैतानियों से बाज नहीं आता। वे उन्हीं बर्तनों पर प्रहार कर सबको परेशान करते। राजा रानी हैरान परेशान।अन्त में राजा
ने प्रजा के साथ न्याय किया और राजपुत्र सौगात को राज्य से काले जाने का आदेश निकाल दिया।
रानी ने अपने पुत्र को एक पोटली देकर कहा- इसे सदा जेब में रखना, ये पोटली जब तक तुम्हारे पास रहेगी, हमेशा तुम्हारी जीत होगी।
सौगात ने अपना घोड़ा बुलाया और चल दिया। चलते-चलते एक राज्य में पहुँचा। उस राज्य के राजा को शतरंज का व्यसन तो था ही साथ उस राज्य के प्रत्येक नागरिक को इस खेल में रुचि थी। खेल के राजा को वह स्वयं का प्रतीक मानता था। सौगात नदी में घोड़े को जल पिलाने लगा तभी वहाँ धोबी ने कहा- पहले दो-दो हाथ कर लो। जीत गये तो ये राजा के कपड़े हैं सब तुम्हारे और हार गए तो घोड़े को पानी पिलाकर चल देना।
सौगात को पोटली की याद आई माँ ने कहा था यह हमारा आशीर्वाद है तुम्हें हमेशा जीत मिलेगी। वह बैठ गया और खेल में जीत गया। उसने राज्य के कपड़े नहीं लिए घोड़े को पानी पिलाकर वहीं पेड़ की छाया में सो गया। धोबी दौड़ा -दौड़ा राजा के पास जाकर बोला एक घुड़सवार आपको खेल में चुनौती दे सकता है।
राजा ने उसे सिपाहियों के द्वारा बुलवाया। राजा ने कहा- यदि तुम जीत गए तो यह राजपाट सब तुम्हारा। सौगात को माँ के आशीर्वाद की पोटली याद आई। वह बैठ गया और राजा को मात दी। राजा घबरा गया। उसने राजसभा बुलाई, किसी ने कहा उससे बात कर आधा राज्य, किसी ने कहा उसे मार डाला जाय। तभी एक बूढ़े मंत्री ने कहा- उससे आप अपनी कन्या का विवाह कर दीजिये। यदि योग्य हुआ तो आपका वारिश मिल जाएगा। सभी को उनकी बात अच्छी लगी। सौगात का विवाह सौगन्धा से हो गया। राजा ने अपनी पुत्री के लिये सुन्दर महल बनवा दिया।
वे दोनों बड़े प्रेम से रहने लगे। एक दिन सौगन्धा ने वह पोटली खोल ली, उसमें चार कौंड़ियाँ और एक पत्र जिसमें लिखा था बेटा- अब तो शैतानी छोड़ो और माँ के पास लौट आओ। सौगात ने अपनी कहानी कह सुनाई। सौगन्धा के पिता ने बहुत सा धन देकर दोनों को विदा किया। यहाँ फकीरचंद और सिकोली अपनी कन्या से परेशान उसका कहना था। भैया आएगा तभी मैं विवाह करूँगी।
राजा फकीरचंद को खबर मिली कोई राजा उनके राज्य में चढ़ाई करने आ रहा है। फकीरचंद ने कहा- आने दो अब बूढ़ा हो
गया, मेरा वारिस तो है नहीं, उसी समय सौगात सौगन्धा के साथ उपस्थित हो बोला पिता जी ! यह आपकी बहू और मैं आपका बेटा सौगात। राजा-रानी, बहन, मंत्री सभी खुश हो गए और राज्य में खुशियाँ छा गईं।
