नारायणी

नारायणी

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गर्मी की छुट्टियों का मजा लेने अपने बच्चों के साथ नारायणी अपने मायके श्रीनगर आ गई। दोनों बच्चे नाना-नानी, मामा-मामी और उनके बच्चों से मिलकर बडे़ खुश थे। नहीं आ पा रही थी तो उनकी बड़ी बहन क्योंकि उसकी ससुराल में शादी

थी।

सभी बच्चों को नारायणी चिड़ियाघर घुमाने ले गई। सभी बच्चों ने खूब आनंद उठाया। सभी बच्चे झूला झूलने लगे। नारायणी वहीं सीमेंट की कुर्सी में बैठ गई, कुछ देख बच्चों को देखती रही और स्वयं बचपन के विचारों में खो गई। वह अपने परिवार में सबसे छोटी थी। जीजा जी तरक्क़ी जंगल विभाग के साहब के रूप में हो गई। सभी खुश थे दीदी के साथ नारायणी भी चली गई। जीजा जी को पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम था। उनका बड़ सरकारी क्वार्टर था। उनके घर में बहुत से झाड़ पेड़ थे। उन पर जो पक्षी आते नारायणी कभी उन्हें दाना देती, कभी रोटी चावल। पेड़ों से पक्षी नीचे आ जाते। बन्‍दर भी आ जाते। दीदी जीजा जी हिदायत देते रहते यह जंगल है। यहाँ कभी-कभी खतरनाक जानवर भी आ जाते हैं इसलिए अकेले बाहर मत निकला करो।नारायणी कहाँ सुनने वाली, वह तो कोयल के साथ कूकती कहीं, आम जामुन तोड़ने पेड़ पर चढ़ जाती। चपरासी आवाज लगाता, मेमसाब मुनिया पेड़ पर चढ़ गई।

दीदी की आवाज सुनकर वह नीचे आ जाती और दीदी से लिपट जाती। मैं कहाँ चढ़ी थी। एक दिन तो हद ही हो गई।

दीदी ने कहा आज तेरे जीजा जी का जन्मदिन है मंदिर चलते हैं, खाना बना लिया है। वहीं भंडारा करेंगे। नारायणी बाहर गई

और आवाज लगा हाथ से इशारा करने लगी आओ -आओ, आज हमारे जीजा जी का जन्मदिन है हमारे यहाँ भंडारा है।

पेड़ों से उतरकर ढेर सारे पशु -पक्षी आ गए। दीदी तैयार हो रही थी। नारायणी बडे़ मजे से कभी बन्दर को कभी चिड़ियों

को, तोतों को खाना खिला रही थी। तभी एक वनमानुष वहाँ आ पहुँचा वह उसे भी बड़े प्रेम से खाना खिला रही थी। उसी समय दीदी अन्‍दर से बाहर आई। जीजा जी जीप से उतरकर अन्दर आए।दोनों ने एक साथ आवाज लगाई ना .रा .य.णी..

वह भी डर गई। तभी वनमानुष ने नारायणी के सिर पर हाथ रखा और चला गया। सभी आश्चर्यचकित होकर नारायणी को

देख रहे थे। दीदी ने कहा- हो गया आपके जन्मदिन का भंडारा।

वाह री नारायणी। तभी बच्चे आ गए मम्मी घर चलिए। नारायणी को भी लगा कितना सुन्दर दृश्य था। बचपन का

समय ना चिन्ता न भय।


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