भारती
भारती
आज भारती की, भारती के मम्मी-पापा की खुशी का ठिकाना नहीं था। अभी अभी भारती की मैडम का फोन था-
भारती को तीरंदाजी निशाने में गोल्ड मैडल और एक लाख रुपये मिले हैं। दोनों को विश्वास ही नहीं हो रहा था। भारती के पापा बोले मैं भगवान के लिए मिठाई लेकर आता हूँ। यहाँ भारती की माँ खयालों में खो गई। वह भारती को डाँटती ही रहती। पढ़ाई में ध्यान लगा। देख मामा की लड़की के नब्बे परशेंट आए हैं और तेरे सत्तर।
भारती कह उठती पास तो हो गई ना।
माँ कुछ कहती इसके पहले ही भारती अपनी सहेलियों के साथ खेलने भाग जाती और आम, जामुन जो भी फल का सीजन हो, निशानेबाजी करती। कभी पत्थर से कभी चढ़कर तोड़ लाती। अपनी सखियों को बाँट देती और घर ले आती।
एक दिन उसे निशाना लगाते हुए उसके स्कूल के प्रिंसिपल ने देखा और उसे बुलाकर कहा- आज से तुम निशाने बाजी की प्रैक्टिस करोगी और सब सामान उपलब्ध करवा दिया।
जब बाहर जाने की बात आई तो उसके मम्मी ने मना कर दिया।
सर और पापा के बहुत समझाने पर उसने हामी भरी। भारती की माँ बाहर आओ आरती लेकर देखो भारती आ गई। पीछे
से मीडिया वाले भी आ गये। प्रश्नों के उत्तर देते हुए भारती ने कहा- आज मैं जो कुछ हूँ उसका श्रेय मम्मी पापा और और मैडम को देती हूँ। सभी ने हम सब तो तुम्हारे साथ हैं ही पर यह सब तुम्हारी लगन और मेहनत का परिणाम है भारती।