भीमा नायक
भीमा नायक
निमाड़ का एक और रॉबिनहुड -भीमा नायक
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1857 की क्रांति का एक नाम है ,भीमा नायक। भीमा नायक का जन्म निमाड़ी प्रदेश के पंच मोहाली गाँव में सन 1840 में हुआ था।'निमाड़ के रॉबिनहुड'के नाम से मशहूर भीमा नायक ने 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ अंबापानी के युद्ध में अपनी छाप छोड़ी थी। भीमा नायक एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने आजादी की जंग में अकेले अपने बूते अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दी थीं।
भीमा नायक का कार्यक्षेत्र बड़वानी रियासत से वर्तमान महाराष्ट्र खानदेश तक रहा। भीमा नायक ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अंग्रेजों ने धोखे से भीमा नायक की माँ को मण्डलेश्वर जेल (तब किला) धोखे से कैद कर लिया। कैद में ही भीमा की मां की मृत्यु हो गई। माँ की मृत्यु का समाचार पाकर भीमा नायक ने एक सौ पचास सैनिकों के साथ मण्डलेश्वर पर हमला कर दिया और किले को अपने कब्जे में कर लिया।
किला सैनिकों के सुपुर्द कर वह बड़वानी चले गए। उनके बड़वानी जाते ही अंग्रेजों ने दोबारा हमला किया और उन एक सौ पचास सैनिकों को सूली पर चढ़ा दिया और शवों को भूखे मगरमच्छों को परोस दिया।
अंग्रेज उन्हें कभी न पकड़ पाते किन्तु एक धोखेबाज, चंद्र पटेल की सूचना पर उन्हें पकड़ लिया गया। उन्हें पोर्ट ब्लेयर और निकोबार में रखा गया और 29 दिसम्बर १८७६ को अंडमान में फांसी दे दी गई।
उन एक सौ पचास सैनिकों के सम्मान में मण्डलेश्वर में फाँसी बेड़ी स्थित स्मारक बनाया गया है।
मध्य प्रदेश में एक सरकारी योजना,शहीद भीम नायक परियोजना का नाम उनके नाम पर रखा गया है। 21 जनवरी, 2017 को बड़वानी जिले के ग्राम ढाबा बावड़ी में भीम नायक स्मारक समर्पित किया गया।आज भी भीमा नायक की शहादत के किस्से धाबा बावरी की पहाड़ियों पर गूंजते हैं।
