Chandresh Chhatlani

Fantasy Inspirational

5.0  

Chandresh Chhatlani

Fantasy Inspirational

भेद-अभाव

भेद-अभाव

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मोमबत्ती फड़फड़ाती हुई बुझ गयी। 

अंधेरे हॉल में निस्तब्धता फ़ैल गयी थी, फिर एक स्त्री का स्वर गूंजा, "जानते हो मैं कौन हूँ?"

वहां बीस-पच्चीस लोग थे, सभी एक-दूसरे को जानते या पहचानते थे। एक ने हँसते हुए कहा, "तुम हमारी मित्र हो - रौशनी। तुमने ही तो हम सभी को अपने जन्मदिन की दावत में बुलाया है और हमें ताली बजाने को मना कर अभी-अभी मोमबत्ती को फूंक मार कर बुझाया।"

स्त्री स्वर फिर गूंजा, "विलियम, क्या तुम देख सकते हो कि तुम गोरे हो और बाकी सब तुम्हारी तुलना में काले?"

विलियम वहीं था उसने कहा, "नहीं।"


वही स्त्री स्वर फिर गूंजा, "शुक्ला, क्या तुम बता सकते हो कि यहाँ कितने शूद्र हैं?"

वहीं खड़े शुक्ला ने उत्तर दिया, "पहले देखा तो था लेकिन बिना प्रकाश के कैसे गिन पाऊंगा?"

फिर उसी स्त्री ने कहा, "अहमद, तुम्हारे लिए माँसाहार रखा है, खा लो।"

अहमद ने कहा, "अभी नहीं, अंधेरे में कहीं हमारे वाले की जगह दूसरा वाला मांस आ गया तो...?"

अब स्वर फिर गूंजा, "एक खेल खेलते हैं। अंधेरे में दूसरे को सिर्फ छूकर यह बताना है कि तुम उससे बेहतर हो और क्यों?"


उनमें से किसी ने कहा, "यह कैसे संभव है?"

उसी समय हॉल का दरवाज़ा खुला। बाहर से आ रहे प्रकाश में अंदर खड़े व्यक्तियों ने देखा कि उनकी मित्र रौशनी, जिसका जन्मदिन था, वह आ रही है। सभी हक्के-बक्के रह गए। रौशनी ने अंदर आते हुए कहा, "सभी से माफ़ी चाहती हूँ, तैयारी में कुछ समय लग गया।"

और बुझी हुई मोमबत्ती खुद-ब-खुद जलने लगी, लेकिन वहां कोई खड़ा नहीं था। सिर्फ एक कागज़ मेज़ पर रखा हुआ था। एक व्यक्ति ने उस कागज़ को उठा कर पढ़ा, उसमें लिखा था, "मैनें तुम्हें प्रकाश में नहीं बनाया... जानते हो तुम कौन हो?"



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