भारतीय सामाजिक और नैतिक मूल्य
भारतीय सामाजिक और नैतिक मूल्य


दिल्ली: रफ़्तार की राजधानी, जितनी भागदौड़ है यहाँ उतनी ही थमी सी ज़िंदगी है लोगों की।सब लोग व्यस्त हैं अपनी ही बनाई दुनिया में किसी को किसी की फ़िक्र ही कहाँ है। यहाँ हज़ारो ऐसे परिवार हैं जिनमें इंसान तो हैं मग़र उनमे इंसानियत गायब हो चुकी है। ऐसे ही एक परिवार की कहानी आप सभी के बीच रखता हूँ।
कानपुर शहर के एक छोटे से कस्बे से एक लड़का (अशोक) पढ़ाई पूरी करके दिल्ली में रोजगार के अवसर तलाशने निकला। शुरुआत में तो कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा मग़र जल्द ही उसे बेहतर नौकरी मिल गई। नौकरी करते हुए एक दिन उसकी मुलाकात उसी की कालोनी की एक लड़की से हो गयी। शाम को नौकरी करके जब अशोक अपने कमरे में आता तो वो लड़की भी अपनी छत पर आ जाती थी फिर दोनों दिन भर आपबीती एक दूसरे को बताया करते थे। ये मुलाकात दोस्ती से शुरू होकर ना जाने कब प्यार में बदल गयी उन दोनों को पता ही नहीं चला। उधर अशोक के माता-पिता काफी बुढ़े हो गए थे उन्हें अपने इकलौते बेटे की शादी की फ़िक्र सताने लगी। अशोक ये जानता था कि उसकी हर बात उसके माता-पिता मान जाएंगे तो उसने बिना उन्हें बताए उस लड़की से शादी कर ली। यह बात कुछ समय बाद अशोक के माता-पिता को मालुम हुई उन्हें बहुत गहरा धक्का लगा। यह बात अशोक की माँ सहन नहीं कर पाई और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। उनके दाह संस्कार के लिए अशोक अपनी पत्नी के साथ कानपुर आया। जहाँ उसे बड़े बुजुर्गों की खरी बातें अच्छी नहीं लगी। उस रात वो बहुत रोया, उसे वो सब बातें याद आ रही थी जो उसकी अक्सर उससे कहा करती थी कि
कब पैसा काम आता है मर जाने के बाददुआएँ देते हैं लोग खुश रहने की मर जाने के बाद जन्नत नसीब होगी या जहन्नुम किसने देखा है, कैसे जीते हैं लोग मर जाने के बाद?
उसकी पत्नी भले ही दिल्ली में पली बढ़ी थी मग़र वो थी एकदम भारतीय संस्कारी महिला उसे अशोक को सम्भाला और अपने ससुर जी की देख रेख करने के लिए उन्हें भी अपने साथ दिल्ली ले गयी। जहाँ उन सबका जीवन सुखमय बीतने लगा। कुछ समय बाद अशोक के घर एक नन्ही परी का जन्म हुआ जिसका नाम अशोक ने अपनी माँ (यशोदा) के नाम पर रखा। पोती को पाकर अशोक के पिता फूले नहीं समा रहे थे। यशोदा धीरे धीरे बड़ी हुई और अपने दादा जी के साथ दिनभर खूब धमाल मचाने लगी और अशोक का परिवार खुशहाली में जीवन बिताने लगा।
संदेश: भारतीय संस्कृति में पला हुआ व्यक्ति बाहरी चमक धमक से प्रभावित होकर भले ही गलत मार्ग पर क्यों ना चला जाए मगर जब उसे अपनी गलती का आभास होता है तो वो वापिस लौट आता है। किसी ने सही ही कहा है जीने के लिए साधन तो कहीं से कमा सकते हैं मग़र मरने के लिए जन्मभूमि की अभिलाषा रहती है।