जज़्बात
जज़्बात
लखनऊ : जितनी तहजीब है इस शहर में शायद कहीं नहीं फिर भी लोगों को जैसे इंतजार है किसी और का जिसे खुदा ने सिर्फ इनके लिए बनाया होगा
इन सबके बीच मैं भी इंतजार कर रहा था लेकिन किसी के आने का नहीं बल्कि किसी के पास जाने का। अब मेरे मन में थोड़ी सी भी उलझन ना थी इंतजार करने की मानो कांटो की घड़ियों से कोई अपना सा रिश्ता जुड़ गया हो, जो सुकून देता है और धड़कनें तेज करता है उससे मिलने से पहले !
एक दिन मेरा दिल इश्तहार देना चाहता था कि मुझे मेरा खुदा मिल गया, मुझे मेरा हमसफर मिल गया है जिससे मुझे बेइंतहा प्यार हो गया। काफी कोशिश की मगर यह कमबख्त आवारा दिल यह सोच कर चुप हो जाता कि कहीं यह हसीन खूबसूरत दुनिया उसे बदनाम ना कर दे मेरे नाम के साथ मेरा नाम जिसे मैंने असली मुकाम तक पहुंचाया भी ना था।
पहली मुलाकात कुछ यूं हुई कि हम अपना इम्तिहान और वह अपनी काबिलियत का फरमान दे रही थी। तभी उनकी एक छोटी सी दरख्वास्त कलम की थी, जो हमारे पास भी बस एक ही थी जो हम उन्हें दे बैठे। उनकी हमसे दरख्वास्त कलम की थी दिल मेरा खामखा कुर्बान हो गया।
अब हमारा इम्तिहान घड़ियों के पल गिन रहा था और हम इम्तिहान आधा करके चुपचाप उन्हें देख कर खुश हो रहे थे। उनकी काबिलियत का परचम उनके चेहरे पर सुकून की सांस के साथ जब लहराया तब हम ऐसे खुश हुए जैसे पूरी मेहनत हमारी सफल हो गई हो।
ये मोहब्बत ए दौर उस वक्त का था जब हम 11वीं के दाखिला के खातिर परीक्षा देने गए थे और वापस दिल देकर आए थे।
वो कब मेरी आंखों से ओझल हो गई मुझे पता ना चला। पूरे 30 दिन हम छत पर अकेले होकर ऊपर वाले से कहते रहे बस एक बार और रूबरू करा दे।
आज हमारा 11वीं का पहला दिन था और हमारा खुदा भी हम पर मेहरबान था। होता भी क्यों नहीं आखिर हमारा दिल-ए-कमबख्त जो उसके पास था। एक बार फिर हमारा खुदा खुद ब खुद हमारे सामने था हमसे रूबरू होने के लिए और करीब आ रहा था। उसे ना मेरा नाम पता था ना मुझे उसका फिर भी हमने बिना नाम लिए आंखों से ही उसका हाल पूछा जवाब अच्छा आया जो हमारे पक्ष में था। हम दोनों अब साथ साथ चलते चलते एक दूसरे को देखते हुए क्लास में जा पहुंचे।
अब तक कुछ खास तो हमने बयां किया ना था फिर भी उन्होंने हमें अपने पास बैठने की तरजीह दे डाली। उस पूरे दिन में हम अनजान से अच्छे दोस्त बन गए। हमें उन्हें सुनना और उनको हमारा बोलना पसंद था। उन्हें मेरी शायरियां और हमें उनकी गुस्ताखियां पसंद थी।
मेरी शायरी में छिपी जो वह खुद थी उस पर खुद को पाना चाहती और ना पाने पर कहती किसके लिए लिखा है ये !
वक्त ने करवट बदली और दोस्ती अब प्यार के फंदे पर चढ गई ।
दोस्ती का रिश्ता कभी पुराना नहीं होता। इससे बड़ा कोई खजाना नहीं होता। दोस्ती तो प्यार से भी पवित्र है।
क्योंकि इसमें कोई पागल या दीवाना नहीं होता।
अब से पहले कोई मुझे दीवाना कहता तो मैं चिढ़ जाता। अब कोई दीवाना कहता तो अच्छा लगता।
अब से पहले कोई मुझे पागल कहता तो मैं गुस्सा हो जाता। अब कोई पागल कहता तो खुश हो जाता।
ऐसा नहीं कि मेरा प्यार एकतरफा था उसने कई बार मुझसे जताने की बेकार कोशिश की लेकिन पगली कभी कह ना पाई। मेरे प्यार का ऐतबार उस पर कुछ इस कदर हुआ कि मेरी शायरी खुद-ब-खुद शायरी लिखने लगी। अब वो मुझे पढ़कर सुनाती और मैं उसकी आंखों में खो सा जाता, वह कहती
वो रिश्ता ही क्या जिसे सिखाना पड़े
वो प्यार ही क्या जिसे जताना पड़े
प्यार तो एक खूबसूरत एहसास है
वो एहसास ही क्या जिसे लफ्जों में बताना पड़े।
उसने मुझे एहसास कराया की बेइंतेहा प्यार और बेपनाह सच्ची मोहब्बत किसी इजहार की मोहताज नहीं होती सच्ची मोहब्बत तो एक मुमताज की मोहताज होती है|
धीरे धीरे वक्त बीता और एक दिन मेरे लफ्ज़ खुद-ब-खुद बिखरने लगे, मेरे शायरी मुझसे दूर जाने लगी।
वो दूर जाते जाते दूसरी राजधानी दिल्ली जा पहुंची और मैं इश्क का मारा सिर्फ कानपुर तक जा पाया
अब वो मुझे कुछ इस कदर भूल गई कि अब मुझे अपनी शायरी चुभने लगी| मेरी कलम अब रुक रुक कर दम तोड़ने लगी फिर भी मैं खुश था क्योंकि मुझे उससे सिर्फ इश्क ही नहीं बल्कि उसकी फ़िक्र थी... जो अब भी है...
वह खुश है मुझसे दूर जाकर अपने खुद के लोगों के साथ जो काबिल हैं उसके साथ के और मैं नहीं।