भाई साहब
भाई साहब
भाईसाहब यानी दादा हमारे पति के बडे भाईसाहब, जिनकी बडी ही रेस्पेक्ट करते थे,
पर अब नहीं करते। साफ सी बात है की आप का संबध जब ठीक था तो आप ठीक था तो आप बडे ही सरल और सहज थे या यों कहो कि अपना मतलब था तो आप ठीक ठाक थे। पर जब काम निकल गया तो आपका असली चेहरा सामने आया मतलब बेटा बेटी का पैदा होना से लेकर शादी विवाह तक फिर जब काम निकल गया तो पहचानते ही नहीं।
ऐसे लोगो से हम नफरत करते हैं।
हम मुँह पर तो बोलते नहीं। काहे कि बड़े हैं पर देखकर ही दिमाग गरम हो जाता है। आज भी वह दिन याद है जब अपमानित करते थे हम। मुँह सीले रहते थे पर अब तो शायद सब कुछ बिखर गया हैऔर कुछ भी टीक नहीं होना हैं तो हम बोल ही सकते हैं पर सच बताऊँ अब तो दिल करता है कि खूब बद्दुआ दूँ। पर दे ही नहीं पाती पर बहुत तकलीफ होती है बस आज यहीं तक। कल किसी नये किरदार पर बात करेगें।