बेवजह सीख

बेवजह सीख

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राजू एक कम्पनी में चपरासी की नौकरी करता था परिवार में माँ-बाप और उसकी पत्नी एक साल की बेटी परी छोटा और सुखी परिवार था।

अरे राजू कहाँ हो आजकल दिखाई नहीं देते।

अरे मोहन तुम आओ-आओ कैसे आना हुआ।

कुछ नहीं यार नौकरी छूट गई है। एक कम्पनी से फोन आया था। वो यहीं इसी शहर में है।

तो मिली नौकरी ?

हाँ मिल गई, रहने की व्यवस्था कम्पनी करेगी। घर का किराया बचेगा।

कौनसी कम्पनी है भाई? जे.एस कम्पनी।

अरे वाह...उसी में मैं भी काम करता हूँ तुझे कौनसी पोस्ट मिली है।

मेरे लम्बे-चौड़े डील-डौल को देखकर साहब ने सुरक्षा गार्ड की नौकरी दी है। मजबूरी थी हाँ कर दी।

बहुत बढ़िया किया मोहन.. कम्पनी से कई बार रात को माल गायब हो चुका है। तू होशियारी से काम करना,अपना ध्यान रखना।

पता चले उन चोरों के चंगुल में फंसकर तुझे कोई नुक्सान न पहुंँचे।

तूने क्या मुझे अपनी तरह डरपोक समझा है क्या ?

नहीं ऐसी बात नहीं है मोहन तू बुरा मान गया।

पहले सुरक्षा गार्ड की बहुत बुरी हालत की थी चोरों ने।

मैं बहुत दिनों से काम कर रहा हूँ तो सोचा पहले से बता दूँ। तुझे बुरा लगा तो माफ़ करना भाई।

बस-बस मेरी मजबूरी का फायदा उठाकर पहले नीचा दिखाते हो, फिर माफी छोड़ो मैंने ही गलती की जो मिलने चला आया।

मैंने सोचा दोस्त है, सुनकर खुश होगा। तुम मेरी नौकरी लगने की बात सुनकर जल गए।

जलन की बात कहाँ से आई मोहन। मैं तो तुम्हें आगाह कर रहा था कि होशियारी रखना। चोरों से अकेले उलझना नहीं।

पता है मैं चुप बैठकर चोरी होते देखता रहूँ, और मेरी नौकरी चली जाए। यही चाहता है न तू

राजू समझाता रहा गया। मोहन गलत समझकर राजू को खरी-खोटी सुनाकर चला गया।

क्या हुआ राजू बेटा.. किससे बहस हो रही थी। अंदर से आते हुए राजू के पिता ने पूछा।

राजू ने किस्सा कह सुनाया। ओह यह बात हो गई।

जी बाबूजी, अरे बेटा आज के जमाने में किसी को भी सीख देने का मतलब है। आ बैल मुझे मार

इसलिए कहता हूँ, बेवजह सीख देने की आदत छोड़ दो पर तू है कि सुनता नहीं।

आप फिर शुरू हो गए बाबूजी। हाँ बेटा अब तू भी अपने बाप को बातों के सींग मार ले हा हा हा हा हा हँस पड़े बाबूजी उन्हें हँसता देखकर राजू भी हँस पड़ा।


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