Navya Agarwal

Drama

5.0  

Navya Agarwal

Drama

बेटियाँ

बेटियाँ

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खुशी....खुशी बेटा खाना तैयार है, जल्दी आओ।

खुशी.......।

खुशी सात साल की एक छोटी मासूम सी लड़की थी। जिसकी माँ उसे बचपन मे ही छोड़कर चली गयी। खुशी अक्सर अपनी माँ को याद करके रोती है क्योंकि वो अभी बहुत छोटी थी और उसे अपनी माँ की आवश्यकता भी थी।

(खुशी ने कोई जवाब नहीं दिया)

विनोद ने कमरे में जाकर देखा तो खुशी कमरे में अंधेरा किये एक कोने में बैठी रो रही थी। उसके हाथ मे एक तस्वीर थी जो उसकी मम्मी की थी। दो साल पहले एक दुर्घटना में उनकी मौत हो चुकी थी। तब से विनोद अकेले ही अपनी बेटी की परवरिश करता था। खुशी अपनी मम्मी को याद करके रो रही थी।

विनोद ने कमरे की लाइट्स ऑन की।

विनोद - क्या हुआ खुशी ? तुम रो क्यों रही हो ?

खुशी - पापा मम्मी....(खुशी इतना बोलते ही जोर जोर से रोने लगी।)

विनोद ने उसे अपनी गोद मे बिठाया और उसके आंसू पोछने लगा।

विनोद - मेरा बच्चा, ऐसे क्यों रो रहा है। मम्मा आपसे दूर तो नही है। वो हर पल हमारे साथ है ना। देखो आसमान में वो तारा (विनोद ने आसमान की तरफ इशारा करते हुए कहा) वो है तुम्हारी मम्मा। तुम जब चाहो उनसे बात कर सकती हो और वो तुम्हारी सारी विशेज पूरी करेगी।

विनोद ने खुशी को चुप कराया और उसे खाना खिलाया। खाना खाने के बाद उसने खुशी को लोरी सुनाकर सुला दिया। खुशी आराम से सो गई।अगले दिन सुबह उसने खुशी को उठाया। जल्दी से नहलाकर स्कूल के लिए तैयार किया। खुशी को स्कूल छोड़ते हुए वह ऑफिस के लिए निकल जाता था। रोज का यही नियम बन गया था।

विनोद रोज खुशी के सो जाने के बाद शराब पीकर सोता था। उसे शराब पीने का व्यसन पड़ गया था। रात भर वह शराब के नशे में धुत रहता था। लम्बे समय तक रोज यही चलता रहा।

तीन साल बाद -

खुशी अब दस वर्ष की हो चुकी थी। अब खुशी अपने घर की जिम्मेदारियां उठाने लगी थी। वह सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर अपने लिए और अपने पापा के लिए खाना बनाती थी। वह अपना और विनोद का टिफिन लगाती और फिर स्कूल के लिए तैयार होती थी। विनोद उसे स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस निकल जाता था।

खुशी अपनी माँ की परछाई बनना चाहती थी। वह अपने पापा की हर छोटी-छोटी चीजो का ख्याल रखती। घर का सारा काम खुद ही सम्भालती थी। इतनी कम उम्र में ही खुशी ने बहुत कुछ सिख लिया था। वो कहते है ना कि हालात इंसान से कुछ भी कर सकते हैं।

खुशी ने घर के काम मे अपने पापा की मदद के लिए जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ली पर विनोद ने इसका गलत फायदा उठाया। अब वह अपने काम से और जिम्मेदारियों से आजाद था इसलिए उसने दिन में भी शराब पीना शुरू कर दिया था। खुशी उन्हें रोकती थी पर विनोद खुशी की एक बात भी नही सुनता था। दिन प्रतिदिन उसकी आदतें बढ़ती जा रही थी। खुशी के बार बार समझाने पर भी विनोद पर उसकी किसी भी बात का कोई असर नही होता था। अगर खुशी ज्यादा रोकने का प्रयास करती तो वह खुशी पर हाथ उठा लेता था।

अब विनोद नशे में इतना धुत रहने लगा था कि अपनी बेटी को मारने पीटने लगा। बात बात पर खुशी को डांट लगाता। उसकी छोटी छोटी गलतियों पर उसे फटकारता। कभी थप्पड़ मारता तो कभी अपनी बेल्ट से भी मारता था। पर खुशी सब कुछ चुपचाप सहन कर लेती थी। वह कभी अपने पापा से कोई शिकायत नही करती। रात को जब विनोद नशे की हालत में पड़ा होता तो खुशी उसे ठीक से सुलाती, जूते निकलती, चादर उढ़ाती थी। अगले दिन जब सुबह विनोद खुशी के बदन पर चोट के निशान देखता तो उसे बड़ा अफसोस होता था और वह खुशी से माफी भी मांगता पर उसके नशे की लत ऐसी थी कि वह चाहकर भी उसे नही छुड़ा पा रहा था।

एक दिन खुशी ने खाना बनाया पर विनोद को वो खाना पसंद नहीं आया। इस पर गुस्से में उसने गुस्से में खुशी को बहुत मारा। और खाने की प्लेट उठाकर फेंक दी। खुशी एक कोने में डरी सहमी हुई बैठी रो रही थी और विनोद घर से बाहर चला गया। खुशी के पूरे बदन पर चोट के निशान थे। वह दर्द से कराह रही थी और फुट फूटकर बस रोये जा रही थी।

इतना सब होने पर भी उसे अपने पापा की फिक्र थी। सुबह से रात हो गयी थी पर विनोद अभी तक घर नहीं आया था। खुशी ने अपने चोट पर मरहम लगाया और अपने पापा के आने की राह देखने लगी। रात के 11 बज चुके थे पर अभी तक विनोद का कोई पता नहीं था। अब खुशी के मन मे अजीब अजीब सवाल आने लगे कि न जाने उसके पापा कहां है और किस हाल में है। वो ठीक भी है या नहीं ? उसके मन मे सवालो का तूफान उमड़ पड़ा।

खुशी की एक नजर घड़ी की सुइयों पर अटकी हुई थी तो दूसरी ओर वह गेट पर नजरे टिकाये बैठी अपने पापा का इनतजार कर रही थी।

रात के 12 बज गए पर अभी भी विनोद घर वापस नहीं आया। अब खुशी को और अधिक डर सताने लगा था। वह खुद अपने पापा को ढूंढने घर से निकल पड़ी। रात का समय था।चारों और सन्नाटा पसरा हुआ था। दूर दूर तक कोई दिखाई नही दे रहा था। सड़के वीरान पड़ी हुई थी। खुशी खुद भी बहुत डरी हुई थी पर उसे अपने पापा को भी ढूंढना था।

खुशी इधर उधर हर जगह अपने पापा को देखती जा रही थी। अचानक से उसकी नजर सड़क के किनारे बने एक चाय के ठेले पर पड़ी। वहां उसने देखा कि विनोद नशे की हालत में पड़ा था।

खुशी विनोद के पास गई और पापा...पापा..कहकर उसे होश में लाने का प्रयास करने लगीं पर विनोद ने इतनी अधिक शराब पी रखी थी उसे कुछ होश नही था कि वह कहा पर है। खुशी ने उन्हें उठाया और अपने हाथ का सहारा देते हुए गिरते पड़ते विनोद को जैसे तैसे करके घर तक लायी। विनोद को जरा भी होश नही था। खुशी कभी गिरती कभी संभलती तो कभी विनोद को सम्भालती हुई घर आ गयी।उसने विनोद को बिस्तर पर लेटाया। विनोद के मोजे निकाले और चादर उढा कर सुला दिया। खुशी विनोद के पास ही बैठी रही और बैठे हुए न जाने कब उसकी आंख लग गयी उसे पता भी नही चला।

अगली सुबह जब विनोद की आंख खुली तो उसने देखा खुशी उसके पास ही बिस्तर के सहारे बैठी हुई ही सो रही है। उसकी नजर खुशी के चेहरे पर पड़ी जहां विनोद की उंगलियों के निशान थे। विनोद ने उसके हाथ देखे जिन पर डंडे से मारने के निशान पड़ रहे थे और हाथ एकदम लाल हो रहे थे। उसे देखते ही विनोद की आंखों में आंसू आ गए और मन ही मन वह खुद को कोसने लगा कि उसने यह क्या कर दिया। अपनी ही बच्ची के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया, उसे मार पीटा।

विनोद अपना सर पकड़कर जोर जोर से रोने लगा। उसे अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी। वह मन ही मन खुद को कोसने लगा कि उसने नशे की हालत में यह क्या कर दिया। उसे याद आया कि कैसे खुशी देर रात को अकेले उसे ढूंढने घर से निकल पड़ी। वह सोचने लगा कि अगर रात को खुशी के साथ कोई हादसा हो जाता।यदि कोई अनहोनी हो जाती तो वह क्या करता...यह सब बाते सोच सोचकर उसके कलेजे पर सांप लोटने लगे। उसने अपनी मासूम सी बेटी पर हाथ उठाया यह याद करके वह जोर जोर से रोने लगा। विनोद के रोने की आवाज सुनकर खुशी की आंखे खुल गयी। खुशी अपने पापा को ऐसे रोते हुए देख खुद भी रोने लगी।

विनोद उससे हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा और अपने किये पर शर्मिंदा होने लगा। उसने खुशी को अपने सीने से लगा लिया और उसे वादा किया कि वह आज के बाद कभी शराब को हाथ नही लगाएगा।

अब विनोद अपने नशे की आदत को छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र जाने लगा था। धीरे धीरे उसकी नशे की लत पूरी तरह से छूट गयी। खुशी और विनोद अब सुकून से अपनी जिंदगी जीने लगे। दोनो एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते और खुशी से साथ रहते।

कहते है एक लड़की अगर चाहे तो वो कुछ भी कर सकती है। खुशी ने भी अपने पापा को पूरी तरह से बदल दिया और एक अच्छा इंसान बना दिया। एक बेटी ही होती है जो अपने पिता के दिल के सबसे करीब होती है।


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