बेटिया कभी पराई नही होती

बेटिया कभी पराई नही होती

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शोभा और भावेश की शादी को एक साल हो गया था। जब से इस घर में आई शोभा, तब से बाबू जी उसकी आँख मे खटक रहे थे। बस वह मौका ढूंढ रही थी। कब वह घर से उनको निकाले। उनका टोकना शोभा को रास ना आ रहा था क्योंकि शोभा कभी नल खुला तो कभी ट्यूबलाइट खुला छोड़ देती थी। जब बाबू जी समझाते तो शोभा गुस्से में मुंह बना लेती।

एक दिन गैस पर दूध उबलता छोड़ कर फोन पर बात कर रही थी। बाबू जी किचन में आये पानी पीने, तो सही समय पर गैस बंद कर दिया। वरना दूध गिर जाता और जाकर बहु से कहने लगे।

"बहु ये क्या तुम गैस पर दूध चढाकर भूल गई थी, अगर मैं सही टाइम पर नहीं जाता तो दूध गिर जाता।"

"बाबू जी! पर गिरा नहीं ना, तो आप अपने काम से काम रखिऐ| मेरे काम मे दखलअंदाजी ना करें।" तमतमाते हुए अपने कमरे में चली गई, जब देखो तब मेरे पीछे पड़े रहते हैं।

और शाम को भावेश के आते ही शोभा शुरू हो गई, देखो जी मैं अब बाबू जी के साथ नहीं रहूगी। जब देखो बहु ये करो बहु वो करो। बहु तुमने ये काम ऐसे क्यों किया? मैं तंग आ गई हूँ, अब इस घर में या तो बाबू जी रहेंगे या मैं रहूंगी।

"शोभा तुम्हारा दिमाग तो ठीक है भला इस उमर में कहाँ जाएंगे? "

जहाँ मन करे वहाँ जाय पर इस घर मे तो नहीं जगह है। वैसे ये घर मेरे नाम पर है।

यही मैने सबसे बड़ी गलती की जो घर तुम्हारे नाम पर कर दिया। 

अगले दिन भावेश की बहन नीरा आती है। भैया ये क्या सुन रही हूँ? आप बाबू जी को वृद्धाआश्रम भेज रहे हैं।

नहीं ! तुमसे कौन कहा? 

भाभी फोन की थी। तब तक किचन से निकलते हुए साड़ी से हाथ पोछते हुए शोभा आई।

हाँ मैंने फोन किया था। मैंने वृद्धाआश्रम पर बात कर ली है, एक दो दिन में हम वृद्धाआश्रम पर बाबू जी को छोड़ देंगे।

पर तुमने मुझसे एक बार पूछा नहीं? 

आपसे क्या पूछना ,जब घर मेरा है तो मेरे हिसाब से होगा।

नीरा सुनती है, गुस्से में कहती है, आप लोगों को तकलीफ हो रही है बाबू जी को रखने में तो रहने दीजिए अभी उनकी बेटी है सहारा देने के लिए, आज के बाद बाबू जी मेरे घर पर मेरे साथ रहेंगे। ना मै उनके लिए पराई हू और ना वो मेरे लिए ।

भावेश ने बहुत समझाने की कोशिश की, पर नीरा को लगा कि इन सब में भैया भी मिले हैं। उस दिन के बाद बाबू जी अपनी बेटी के साथ रहने लगे।

समय बीतता गया, एक दिन शोभा को लड़का हुआ । शोभा तो "फूले नहीं समा रही थी" पर भावेश बस खुश था।

शोभा कहती है कि सुनो जी हम एक बड़ी पार्टी रखते हैं बेटे के आने के उपलक्ष्य में। भावेश ने कहा अभी नहीं बाद में कर लेंगे पार्टी, अभी तो बहुत समय है और उसने शोभा की बात को टाल दी।

धीरे धीरे भावेश का बेटा तीन साल का हो गया, शोभा फिर से माँ बनने वाली थी। इस बार उसने एक बेटी को जन्म दिया। भावेश ने उसे गोद लिया प्यार से गले लगाया। भावेश इतना खुश था कि सबको बताते फिरता मेरी बेटी हुई है। उसने बेटी के होने के उपलक्ष्य मे शानदार पार्टी रखी। ये सब देखकर शोभा के मन में सवाल उठ रहे थे।

एक दिन शोभा अपने पति से पूछती है कि एक बात बताओ जब मुन्ना हुआ तब आप ना ही बहुत खुश थे और ना ही आपने कोई पार्टी दी। जबकि बेटी के आने पर आपकी खुशी भी दोगुना थी और आपने पार्टी भी दी। ऐसा क्यों?

"कल को बेटी ही तो देगी सहारा, क्योकि बेटे पराये हो जाते है पर बेटिया कभी पराई नही होती" जब सब साथ छोड़ देंगे। अक्सर लोग बेटी होने के बाद दुखी हो जाते हैं पर सबसे ज्यादा सुख माँ बाप को बेटी से ही मिलता है। ये मैंने अपने जीवन में देख लिया।

शोभा को भावेश की बात समझ आ चूकी थी। उसे अपने गलती का एहसास होता है। शोभा भावेश से माफी मांगती है और बाबू जी से भी माफी मांगती है। पूरे सम्मान से बाबू जी को घर लाती है।



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