बेटी या बेटा।
बेटी या बेटा।
नीता मैं तुम्हारे लिए भी बैंक से तुम्हारी नाक की नथ और मांग टीका भी निकाल आई हूं। इन्हें संभाल कर रखो और कल सुबह 4:00 बजे सरगी खाने के लिए तुम भी उठ जाना। अब के साल तुम्हें भी होई माता का व्रत रखना है। सासु मां ने बिट्टू को गोदी में बिठा रखा था। नीता ने सारे गहने उनसे ले लिए। सासू मां फिर बोली अपनी पीली ओढ़नी भी निकाल के रख लेना कहीं सवेरे ना मिले। अपने पैरों के बिछुए भी बदल लेना। माता रानी ने इस साल तुम्हारी भी गोद भर दी अब तो तुम भी बेटे वाली हो गई हो इसलिए अब से तुम्हें भी होई का व्रत रखना होगा।
ठीक है मम्मी, मैं यह सब पहन लूंगी और सुबह सरगी भी खा लूंगी। मेरा पीलिया (पीले रंग की ओढ़नी यानी चुनरिया जो कि बेटा होने के बाद हवन के समय पहना जाता है। रिवाज के मुताबिक ज्यादातर घरों में पीलिया मायके से ही आता है) तो मायके में ही रह गया था पिछली बार जब मैं मायके में भाभी के साथ होई माता की कहानी सुन रही थी तो वह तो वहां ही रह गया था। मेरी मम्मी भी भाभी को कहानी सुनने के समय वही ओड़ने को कहती थी। कल भी जब मैं अपनी भाभी के साथ कहानी सुनूंगी तो ओढ़ लूंगी।
क्या? तुम भाभी के साथ क्यों सुनोगी यहां घर में अपनी देवरानी रीना के साथ ही सुनना। अब तुम्हें मायके जाने की क्या जरूरत है? तब तो तुम्हारे बेटा नहीं था और कहीं रीना के लाला को देख कर तुम्हारे मन में कोई भावना ना आए इसलिए ही मैं तुम्हें मायके जाने देती थी लेकिन अब जाने की क्या जरूरत है?
नीता अपने ख्यालों में खो गई। उसकी शादी के दूसरे ही साल में उसके देवर की भी शादी हो गई थी। उससे अगले साल में दोनों ही उम्मीद से थीं। नीता की बेटी रानी से 15 दिन पहले ही देवरानी के लाला हुआ था। सासु मां ने सारे घरों में लड्डू बंटवाए थे। उन्होंने पूरे गांव में कहा था कि बस बड़ी बहू नीता के भी बेटा होने के बाद मैं दोनों बच्चों का बड़े जोर शोर से कुआं पूजन करूंगी। लेकिन 15 दिन बाद उसके घर बेटी रानी आ गई थी। सासू मां का तो मानो मुंह ही उतर गया। हालांकि उसकी बेटी कमजोर थी और उसको अस्पताल में ही कुछ दिनों तक रुकना पड़ा लेकिन फिर भी मायके से उसकी मां और पति के अलावा कोई भी अस्पताल में रुकता नहीं था। सब को घर में रीना के लाला का ख्याल रखना था। कमजोर बेटी की देखभाल करने में सबको बहुत मुश्किल आएगी क्योंकि छोटे लाला को भी देखना है। देवरानी भी सवा महीने तक बिस्तर से नहीं उठ सकती इसलिए नीता को अपनी बच्ची को लेकर मायके ही जाना पड़ा। विनय को हालांकि अपनी मां के इस व्यवहार से बहुत दुख पहुंचा था लेकिन नीता की मां ने विनय को समझाया इस वक्त कोई भी टेंशन मां और बेटी दोनों के लिए घातक होगी। बच्ची का ख्याल रखने और दूध पिलाने के लिए नीता का स्वस्थ होना भी जरूरी है। तब तो विनय भी चुप हो गया और नीता अपने मायके चली गई। सवा महीना बाद जब वहआई तो विनय खुद देखता था कि घर में सब का व्यवहार दोनों बच्चों के प्रति समान नहीं था। लाला के तो रोते ही घर के सब लोग जागरूक हो जाते थे। यहां तक कि खाने में भी नीता और रीना के लिए समान व्यवहार ना होता था। सासू मां कि ख्याल से बेटे को पालने के लिए मां को ज्यादा खुराक और आराम मिलना चाहिए इसलिए नीता को रसोई के ज्यादा काम करने पड़ते थे। रानी को कोई गोदी में नहीं उठाता था इसलिए से वह यूं ही बिस्तर पर लेटी लेटी मुस्कुराती रहती थी। एक दिन जब रात को रानी बेहिसाब रोए जा रही थी तो विनय ने अपनी माता जी को कहा कि मैं रानी को डॉक्टर को दिखाने जा रहा है तो उन्होंने कहा कुछ नहीं होता, लड़कियां बड़ी पक्की जान होती हैं । सब ठीक हो जाएगा।
रानी के रोने के कारण सुबह जब नीता नहीं उठ पाई तो सारा काम रसोई में ऐसे ही पड़ा रहा क्योंकि रीना को तो सवेरे रसोई में आने भी नहीं दिया जाता था कहीं से ठंड लग गई तो बेटे को भी ठंड लग जाएगी। विनय को दफ्तर बिना खाने के ही जाना पड़ा लेकिन उसने उसी दिन ही अलग रहने का फैसला कर लिया था और वह घर के पिछवाड़े में रहने लगा था। कुआं पूजन रसम भी सिर्फ रीना की ही हुई। नीता तो घर में काम ही करती रही।
होई अष्टमी के व्रत पर सासु मां ने रीना के लिए तो बहुत तैयारियां की और नीता को तो स्पष्ट कह दिया था कि लड़कियों के लिए होई का व्रत रखने की जरूरत नहीं है यह व्रत सिर्फ बेटों की मां के लिए ही है। विनय नीता को उसके मायके ले गया और उसके बाद तीनों साल नीता होई के व्रत में अपने मायके चली जाती थी।
इस साल उसके बेटे होने के बाद सासू मां ने उसे मायके जाने से रोका तो उसने स्पष्ट कह दिया कि मेरे लिए बेटा या बेटी दोनों ही बराबर से और मैं हर साल बेटी के लिए भी होई का व्रत रखती आ रही हूं और अब भी रखूंगी। मेरी अगर दूसरी भी बेटी होती तब भी मुझे उससे इतना ही प्यार होता जितना कि अब है। आप व्यर्थ का आडंबर ना करें और हमेशा के जैसे अपनी छोटी बहू के साथ ही ही व्रत करें। ऐसा कहकर नीता अपने कमरे में तैयार होने के लिए चली गई। सासु मां को भी आज अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी और रह रहकर विनय की यह बात याद आ रही थी कि आप खुद एक औरत होकर एक लड़की के बारे में कैसा सोचती हो।
