बेटी विवाह
बेटी विवाह
“बताइए शिवराज बाबू , क्या आदेश है ?” रंजीत सिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
सुनते ही शिवराज सिंह के बाछे खिल गये। उन्होंने बहुत सारे अरमान, जो अपने बेटे के विवाह के लिए वर्षों से संजोये थे, सुनहरा अवसर देख एक-एक कर सुना डाला ।
रंजीत सिंह ने भी आखिरकार उनके सभी मांगों को... चाय की घूंट के साथ स्वीकार कर ही लिया । चाय का प्याला मेज पर रखते हुए उन्होंने आहिस्ते से कहा ,“ मेरा भी एक शर्त है।”
"कौन सा शर्त है ? बोलिए समधी जी... !"
शिवराज सिंह के तेवर चढ़ गये।
मेरी बेटी आपके बेटे से बात करेगी, अगर उसे लड़के का बात-व्यवहार पसंद आ गया तो शादी पक्की समझिये।”
“अरे...ये क्या आप ! बेटे वाले हम हैं, और निर्णय आपकी बेटी...? मुझे बहुत अटपटा लग रहा है। आपको तो सब पता है .. बेटे वालों का पलड़ा हमेशा भारी रहा है, फिर ?"
“मैंने तो आपकी सारी मांगें स्वीकार कर लीं हैं...! फिर आप मेरी छोटी सी बात को खामख्वाह तिल का ताड़ बना रहे हैं..!” रंजीत सिंह ने विनम्रता पूर्वक कहा ।
“नहीं..नहीं.. ऐसा उचित नहीं है, बेटी- जात को इतना मन नहीं बढ़ाना चाहिए ।” शिवराज सिंह ने कड़े स्वर में कहा।
“शिवराज सिंह, मैं बेटी का रिश्ता तय करने आया हूँ.... आपके खूंटे में गाय को बाँधने नहीं...!” इतना कहते हुए रंजित सिंह दरवाजे से झट बाहर निकल गये ।
वर्षों बाद आज रंजीत सिंह अपनी बेटी, दामाद की खिलखिलाती बगिया को देखकर फूले नहीं समा रहे थे। खुद के द्वारा लिये गये निर्णय... “बहुत अच्छा हुआ जो मैंने शिवराज सिंह के बेटे का रिश्ता ठुकरा दिया” ... पर आज गर्व महसूस हो रहा था।
वही पुरानी बातें, जब वह अपनी बेटी का रिश्ता पक्का करने शिवराज सिंह के घर गये थे , उन्हें याद आने लगीं।