बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
"चल जल्दी जा, पानी भर कर ला !" वंश ने लगभग आदेश देते हुए कहा।
"पर भाई मेरे पैर में दर्द है, पता है ना आपको कल मोच आ गई थी !" शगुन ने घिघियाते हुए कहा।
"सुन नहीं रहा क्या ? भाई क्या कह रहा है, लड़की जात हो, लड़की बन कर रह, जबान मत चलाओ।" अंदर रसोई से कमला की आवाज़ आई थी।
लंगड़ाते हुए चल दी थी शगुन बाल्टी उठा कर।
"रुको, बैठो यहां दादी के पास, और तुम लाट साब उठो, और जाओ पानी तुम भर कर लाओ।" ये विश्वास की आवाज़ थी।
"पर मैं क्यों ?" वंश घिघियाया।
"दर्द है उसे सुना नहीं तूने, और क्या तू टाँग पे टाँग रख हुक्म चलाता रहता है !"
"अरे लड़का है वो।" कमला ने अपनी बात रखी।
"तो क्या खाट तोड़ेगा सारा दिन ?" विश्वास चिल्लाया।
"अभी छोटा है !" अब के अम्मा बोली।
"और वो शगुन तीन बरस छोटी है, तुम्हारे इस छोटू से !"
सुन लो सब आज से पानी तो यही भर कर लाएगा, जिम्मेदारी का अहसास कराना जरूरी है, वरना सारी उम्र औरतों पे हुकूम चलाने को ही अपना काम समझेगा, अपने दादा की तरह !"
अम्मा का दिल नहीं दुखाना चाहता था पर उनकी सोच को आईना दिखाना जरूरी था।
"और हाँ अम्मा कल से ये स्कूल भी जायेगी।"
"क्या करेगी स्कूल जा कर ? क्या कलक्टर बनाना है अरे ज्यादा सर मत चढ़ाओ, नहीं तो कल सर पर चढ़ कर नाचेगी।" अम्मा ने दलील दी।
"ना अम्मा तुम्हें कुछ नहीं पता, मैं तो फौजी सिपाही हूँ, पर मैं चाहता हूँ, मेरी शगुन फौज में बड़ी अफ़सर बने, कहते-कहते सुबह अखबार में छपी फाइटर प्लेन चलाती अवनि चतुर्वेदी की तस्वीर आँखों में तैर गयी।