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sgs sisodia nisar

Tragedy

3  

sgs sisodia nisar

Tragedy

बेबसी

बेबसी

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“दद्दा, मैं भी खाऊंगा कचौड़ी!” पूरण के चार वर्ष के बेटे राजू ने पिता के गले में बाँहें डालकर बड़ी ही लाड़ भरी वाणी में कहा।

“कचौड़ियाँ खाने से पेट खराब हो जाता है और तुम्हारी तबीयत तो पहले ही खराब है, जब तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाएगी न! तब दिलाऊंगा मैं अपने बेटे को।” पूरण ने राजू को समझाते हुए कहा। परन्तु बच्चा तो बच्चा ठहरा, वह पिता के तर्क से संतुष्ट न हुआ और रो-रो कर कचौड़ियाँ खाने के लिए जिद करने लगा। पूरण उसे भाँति-भाँति से समझाने का हर सम्भव प्रयास कर रहा था, पर बच्चा था कि जितना उसे समझाया जा रहा था, उतना हीअधिक रोता चला जा रहा था।


दरअसल पूरण दिहाड़ी का मजदूर है और पिछले पंद्रह दिनों से ठेकेदार का काम बंद है। इस बीच वह अपने सभी जान-पहचान वाले लोगों से किसी से सौ और किसी से दो सौ रुपये उधार माँगकर अपनी बीमार पत्नी और बच्चे का मुश्किल से पेट भर रहा है। इस बीच कोढ़ में खाज का काम यह हुआ कि खेलते हुए राजू गिर गया और उसके पैर की हड्डी टूट गयी। वह राजू को डॉक्टर के पास दिखाने लाया था। डॉक्टर की फीस ही पाँच सौ थी और उसकी जेब में मात्र पचास रुपये। बेचारा पूरण अपनी गरीबी तथा बाद में रुपये दे जाने की लाख दुहाई देता रहा, पर डॉक्टर न पसीजना था और न पसीजा। हारकर उसने बेटे को गोद में उठाया और क्लिनिक से बाहर भारी मन से निकल ही रहा था, तभी क्लिनिक के सामने गुप्ता कचौड़ी भंडार के अग्र भाग में कढ़ाई से उतरती गरमागरम कचौड़ियों को देख कर राजू मचल गया।


पूरण कभी बेटे को समझाने का प्रयास करता तो कभी अपनी जेब में रखे एक मात्र पचास के नोट को देखता, पर तभी उसे घर में बीमार पड़ी पत्नी का स्मरण तथा आटे के खाली कनस्तर का ध्यान हो आया और सामने गुप्ता कचौड़ी भंडार की रेट लिस्ट अभी तक मुंह चिढ़ा रही थी, जिसपर एक प्लेट कचौड़ी का दाम “60 रुपये” अंकित था। रोते-रिरियाते बालक को पूरण ने अपनी बाजुओं में समेटा और बेबसी में छलक आए अश्रु बिन्दुओं को पलकों से बाहर आने से रोकते हुए अपने घर की ओर चल दिया।



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