आने वाला कल
आने वाला कल
“मॉम, बड़े ज़ोर की भूख लगी है, जल्दी से कुछ खाने को दो न!” विद्यालय से आते ही आठ वर्षीय मयंक ने कहा। “मुझे क्यों कह रहे हो मयंक! अपनी रोबो मदर से बोलो।” सुनिधि ने अपने पुत्र को उत्तर दिया और कम्प्यूटर पर काम करना जारी रखा। “मॉम, मैंने पहले उसे ही कहा था, पर वह तो कोई रिएक्ट ही नहीं कर रही, पता नहीं क्या हो गया है उसे।” मयंक ने विवशता के स्वर में कहा। “क्या तुमने कल रात में उसे चार्ज किया था? मैं जानती हूँ तुमने ऐसा
नहीं किया होगा। तो ठीक है, अब भुगतो। मुझे बार-बार डिस्टर्ब मत करो, मुझे बहुत काम करना है।” सुनिधि ने उसे डाँटते हुए कहा।
मयंक को अपनी भूल का एहसास हुआ और सबसे पहले उसने रोबो मॉम को चार्ज पर लगाया और स्वयं ही किचन में कुछ खाने के लिए ढूँढ़ने चला गया। वहाँ उसने देखा, हॉटकेस में एक सैंडविच रखा है। देखते ही उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। झटपट उसने सैंडविच निकाला और वहीं स्टूल पर बैठकर खाने लगा। खाने के पश्चात् उसने पानी लिया। परन्तु पानी लेते समय उसके हाथ से गिलास छूट कर फर्श पर गिर गया। गिलास गिरने की आवाज़ सुनकर सुनिधि ने हाथ का काम छोड़ा और किचन की ओर दौड़ी। तब तक मयंक फर्श पर गिरे पानी को फ्लोर क्लीनर से सुखा रहा था। यह देख सुनिधि ने चटाक से मयंक के मुंह पर थप्पड़ रसीद कर दिया। मयंक रोने लगा। तभी सुनिधि चीखती हुई बोली, “एक गिलास पानी की कीमत तुम्हें पता है कितनी है? पूरे एक हज़ार। तुम्हें पता है कल दो सौ लोग प्यास से मर गये। तुम्हें तो आराम से मिल रहा है न, जानते हो, इन सबके लिए हम दोनों को रात-दिन काम करना पड़ता है।” “आई एम सॉरी मॉम। अब से पूरा ध्यान रखूंगा।” मयंक ने रोते हुए कान पकड़े। “येस, यू मस्ट बी। तुम्हारी सज़ा यही है कि कल सुबह तक तुम्हें पानी नहीं मिलेगा।” कहते हुए मयंक को सुनिधि ने किचन से बाहर कर दिया और पुनः कम्प्यूटर पर काम करने बैठ गयी।
मयंक ने अपने कक्ष में जाकर देखा, रोबो मदर बैठी मुस्कुरा रही है। देखते ही उठकर मयंक की ओर बढ़ते हुए बोली, “वेलकम माई चाइल्ड, टेल मी, हाउ वाज़ योर डे ऐट स्कूल? आई एम सॉरी, व्हेन यू कैम बैक, आई वाज़ स्लीपिंग।” “नो प्रॉब्लम मोम।” कहते हुए मयंक अपने बिस्तर में घुस गया। “नो-नो! पहले अपना होम-वर्क करो।” रोबो मदर ने उसे सोने से रोकते हुए कहा। “नहीं अभी नहीं, मेरा मूड बहुत खराब है, इसलिए होमवर्क मुझसे अभी नहीं हो सकेगा।” मयंक ने अपने ऊपर कम्बल खींचते हुए कहा। उसके बाद रोबो मदर ने भी कुछ नहीं कहा। वह वहीं उसके पास बैठ गयी। चार बजे उसने मयंक को फिर उठाया। “चलो उठो, यह तुम्हारा फ्रूट-टैबलेट लेने का समय है।” रोबो मदर ने कहा। जब वह लौट कर आई तो मयंक बिस्तर पर पहले की ही भाँति लेटा हुआ था। रोबो मदर ने उसके सामने टैबलेट रखते हुए कहा, “अभी तक तुम नहीं उठे? चलो उठो और टैबलेट लो।” मयंक आँखें मलता हुआ उठ बैठा और बोला, “मदर, पहले पानी तो लाओ।” मुस्कुराते हुए वह कक्ष से बाहर निकल गयी। लेकिन जैसे ही उसने गिलास में पानी भरने के लिए बटन प्रेस किया, वैसे ही दूसरी हाऊस कीपर रोबो ने उसके हाथ से गिलास छीन लिया और बोली, “तुम पानी नहीं ले सकती, यह मैडम का आदेश है।”
“लेकिन मेरे बच्चे को फ्रूट-टैबलेट लेनी है, बिना पानी वह टैबलेट कैसे ले सकता है?” रोबो मदर ने कहा। “यह मेरा हैडेक नहीं है। मैडम ने कहा है कि आज मयंक को उन्होंने पनिश किया है।” हाऊस कीपर रोबो ने उत्तर दिया।
उन दोनों में अपनी-अपनी ड्यूटी के पक्ष में तर्क-वितर्क होता रहा और बात इतनी बढ़ गयी कि उनमें हाथापाई होने लगी। दोनों एक-दूसरे पर किचन की
वस्तुएं उठा-उठाकर मारने लगीं। जब सुनिधि ने बर्तन फेंकने की आवाज़ें सुनीं तो वह दौड़कर किचन में पहुँची। वह उन दोनों रोबो को आपस में झगड़ते
हुए देख आश्चर्यचकित हो गयीं। उसे लगने लगा कि यदि यही हाल थोड़ी देर तक और चलता रहा तो निश्चय ही किचन का सारा सामान टूट-फूट जाएगा। वह दौड़ती हुई गयी और मास्टर स्विच को ऑफ कर दिया। उसके उपरांत उसने रोबो एजेंसी को फोन करके पूरा हाल बयान कर दिया। उधर से शीघ्र इंजीनियर आने का आश्वासन मिला। परन्तु कुछ देर बाद कम्पनी से फोन आया कि आज इंजीनियर नहीं आ सकेगा, कल तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। सुनिधि ने गुस्से में फोन टेबल पर पटक दिया और घर के कामकाज में जुट गयी। वह काम करती जाती थी और गुस्से में बड़बड़ाती जाती थी। इसी कवायत में शाम के छह बज गये और सुनिधि के पति ध्रुव दफ्तर से लौट आए। सुनिधि का मूड खराब देखकर ध्रुव ने पूछा, “क्या हुआ, आज इतना मूड खराब क्यों लग रहा है सुनिधि?” “क्या बताऊँ ध्रुव, आज का तो दिन ही खराब है। पहले तो स्कूल से आते ही मयंक ने एक गिलास पानी का नुकसान कर दिया और उसके पश्चात् दोनों रोबो आपस में झगड़ पड़ीं। दूसरा मेरी कम्पनी के डाइरेक्टर का बार-बार फोन आ रहा है कि जल्दी काम खत्म करके भेजो। अब तुम ही बताओ कि मैं घर का काम करूँ या दफ्तर का?” सुनिधि ने आँखों में आँसू भरकर कहा। “क्या तुमने रोबो एजेंसी को शिकायत नहीं की?” ध्रुव ने पूछा “की थी, पर उनका फोन आ गया कि इंजीनियर कल ही आ सकेगा।” सुनिधि ने बताया। “कोई बात नहीं, तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारा दफ्तर का काम करता
हूँ और तुम घर का काम करो।” कहते हुए ध्रुव सुनिधि के कम्प्यूटर पर काम करने लगा। अगले दिन ध्रुव अपने दफ्तर चला गया और मयंक अपने स्कूल। सुनिधि अपने दफ्तर का काम करने बैठ गयी। ग्यारह बजे रोबो एजेंसी से इंजीनियर आ गया और रोबो को ठीक करने लगा। यह सब हो ही रहा था कि मयंक के स्कूल से फोन आ गया। उधर से प्रिंसीपल बोल रहे थे, “देखिये मिसेज़ मलहोत्रा, आपको मयंक का ध्यान रखना चाहिये। उसे आपने बिना ऑक्सीज़न सिलेंडर के ही स्कूल भेज दिया। उसकी कुछ ही देर में सांस फूलने लगी और उसे तुरंत आपात स्थिति में हमें अस्पताल भेजना पड़ा। अब आप
आइये और उसे घर ले जाइये। आप तो जानती ही हैं कि बच्चों को बिना ऑक्सीज़न सिलेंडर के आना स्कूल में अलाऊ नहीं है। आप फाइन के एक लाख भी जमा कराती जाएं।”
उसने अपना पीसी शट डाउन किया और अपना मोबाइल उठा कर स्कूल के लिए निकल गयी। वह कार दौड़ाती चली जा रही थी और बड़बड़ाती जा रही थी कि न धरती पर जल छोड़ा, और न वृक्ष, अपने मतलब के लिए हमारे पूर्वजों ने पृथ्वी को नरक बना डाला, ऐसा भी खुदगर्ज क्या होना।