बदलते पल का न्याय

बदलते पल का न्याय

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"ये यहाँ? ये यहाँ क्या कर रहे हैं?" पार्किन्सन ग्रसित मरीज को व्हीलचेयर पर ठीक से बैठाते हुए नर्स से सवाल करती महिला बेहद क्रोधित नजर आ रही थी.. जबतक नर्स कुछ जवाब देती वह महिला प्रबंधक के कमरे की ओर बढ़ती भी नजर आई।

"मैं बाहर क्या देखकर आ रही हूँ.. यहाँ वे क्या कर रहे हैं?" महिला प्रबंधक से सवाल करने में भी उस आगंतुक महिला का स्वर तीखा ही था।

"तुम क्या देखकर आई हो, किनके बारे में पूछ रही हो थोड़ा धैर्य से धीमी आवाज़ में भी पूछ सकती हो न संगी!"

"संगी! मैं संगी! और मुझे ही इतनी बड़ी बात का पता नहीं, तुम मुझसे बातें छिपाने लगी हो?"

"इसमें छिपाने जैसी कोई बात नहीं, उनके यहाँ भर्ती होने के बाद तुमसे आज भेंट हुई है। उनकी स्थिति बहुत खराब थी, जब वे यहाँ लाये गए तो समय ही नहीं निकाल पाई कि तुम्हें फोन कर पाऊँ…"

"यहाँ उन्हें भर्ती ही क्यों की ? ये वही हैं न, लगभग अठारह-उन्नीस साल पहले तुम्हें तुम्हारे विकलांग बेटे के साथ अपने घर से भादो की बरसती अंधियारी रात में निकल जाने को कहा था... डॉक्टरों की ग़लती से तुम्हारे बेटे के शरीर को नुकसान पहुँचा था, तथा डॉक्टरों के कथनानुसार आयु लगभग बीस-बाईस साल ही था, जो अठारह साल..," आगंतुक संगी की बातों को सुनकर प्रबंधक संगी अतीत की काली रात के भंवर में डूबने लगती है।

"तुम्हें इस मिट्टी के लोदे और मुझ में से किसी एक को चयन करना होगा, अभी और इसी वक्त। इस अंधेरी रात में हम इसे दूर कहीं छोड़ आ सकते हैं, इसे देखकर मुझे घृणा होने लगती है.."

"पिता होकर आप ऐसी बातें कैसे कर सकते हैं..! माता पार्वती के ज़िद पर पिता महादेव हाथी का सर पुत्र गणेश को लगाकर जीवित करते हैं और आज भूलोक में प्रथम पूज्य माने-जाने जाते हैं गणेश.. आज हम गणपति स्थापना भी हम कर चुके हैं.."

"मैं तुमसे कोई दलील नहीं सुनना चाहता हूँ, मुझे तुम्हारा निर्णय जानना है..."

"तब मैं आज केवल माँ हूँ..,"

"मैडम! गणपति स्थापना की तैयारी हो चुकी है, सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं..," परिचारिका की आवाज़ पर प्रबंधक संगी की तन्द्रा भंग होती है।

"हम बेसहारों के लिए ही न यह अस्पताल संग आश्रय बनवाये हैं संगी...! क्या प्रकृति प्रदत्त वस्तुएं दोस्त-दुश्मन का भेद करती हैं..! चलो न देखो इस बार हम फिटकरी के गणपति की स्थापना करने जा रहे हैं।"


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