Bindiyarani Thakur

Inspirational

4.7  

Bindiyarani Thakur

Inspirational

बदलाव

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दोपहर का वक्त है बच्चे स्कूल से आकर खाना खाने के बाद आराम कर रहे हैं ।मैं ने भी खाना खाने बाद बरतन साफ करके रसोई समेट लिया और कमर सीधी करने के लिए लेटी ही थी कि सुमन का फोन आ गया,मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि इस समय आमतौर पर वह कम ही फोन करती है ये तो उसके कार्यालय का सबसे व्यस्त समय होता है,वह सरकारी नौकरी करती है मेरी छोटीबूआ की लड़की है बूआ की तीसरी बेटी, खैर मैंने फोन उठाया और उसकी आवाज़ आई नमस्ते निहारिकादी मैंने खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए बात शुरू की,कहो कैसी हो सुमन घर में सब कैसे हैं? आज छुट्टी ली है क्या? दीदी एक बहुत बड़ी बात हुई है वही बताना था ,उसने कहा।अच्छा बताओ भी कितना रहस्य बढ़ा रही हो मैंने कहा। जानती हैं दी अभी मैं नियति दी के यहाँ हूँ (नियति बुआ की सबसे बड़ी बेटीऔर सुमन की बड़ी बहन)

मैं चौंक गई वहाँ कैसे! दी पहले पूरी बात तो सुनिए, मुझे टोकते हुए वह बोल उठी ,अच्छा बताओ,पता है दी ये ईश्वर जीजा जी स्वयं को भगवान ही मानने लगे हैं जब देखो तब नियति दी पर हाथ उठा देते हैं परसों जरा सी बात पर दीदी को इतना मारा कि वह बिस्तर से उठ भी नहीं पा रही, मैंने जो फोन दिया था वो फोन भी कबसे छीन लिया वो तो मिष्टी बिटिया समझदार है उसने पड़ोसी से फोन कराया और मैं पहली बस पकड़ कर आ गई,मैं जब आई तो जीजाजी घर पर नहीं थे,मैंने फोन करके अपने आने की सूचना दी और उन्हें बुलाया।

जीजा जी से जब मैंने सवाल- जवाब करना शुरू किया तो वे उलटा दीदी पर ही इल्जाम लगाने लगे कि नियति ने मेहमानों के लिए खाना बनाने से इनकार कर दिया और मुझपर हाथ उठाया ।जिस नियति दी को मैं बचपन से जानती हूँ वो कभी भी ऐसा नहीं करेंगी ।जीजाजी साफ झूठ बोल रहे थे,मैंने कहा एक तो आपने गलती की और अब दीदी पर ही इल्जाम लगा रहे हैं,कुछ तो शर्म करिए जीजाजी। ये मत समझिये कि मेरी दीदी बेसहारा है, हम अपनी दीदी का ख्याल रख सकते हैं चलो दी अब और इनके जुल्म सहने की जरूरत नहीं है और मेरे एक फोन से ये जेल में होंगे समझते क्या हैं ये अपने आप को,इतना सुनते ही जीजा जी ने हम दोनों बहनों को कमरे में बंद कर दिया और चले गए।

हमने पड़ोसी को आवाज़ देकर बुलाया और उन्हें पुलिस थाने जाकर सारा मामला बताने को कहा ,साथ ही मैंने अपने बी•डी•ओ• साहब को भी फोन करके मदद की गुहार लगाई ।साहब ने तुरंत ही यहाँ के थाने में फोन कर उनसे मामले के बारे में बताया।थानेदार साहब ने भी अपना फर्ज निभाते हुए अपने दो हवलदार के साथ घर आ गए,जीजाजी को बुलाया, ताला खुलवाया और हम दोनों बहनों को आजाद कराया।

जीजाजी को अंदाजा भी नहीं था कि मैं सचमुच ही पुलिस बुला

लूँगी। वो थरथर काँपने लगे,थानेदार साहब ने जीजाजी से पूछा क्यों बंद किया था इनको और तुम्हारी क्या लगती हैं, मेरी पत्नी और उसकी बहन है साहब, जीजाजी ने डरते हुए जवाब दिया।घर में बंद क्यों किया था? साहब ये हमारे घर का मामला है,घर के मामलों को पुलिस नहीं सुलझाती, थानेदार साहब ने कहा।

अब थानेदार साहब ने दीदी से पूछा आपकी ऐसी हालत कैसे हुई है ? क्या इसने मार पीट की थी आपके साथ? दीदी ने कहा नहीं साहब मैं बाथरूम में फिसल गई थी।देखिए आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं है आप खुल कर कहिए हम आपकी मदद करने के लिए ही यहाँ आए हैं, अब दीदी की हिम्मत बढ़ी।

हाँ साहब मेरे साथ जो भी हुआ है इन्होने ही किया है, शादी के तेरह साल बाद भी इनकी नजर में मेरी कोई इज्जत नहीं है, छोटी-छोटी बातों पर जानवरों की तरह मारते हैं पर फिर भी मैं बच्चों की खातिर सब कुछ बर्दाश्त कर रही हूँ सालों से इनकी मार और बलात्कार सहती रही हूँ ।कल रात मुझे बुखार था किसी तरह मैंने खाना बनाया और बच्चों को खिला कर इनका इंतजार कर रही थी,ये शराब पीकर आए और मांस पकाने को कहने लगे, मैं बीमार थी मैंने असमर्थता जाहिर की फिर क्या था जानवरों की तरह तब तक पीटते रहे जब तक थक नहीं गए। इतने साल इंतजार किया कि शायद ये बदल जाएंगे लेकिन मैं हार गई अब मेरी बर्दाश्त खत्म हो गई, ये नहीं

बदलने वाले,इसके पहले कि मेरे बच्चे इनकी इज्जत करना छोड़ दें, मैं इन्हें छोड़ दूँगी, अभी तो आप चले जाइए साब मैं कोई शिकायत दर्ज नहीं करना चाहती। इनको इनके किए की सजा खुद ही मिल जाएगी।

थानेदार साहब चले गए फिर दीदी ने अपना और बच्चों का सामान बाँध लिया और मेरी सहायता से एक किराए का मकान लिया है और फिलहाल हम यहीं हैं, जीजाजी ने दीदी को बहुत रोकने की कोशिश की मगर दीदी ने ठान लिया है कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ी होना है,बच्चों की खातिर वो जीजा जी को माफ़ कर देंगी ये तो मैं जानती हूँ क्यों कि इतना सब होने के बाद भी जीजाजी से बहुत प्यार करती हैं शायद यही कारण है कि इतने दिनों तक वे सब सहती रही हैं।

पता है निहारिका दी एक ही दिन में इतना कुछ हो गया जैसा कि हममें से किसी ने भी सोचा नहीं था।जानती हैं दी,नियति दी एक एनजीओ खोल रही हैं जिसमें उनके जैसी महिलाओं को सहारा मिल सके। मेरे बी•डी•ओ• साहब ने इस सब में बहुत सहायता की।दीदी अभी इसकी कागजी कार्रवाई के लिए गई हैं आएंगी तो आपसे बात करा दूंगी।

इतना कहकर वह चुप हो गई।अच्छा सुमन अब मैं कुछ कहूँ, मैंने कहा, चलो देर से ही सही नियति ने अपने अंदर की शक्ति को पहचान तो लिया। ये सब तो काफी पहले ही हो जाना चाहिए था।

मैं उसके इस फैसले से बहुत खुश हूँ और हमेशा उसके साथ हूँ।ठीक है जब नियति आ जाए उससे मेरी बात कराना ।फोन रखने के बाद मैं नियति के बारे में सोचने लगी। वह बचपन से ही पढ़ने-लिखने के साथ साथ घर के कामों में भी दक्ष थी और शांत स्वभाव की थी। मेरी उससे गहरी छनती थी पर शादी के बाद मिलना तो दूर की बात है,बात चीत भी नहीं हो पाती है ,बुआ या सुमन से ही कभी-कभी खबर मिल जाती है।वह चाहती तो अपने हर आँसू और दर्द का बदला अपने पति को जेल भेज कर ले सकती थी।पर उसे सजा न देकर अपना बडप्पन दिखाया। भगवान करें उसके जीवन में आगे कोई दुख ना आए और उसका एनजीओ बहुत अच्छा काम करे ।मेरे दिल से दुआ निकल गई।

(हर स्त्री के अंदर एक शक्ति छुपी होती है, बस उसे पहचानने की देर है।)


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