बदलाव की पहल
बदलाव की पहल


आज कविता को नारी मुक्ति आंदोलन की तरफ से पुरुस्कार मिलने वाला था। कविता बहुत खुश थी कि आज उसकी मेहनत रंग लाई है। वह बैठे-2 अपने अतीत में खो गई और सोचने लगी कि क्या कुछ सहकर आज वह खुली हवा में सांस ले रही है। वो आज से 10 साल पहले के बारे में सोचने लगी जिस दिन वह दुल्हन बनकर ससुराल आई थी।
कविता की 3 बहनें थीं मगर घर में सबसे छोटी होने के कारण वो घरवालों की दुलारी थी। कविता को अपने काॅलेज के एक लड़के से प्यार हो गया था। दोनों के घरवालों की रजामंदी से जल्द ही दोनों की शादी हो गई। कविता के ससुराल में उसका जोरदार स्वागत किया गया। कविता अपने घर की लाड़ली होने की वजह से ज्यादा काम नहीं कर पाती थी और शादी की वजह से उसने अपना काॅलेज भी बीच में ही छोड़ दिया था मगर थोड़े ही दिनों में कविता ने घर का सारा काम सीख लिया। वो दिन रात बस घर के कामों में उलझी रहती थी। एक साल बाद कविता को एक प्यारी सी बेटी हुई और यहीं से उसके ससुराल वालों का बर्ताव कविता के लिए बदल गया। उसकी सास उसे पोता न दे पाने की वजह से दिन-रात कोसने लगी।उसका पति उसे धमकी देने लगा कि अगर वो उसे बेटा नहीं दे सकती तो वो दूसरी शादी कर लेगा।
कुछ दिन बाद उसके पति ने उसे रोज पीटना शुरू कर दिया और दूसरी औरतों के पास जाने लगा। कविता अपनी बच्ची की खातिर सब सहती रही। उसने अपने घरवालों से शिकायत की मगर अफसोस उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी को हैवानों के हव
ाले कर दिया। कविता ने इसे अपनी किस्मत मानकर हार मान ली मगर उसके सब्र का बांध उस दिन टूट गया जब ससुराल वाले पोते की चाह में उसकी बेटी की बलि देने जा रहे थे। उस वक्त मानों कविता में चंडी देवी समा गई थी , कविता ने अपनी बच्ची को बचाने के लिए तांत्रिक और ससुराल वालों सबको लहूलुहान कर दिया और चीते की फुर्ती से अपनी बच्ची को लेकर वहां से भाग निकली। कविता सीधे महिला संगठन के पास पहुंची और उनकी मदद से अपने ससुराल वालों को जेल पहुंचाया। अब उसने सबसे पहले अपना काॅलेज पूरा किया और महिला मुक्ति संगठन से जुड़ गई। उसने अपने साथ-2 अपनी बेटी को भी सशक्त बनाया।
अब कविता के जीवन का लक्ष्य उन सभी महिलाओं को उनका हक दिलाने का बन गया था जो अपना अस्तित्व खो चुकी थी। कविता ने हजारों महिलाओं का सम्मान उन्हें दिलवाया और आज उसके इसी काम के लिए उसे अवार्ड मिलने वाला था। कविता अपने अतीत की यादों से बाहर आ गई और देखा कि उसके गालों तक छलके आंसुओं को उसकी बेटी परी अपने हाथों से पोंछ रही थी। कविता ने परी को अपने गले से लगा लिया और फिर चल पड़ी परी को लेकर अपना अवार्ड लेने। अवार्ड मिलने के बाद कविता ने बोलना शुरू किया -हां मैं एक नारी हूॅं मगर अपने अस्तित्व को खोने से मुझे ऐतराज है, सम्मान से जीना मेरा हक है और मुझे गर्व है कि मैंने अपना स्वाभिमान चुना। पूरा वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और हर नारी ने अपने अंदर एक कविता महसूस की।