बड़ी बहू कठपुतली नहीं
बड़ी बहू कठपुतली नहीं
मेहता जी के घर में उनके छोटे बेटे राजीव की शादी की बात चल रही है। मेहता जी और उनकी पत्नी चंदा जी को बस अपनी बड़ी बहू काजल जैसी बहू चाहिए। चंदा जी का कहना है "हमें तो बस ऐसी बहू चाहिए जो घर में सब से घुल मिल कर रहे और हमारी बड़ी बहू की तरह घर संभाल ले।"
काजल एक सीधी पढ़ी लिखी समझदार महिला थी। हंसमुख थी पर बहुत जायदा नहीं बोलती। परिवार को साथ लेकर चलना भली भांति जानती थी, अपने ससुराल के सारे नियमों को दिल से अपनाया था, सास ससुर के कहे अनुसार सब काम करती थी, कभी शिकायत का मौका नहीं देती।
कुछ दिनों की लड़की की खोज के बाद राजीव के लिए दिव्या को पसंद कर लिया गया। लड़की बहुत ही सुंदर थी, पूरे मेहता परिवार में ऐसी रूपवती ना थी। काजल ने देवर की शादी का सारा बोझ अपने कंधो पर ले लिया, मेहमानों की आवभगत से लेकर उनको पुनः विदा करने तक की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
शादी में भी सिर्फ दिव्या के रूप के चर्चे थे, चंदा जी तो नई बहू की तारीफ करते ना थकती थी। इतनी तारीफ सुन कर किसी को भी अभिमान आ जाए। शुरू के सवा महीने तो चंदा जी ने दिव्या को पलंग से ही नहीं उतरने दिया, नई बहू के बहुत लाड लड़ाए। दिव्या भी पूरे दिन मम्मी जी मम्मी जी करती, अपनी मिट्ठी बातों में लपेटती रहती। जहां मेहता परिवार की बड़ी बहू को सिर्फ साड़ी ही पहनने की अनुमति थी, नई बहू आने के कुछ दिनों बाद ये परम्परा भी बदल दी गई।
दिव्या पूरे दिन घर में ऐसे ही डोलती रहती बस दिखावे के काम करती थी, जब काजल रसोई में सारी तैयारियां कर लेती फिर दिव्या रसोई में पहुंचती, और काजल को कहती "भाभी आज मैं सब्जी बना लेती हूं।" जबकि काजल सारे मसाले पीस कर तैयार रखती और खाने की टेबल पर सारी तारीफे दिव्या बटोर लेती।
ऊपर से सब कहते दिव्या तो काजल से जायदा अच्छा खाना बनाती है। काजल को बुरा लगता पर वो घर में कलह नहीं करना चाहती थी इसलिए चुप रहती। धीरे धीरे घर के सभी काम का श्रेय दिव्या लेने लगी। जबकि उसके पीछे की मेहनत काजल की होती।
कुछ दिनों बाद चंदा जी और मेहता जी की शादी की वर्ष गांठ थी। काजल ने दिव्या को कहा हम कुछ अच्छा सा करते हैं मम्मी जी पापा जी के लिए।
दिव्या ने कहा "मैं कपड़े ला दूंगी और केक ले आउंगी बाकी काम आप देख लेना। काजल ने भी कह दिया ठीक है। सालगिरह वाले दिन दिव्या ने अपने सास ससुर को पार्टी में पहनने वाले कपड़े दिए ये बोल कर कि सारी योजना उसने अकेली बनाई है, सारी तैयारी उसने अकेले ही की है। जबकि घर की साफ सफाई सजावट मेहमानों के खाने की तैयारी काजल ने की थी।
पार्टी में भी चंदा जी ने सभी को यही कहा पहली बार इतनी अच्छी तरह वर्षगांठ मना रहे हैं तो छोटी बहू की वजह से वरना बड़ी बहू को तो ये सब आता ही नहीं। हमारी दिव्या बहू आज के जमाने की है, सारे काम फटाफट कर लेती है, बड़ी बहू तो ढीली है। काजल के दिल में चंदा जी की बात का बहुत दुख हुआ। अगले दिन थकावट की वजह से और मौसम की वजह से काजल बीमार पड़ गई। एक सौ चार बुखार था, डॉक्टर ने आराम करने को कहा।
अब दिव्या की हालत खराब हो गई, इतने दिनों से तो वो काजल के किए काम की तारीफ लूट रही थी, अब उससे घर नहीं संभल पा रहा था। कभी सब्जी जल जाती तो कभी टाइम पर टिफिन नहीं बना पाती। घर भी पहले जैसा साफ सुथरा नहीं रहता, फ्रिज में सब्जियां पड़े पड़े खराब हो जाती, कभी राशन मांगना भूल जाती।
घर में भी सब कहने लगे खाने में पहले जैसा स्वाद नहीं रहा।
दिव्या को बहुत गुस्सा आता कि एक तो पूरे दिन काम करो ऊपर से सबको स्वाद और चाहिए खाने में।
दिव्या एक दिन अपनी मां से बात कर रही थी "मां मुझसे नहीं होता सब काम, सबके नखरे मुझसे नहीं देखे जाते। पहले तो भाभी सब काम कर लेती थी मैं तो दिखावा करती थी काम करने का, मुझे मायके बुला लो मां कोई बहाना करके, मुझसे ये नौकर वाले काम नहीं होते इन लोगों के लिए।"
चंदा जी जो अपनी सुंदर बहू के कमरे में कुछ काम से आई थीं सारी बातें सुन लीं, आज उनकी आंख के सामने छोटी बहू की सच्चाई आ गई थी। आज उन्हें बात समझ आ गई सोना कितना भी पुराना हो कीमती ही होता है और हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और ही होते हैं।