बड़बोलापन
बड़बोलापन
हम लोग अभी-अभी ट्रांसफर हो कर भोपाल आए थे। हमने सोचा बड़ा ख़ुबसूरत शहर है। यहाँ की हरियाली, बड़ी-बड़ी झीलों की नगरी ख़ुबसूरती से भरी पड़ी है अमलतास, गुलमोहर, सुगंधित पेड़ों की कतारें, दिन कितना ही गर्म हो शामें ठंड़ी होती है, ये मशहूर है। इतना ख़ुबसूरत शहर लगा कि हम यहाँ के ही होकर रह गए।
हम लोग पहले तो सरकारी क्वार्टर में रहते थे, हमारे साथ अलग - अलग क्वार्टर में कई राज्यों की फैमिली रहते थे, हमारे सबसे अच्छे ताल्लुक़ात थे।
असल में आपको भोपाली लोगों की बड़बोलेपन की बात सुनाना चाहती हूँ। हमारे फैमिली फ्रेंड में सिद्दीकी साहब की फैमिली भी रहती थी। वो क़दिमी भोपाली थे, भई उनके घर में बहुत ही ज़्यादा फेक बातें बनाने की आदतें थी। उनके तीन बच्चे थे, दो लड़के एक लड़की थी। सिद्दीक़ी साहब के छोटे साहबज़ादे तारिक़ बहुत ही बड़बोला था। तारिक़ की शादी के लिए उसके वालिद ने हमारे ख़ानदान में मेरे भाई की बेटी के लिए रिश्ता भिजवाया, मेरे भाई ने तारिक़ को हमारे यहाँ ही देखा था। भाई की बेटी ख़ुबसूरत भी और बहुत क़ाबिल थी। एम.बी.बी.एस. कर रही थी। भाई ने सिद्दीक़ी साहब के यहाँ के रिश्ते को मना कर दिया।
अब तारिक़ मियाँ तिलमिला गए। फिर तो हमारे यहाँ हर कभी, आकर बैठ जाते और इतने बड़े-बड़े किस्से सुनाते वो लड़कियों की लाइन लगा दें, आपके भाई ने हम जैसे नवाब ख़ानदान के मेरे जैसे लड़के को इंकार किया और तो और लड़कियों के कैरेक्टर को भी ख़ुब बखान करता था। आजकल की लड़कियों को ज़रा सा घूमाओ-फिराओं वो आपके साथ सब कुछ कर लेती है। हम लोगों ने कहा भी, भई उनकी बेटी है वो तुमसे अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहते है! आपका, हमारा जोर थोड़ी है उन पर।
अरे हां भोपाल के लोकल लोगों की ख़ासियत होती है। आप किसी भी पुराने वहाँ के रहने वालों से मिलेंगे तो वो सबसे पहले यहीं तआरुफ़ देतें है। ‘अमां ख़ां मियाँ हम नवाब ख़ानदान से है...’ भईया हमारे तो सैकड़ों लोगों से ये सुन-सुन कर कान पक गए... अब तो हम किसी नई फैमिली से मिलते है तो हम तैयार रहते है, उनका ये जुमला सुनने के लिए।
तारिक़ मियाँ ने ख़ुब सुनाई हम भी चुप थे... भई आपकी शादी जहाँ भी होगी हम भी देखेंगे बस यही सोचकर ख़ामोश थे।
कुछ महीनों बाद ही तारिक़ मियाँ और उनकी अम्मी शादी का कार्ड देने आए। हमने भी मुबारक बात दी।दोनों बहुत इसरार करके गए और तारिक़ मियाँ ने अपनी होने वाली बीवी की ख़ुब तारीफ़ की, हमनेभी हंस कर कहा, हां, भई हम मिलेंगे तुम्हारी बीवी से तुम ले तो आओ ब्याह कर।
अब बड़बोलापन वाले तारिक़ मियाँ एक छोटे से गाँव की 12वीं पास लड़की से शादी कर के ले आए।
लड़की थी ख़ुबसूरत, भोपाली की चमक-दमक और ससुराल में झूठी शानो-शौक़त देख कर वो तो दो क़दम आगे निकली।
तारिक़ की अम्मी मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी। वो बेचारी गाँव की थी तो उनके बच्चे और पति भी उनको हर जगह नीचा दिखाते थे और उनकी चलने नहीं देते थे।
तारिक़ की अम्मी को नई बहु परेशान करने लगी, वो परेशान थी तो हमारे इधर चली आई। मैं उन्हें बड़ी आपा कहती थी। वो थी भी बहुत ही प्यारी मोहब्बत करने वाली लेडी, झूठ और फ़रेब से दूर बड़ी ही नेक ख़ातून। मैंने कहा, अरे बड़ी आपा, आप हमें भूल ही गई। बहुत दिनों में हमारी याद आई आपको। कहने लगी, कुछ दिनों से तबियत बहुत ख़राब थी।
बड़ी आपा ने झिझकते हुए बताया कि किसी को बताना मत हमारी बहु के शादी से पहले नाजायज ताल्लुक़ात अपने मामू के लड़के से थे। हमारे तारिक़ मियाँ को अपनी पहली रात में उसने बता दिया।
इस बात को सुनकर ये लगा कि तारिक़ मियाँ की भोपाली हेकड़ी निकल गई, लड़कियों की इज़्ज़त न करने का अल्लाह का इंसाफ देखने को मिल गया।