बचपन से सीख
बचपन से सीख
मैं अपने ऑफिस से वापस घर आ कर बैठा था। ऑफिस में काम की थोड़ी टेंशन से थोड़ा अशांत था। इतने में मेरी पत्नी भी ऑफिस से आ गयी। वो भी
थोड़ी परेशान लग रही थी। हम दोनों एक साथ बैठे ऑफिस की मुश्किलों की बात कर रहे थे। शायद थोड़ा ऊँचा भी बोल रहे थे। इसी गहमा गहमी में पता ही नहीं चला की ये बातें कब हमारे बीच बहस में तब्दील हो गयी और अब तो हम एक दूसरे से लड़ रहे थे।
जब आप अपना आप खो देते हैं तो कई बार अपने आस पास की खबर भी नहीं रहती। हमारा चार साल का बेटा भी उसी कमरे में हमारी सारी बातें सुन रहा था। अचानक वो किचन में गया और दो गिलास ठंडा पानी ले आया। पानी हमें देकर वो बोला कि पापा क्या आप लोग ये सब बातें प्यार से और धीमी
आवाज़ में नहीं कर सकते। हम दोनों उसकी ये बात सुन कर दंग रह गए, हमें शायद इतने छोटे बच्चे से इतनी समझदारी की बात की उम्मीद नहीं थी।
उस दिन के बाद हम जब भी कभी आपस में बात या बहस करते हैं तो इस चीज का ख्याल रखते हैं कि आवाज़ ज्यादा तेज न हो और उसमे तल्खी
न हो। शायद हमारे बेटे की समझदारी ने हमें संयम रखना सिखा दिया था।