"बचपन -खट्टी-मीठी "
"बचपन -खट्टी-मीठी "
जब बात करें हम बचपन की, हर बात कचोटे जाती है,
कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी हर बात कचोटे जाती है।
संघर्ष हमारा हम ही थे, इस बात का इल्म हमें ना था,
जब इल्म हुआ तो रूप लिए एक उम्र की सामने दस्तक थी।
वो भोलापन वो नटखटपन अब बात कहाँ वो बचपन की,
दादी -नानी के किस्से की अब बात कहाँ इस उम्र में थी,
एक थाली में सब खा लेते, थोड़ा झगड़ते,थोड़ा मना लेते,
जब बात करें हम बचपन की, हर बात कचोटे जाती है,
कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी हर बात कचोटे जाती है।
हम एक भी थे, हम नेक भी थे, मिलजुलकर बोझ उठाते थे,
वो भोलापन,वो अक्खड़पन ,अब बात कहाँ वो बचपन की।
हम डरते थे उन बातों से, जो बात कभी ना हमने कही,
जब बात कभी डर की होती, भईया की यादें होती थी,
भईया का डांटऔर प्यार भरा वो बात कहाँ अब बचपन की,
जब बात करें हम बचपन की, हर बात कचोटे जाती है,
कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी हर बात कचोटे जाती है।