"अभ्युदय "-2

"अभ्युदय "-2

3 mins
154


कहते हैं समय सभी चीजों का मरहम होता है, और समय से बड़ा कोई नहीं होता। विद्यालय लगातार सुव्यवस्थित तरीके से चलता रहा, छात्रों में नया अध्यापक लोकप्रिय हो चुका था। 

   बच्चे उस नए अध्यापक की बातें ध्यान से सुनते और मन से पढ़ते थे उसे भी अपने बच्चों से स्नेह था। एक दिन मध्यान्ह समय सभी लोग बैठे हुए थे, किसी ने बताया कि शिक्षक संघ का निर्माण हो रहा है, अध्यापकों ने शहर में किसी विशेष स्थान पर मीटिंग रखी हैं। 

मीटिंग रविवार को थी, सभी अध्यापक उस विद्यालय एक कार द्वारा वहां पहुँचे। वहां पहले से ही भीड़ थी बहुत सारे अध्यापक वहां पहुंचे थे। कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जिन्होंने कार्यक्रम रखा था उन्होंने अपनी बात रखी, अपने और अपने साथियों को महत्वपूर्ण पदों को बांट दिया। 

ये सारी हरकत नया अध्यापक देख रहा था, चुपचाप वो सबको सुन रहा था। अबतक जिलाध्यक्ष की घोषणा हो चुकी थी, शर्मा जी को जिलाध्यक्ष बनाया गया था जो शहर से लगे किसी विद्यालय के अध्यापक थे। 

नए अध्यापक के विद्यालय के सक्षम व्यक्ति को सामान्य सा पद दिया गया, यह बात उस नए अध्यापक को बुरी लगी, उसने वहां कुछ नहीं बोला।

उसके बाद रसीद कटी निश्चित धन राशि जमा कर वो सभी लौट आए। 

अगले दिन लोगों ने बीते दिन पर चर्चा की, मिले सम्मान से वो संतुष्ट नहीं थे। नए अध्यापक ने उनसे पूछा आप क्या चाहते हैं? उन्होंने कहा सम्मान सही नहीं हुआ। नए अध्यापक ने कहा हम नया संगठन बनाते है। 

उन दिनों प्रदेश में सम्भवतः 2 शिक्षक संगठन थे। मिश्रा जी का और पांडेय जी का। नए अध्यापक ने थोड़ी देर मे अपने सूत्रों के माध्यम से एक संगठन से बात की। थोड़ी देर मे सारी बातें स्पष्ट हो गई, अब उसके साथियों का बड़े पदों से सम्मानित होना सुनिश्चित हो गया। 

अब मीटिंग का दौर शुरू हुआ, अन्य विद्यालय के अध्यापकों से संपर्क होना शुरू हो गया, संगठन का प्रारूप तय होने लगा, समयानुसार छोटी यात्रायें भी हुई, तकरीबन धीरे-धीरे पद निर्धारण की प्रक्रिया भी होने लगी। 

ये खबर पहले वाले संगठन को प्राप्त हो चुकी थी, उन्होंने तुरंत नए संगठन के सक्षम लोगों से संपर्क साधना शुरू किया, लोगों ने कहा एक मीटिंग हो जाए ,संगठन एक ही हो, सभी ने अपनी स्वीकृति दे दी नए अध्यापक ने कहा कि जैसा आप सबको उचित लगे कीजिए, मैं आपके सम्मान के साथ हूं। 

मीटिंग का दिन निर्धारित हुआ दोनों टीमें आमने-सामने थी, बहुत विमर्श हुआ लेकिन महामंत्री और मंडल अध्यक्ष के पदों पर विवाद बना रहा। 

जिलाध्यक्ष के लिए नामित व्यक्ति ने नए अध्यापक से बात करना शुरु किया और अकेले में ले जाकर बात की, और महामंत्री के लिए अपने साथी का नाम ही सुझाया। 

नए अध्यापक ने नकारात्मक उत्तर के साथ कहा कि महामंत्री तो उसके विद्यालय का अध्यापक (वही इन्टर वाला अध्यापक ही बनेगा),नहीं तो आप अपना संगठन बनाओ, हम अपना संगठन। 

बहुत प्रयास के बाद भी निर्णय नहीं हो पाया, और एक संगठन के समानांतर दूसरा संगठन तैयार होने वाला था। धीरे-धीरे वैचारिक अभ्युदय प्रगति पर था। 



Rate this content
Log in

More hindi story from Dr Abhishek Kumar Srivastava(अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं में विश्वास, पूर्वजों के मान-सम्मान के दृष्टीकोण से कार्यों का संपादन,जयप्रकाश नारायण जी एवं गुरुदेव टैगोर जी को मार्गदर्शक मानना। )