बचपन का प्यार

बचपन का प्यार

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मन्दिर में बजती हुई घण्टियों के बीच उसकी पायल की छनछन सुनकर तनय ने पीछे मुड़कर देखा। वह फूलों की बिखरी हुई पंखुड़ियों पर हल्के कदमों से भाग रही थीं जैसे बच्चों के साथ खेल रही हो। वह उसकी बचपन की सखा माला थी।माला तनय का प्यार रही है बचपन से। एक अल्हड़ सी जिंदगी जी रही थी उसके साथ। तनय पर पूरा अधिकार था उसका। जब चाहें उसका हाथ पकड़कर अपने साथ खेलने के लिए बरगद के नीचे ले जाना। छोटी छोटी बातों पर माला का रूठ जाना और फिर तनय की कोशिश उसे मनाने की। पूरे गांव में उनकी जोड़ी राधा कृष्ण के नाम से जानी जाती थी।


फिर बीतता समय पढ़ाई के लिए तनय को माला से दूर ले गया। माला की छवि अपने दिल में बसाये तनय पढ़ाई कर रहा था। जैसे-जैसे उसकी पढ़ाई आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे माला के प्रति उसकी सोच भी बदल रही थी। उसके लिए माला अब सिर्फ उसके बचपन की दोस्त थी जिसके साथ उसने कुछ अच्छे पल गुजारे थे।


आज तनय फिर अपने गांव में लौट आया था। गांव में घुसते ही मंदिर की साज सज्जा देख वह मंदिर में चला आया जहां उसने माला को देखा। एक सुंदर और बेपरवाह हँसी हसती हुई माला उसके मन भा गई। वह बच्चों को मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ कर तनय और उसके किस्से सुना रही थी।तनय भी वहाँ जाकर खड़ा हो गया। माला उसे पहचान नहीं सकी। तनय भी माला को पहचान नहीं पाया। माला उसे देख कर बोली।


“आप कौन है और यहाँ क्या कर रहे हैं?”


“जी मन्दिर की डेकोरेशन देख कर अंदर चला आया। बहुत सुंदर लग रहा है। आज कुछ खास है शायद।”


“जी हाँ आज हमारे प्रधान जी के सुपुत्र श्री तनय जी का जन्मदिन और उनकी वापसी है।” माला की आंखों में चमक थी।


अपना नाम सुनकर तनय चौक गया। फिर उसने संयत होते हुए पूछा- “अच्छा। वैसे आपका नाम क्या है? बताएंगी प्लीज।”


“देखो मिस्टर। मुझसे फ्लर्ट करने की कोशिश भी मत करना वरना मुझसे से बुरा कोई नहीं होगा, समझ गए ना। वैसे भी अब मेरी शादी होने वाली है इसलिए मेरे पास फटकने की कोशिश भी बेकार है और वैसे भी तुम तो कोई शहरी हो, तुम्हें तो कोई मॉर्डन मेमसाहब ही संभाल सकती हैं।”


“अच्छा चलो हटो यहां से। बड़े आए आपका नाम क्या है जी, यह कौन होता है मेरी इंक्वायरी करने वाला।” माला बड़बड़ाते हुए वहां से चली जाती है।


तनय बच्चों से माला के बारे मे पूछताछ करता है जहाँ उसे पता चलता है कि वह उसके बचपन की दोस्त माला है। उसने स्नातक डिग्री हासिल की है और अब उसकी शादी तनय से होने वाली हैं।तनय तो इस रिश्ते के लिए मना करने के लिए ही वापस आया था लेकिन अब वह माला को अपने जीवनसाथी के रूप में देखकर बहुत खुश था। उसने अपने पिता से कहा कि वह उसकी पहचान अभी किसी को ना बताये। शाम को पूजा के समय ही वह सबके सामने अपनी पहचान जाहिर करेगा।


उसके बाद वह फिर मन्दिर पहुंच गया जहाँ माला पूजा का समान इकट्ठा कर रही थी।


"हेलो। सारी तैयारियां कर ली पूजा की।"


“तुम! फिर यहां आ गए? तुम्हें समझ नही आता, दूर रहो मुझसे।”


“दूर ही तो हूँ तुमसे।” तनय सीधा खड़ा हो गया।

माला वहाँ से जाने लगी तो तनय पीछे से बोला- "वैसे किसी गांव के गवार के साथ अपनी जिंदगी बर्बाद करने से अच्छा है कि मेरे साथ शहर में एक अच्छी जिंदगी गुजारो।"


माला को परेशान देखकर तनय की हँसी रोकने पर बहुत मुश्किल से रुक रही थी। माला वहाँ से चली जाती हैं। तनय बार बार उसे परेशान करता था और वह गुस्से को पीकर मन्दिर का प्रबंध देख रही थी।शाम तक तनय और माला की नोंक झोंक चलती रही। पूजा का समय हो चला था इसलिए तनय तैयार होने चला गया। माला का मन नही था पूजा में जाने का लेकिन वह अपने बचपन के प्यार अपने जीवनसाथी को देखने के लिए उत्सुक थीं।


शाम को मंदिर में चहल पहल थी। सभी लोग पूजा में शामिल होने के लिये आये थे। माला भी सफेद रंग के लहँगे में बहुत सुंदर लग रही थी। यज्ञ वेदी सजी हुई थी। पंडित जी ने यजमान को आमंत्रित किया। तनय अपनी जगह पर आ कर बैठ गया। पीले कुर्ते में उसकी शख्सियत निखर रही थी।माला का चेहरा फक्क पड़ गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़के ने उसे सुबह से इतना परेशान कर रखा था वही उसका तनय था।


अब उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। पूजा खत्म होते ही वह तनय को अपने साथ बरगद के नीचे ले गई।


"तो तुम मुझे परेशान कर रहे थे।"


"बचपन से"


"शर्म नहीं आती"


"अपनी होने वाली पत्नी से कैसा शर्माना।"तभी एक ठंडी हवा का झोंका उन दोनों को सहला गया मानो जैसे कह रहा हो कि बचपन से लड़ते हुए आ रहे हो अब तो शांत रहो। अपने बचपन के प्यार को नए आयाम दो।


 



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