बच्चे-किसके?
बच्चे-किसके?
रोज की भांति आज भी कविता अपनी आन-लाइन कक्षा ले रही थी लेकिन, आज उसका मन भटक रहा था। वह खिड़की की ओर देखे जा रही थी। जैसे ही उसकी कक्षा खत्म हुई उसने घर के सामने बन रही बड़ी इमारत की ओर अपने कदम बढ़ाए और वहां धूल मिट्टी में खेल रहे मजदूर बच्चों को पास बुलाकर सबसे पहले कुछ खाने का देकर पूछा- "बच्चों क्या तुम सभी पढ़ना चाहते हो"। सबकी एक साथ हां और आसपास खड़े उनके माता-पिता के चेहरे की चमक ने बता दिया था पढ़ने के लिए वे सब कितने लालायित हैं। बस फिर क्या था अगले ही दिन से कविता अपनी ऑनलाइन कक्षाएं खत्म कर उन बच्चों के पास जाकर न सिर्फ उन्हें पढ़ाने लगी बल्कि उनके लिए पौष्टिक खाना भी ले जाने लगी। साथ ही साथ समय-समय पर उनके लिए कपड़े व जरूरत का सामान भी ले जाती। कविता पढ़ाने के साथ-साथ बच्चों में अच्छी सोच का भी संचार करना चाहती थी। ताकि उनकी मानसिकता उनके माता-पिता की तरह "मजदूर के बच्चे मजदूर ही बनेंगे" न होकर भारत का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की हो।
