Manpreet Kaur

Inspirational

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Manpreet Kaur

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बैग (Bag) वाले की सफलता

बैग (Bag) वाले की सफलता

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गंगापुर नमक गाँव में लखन नाम का एक युवक अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था। उसकी माँ अक्सर बीमार ही रहती और लखन अपनी मेहनत की कमाई से अपने माँ के इलाज के पैसे बड़ी मुश्किल से जमा कर पाता।

लखन की माँ- बेटा लखन, मेरी वजह से तुझे कोई सुख नहीं मिला। मेरी दवा-दारु का जुगाड़ करते-करते, तूने अपनी न जाने कितनी छोटी-छोटी खुशयों को मार दिया।

लखन - नहीं माँ, यह मेरा फ़र्ज़ है। हमारा वक़्त बदलने वाला है । मुझे मालिक ने काम में तरक्की देने का वादा किया है। फिर मैं तुम्हारा शहर जाके इलाज करवाऊंगा।

लखन, बैग बनाने की Factory में बहुत मेहनत और मन लगा के काम करता था। एक दिन, लखन का मालिक चंदन सेठ, Factory से सभी कर्मचारियों को निकाल देता है।

लखन- साहब, मेरी तरक्की होने वाली थी। आप यूँ सबको निकल देंगे, तो हमारी रोज़ी रोटी कहाँ से आएगी?

चंदन सेठ- अरे, तुम्हें पाता नहीं क्या? Market में कितनी मंदी चल रही है और हर जगह से लोगों को निकला गया है?

लखन के साथी कर्मचारी, हरी और भानु भी इसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं।

हरी- नहीं मालिक! आप ऐसा नहीं कर सकते। इतने साल ईमानदारी से काम करने बाद, आज हमें यह सिला मिल रहा है आपसे?

भानु- आपको हमें कोई दूसरी नौकरी दिलानी पड़ेगी। आपका कुछ तो फ़र्ज़ बनता है की नहीं? या फिर आप हमें कुछ महीनों के गुज़ारे के लिए कुछ रकम दे दो?

चंदन सेठ- अरे यहाँ कोई पैसों का पेड़ लगा हुआ है क्या? तुम लोगों को रकम दूंगा तो सारे कर्मचारियों को देनी पड़ेगी। जाओ यहाँ से, वार्ना धक्के मार के निकल दूंगा।

हरी, लखन और भानु निराश होकर वहां से चले जाते हैं। कुछ दूर एक पेड़ के नीचे बैठ कर चर्चा करने लगे।

भानु- यह चंदन सेठ खुद को क्या समझता है?

हरी- मैं तो सोच रहा हूँ की शहर जा के कोई नौकरी कर लूँ।

भानु- हाँ, मैं भी आऊंगा तेरे साथ। लखन, तू भी चल ना।

लखन- नहीं यार, मेरी माँ बहुत बीमार है, उसे छोड़ के मैं नहीं जाऊंगा।

हरी- अरे तो शहर में उनका इलाज करवा ले। क्यूंकि अपने गाँव में खेती के सिवाय कोई काम नहीं और अच्छा दवा खाना भी नहीं।

लखन- तो यहाँ माँ का ख्याल कौन रखेगा? शहर भी नहीं ले जा सकता क्यूंकि सफर करने से वो और बीमार हो जाएगी।

अगले दिन, हरी और भानु शहर चले गए और यहाँ लखन अपनी बूढ़ी माँ के पास उदास बैठा था।

लखन की माँ- लखन, तू उदास मत हो। शहर जाके कोई नौकरी कर ले। मुझ बूढ़ी के पीछे क्यों अपना समय गवा रहा है?

लखन- नहीं माँ, मैं जरूर कुछ करूँगा मगर साथ में तुम्हारा ख्याल भी रखूँगा।

लखन सो ही रहा था, की इतने में उसकी की नज़र अपनी माँ की कुछ पुरानी साड़ियों में पर पड़ी। उन साड़ियों को लेकर, उसे एक Ideaआता है। लखन बैग बनाना जानता था। उसने उन पुरानी साड़ियों, अपने पुराने कपड़े और गाँव में सभी से उनके पुराने कपड़े मांग के, दो दिनों में काफी सारे मजबूत बैग बना लेता है।

अपने गाँव के बाजार में, एक छोटी सी जगह पर चादर बिछा के लखन अपने बैग बेचता है।

लखन के बैग, काफी सस्ते दाम के थे और बाजार में बैग की कोई दुकान नहीं थी। गांव वाले प्लास्टिक की पतली थैलियों में सामान खरीदकर भरते थे। ऐसे में, लखन के मजबूत बने बैग से गांव वालों को सहूलियत मिल गयी।

धीरे-धीरे लखन को बैग बेचने से बहुत मुनाफा होता है। एक दिन उसने अपनी खुद की बड़ी बैग की दुकान खोली। दुकान में हर तरह के बैग थे, छोटे Money Purse, School Bags, Hand Bags, और बड़े सामान वाले बैग भी थे। School     के बच्चे भी लखन के School Bags ही पसंद करते

कम दाम में मजबूत बैग खरीदने, पास के गाँवाले और दूर- दूर से लोग आते थे। कुछ महीने ऐसे ही चलता रहा। फिर एक दिन, उसने एक छोटा सा खारखाना खोला। मंदी के हालातों में सुधार आ चूका था, लेकिन गाँव के लोग लखन के पास ही काम मांगने जाते। लखन ने कई जरूरतमंदों को अपनी फैक्ट्री में रोज़गार दिया था। उसने सभी को बैग बनाना सिखाया और कुछ ही समय में लखन का कारोबार इतना फैल गया, की उसका बड़ा ऑफिस और बड़ा घर बन गया था। देश भर में उसके Bags Supply होने लगे। फिर देखते ही देखते, लखन का कारोबार विदेश तक पहुँच गया।

लखन के दोस्त, हरी और भानु को जब लखन की तरक्की का पता चला तो वो भी उसकी कंपनी में काम करना चाहते थे।

हरी- लखन, तूने तो इतने कम समय में बहुत तरक्की कर ली। क्या हमें भी काम मिलेगा?

लखन- क्यों नहीं, पर तुम लोग तो शहर में काम कर रहे थे?

भानु- शहर में हमने ज्यादा कमाई के लालच में इतना डूब गए, की अपना मान सम्मान ही गंवा लिया। अपने हुनर को छोड़, हम झूठी चमक के पीछे भाग रहे थे।

लखन- अपना हुनर कभी व्यर्थ नहीं जाता। अगर हममें हुनर है, तो हम उसको अपना जुनून बनाकर कामयाब हो सकते हैं। मुझमें अच्छे बैग बनाने का हुनर था, इसलिए मैंने अपना रास्ता निकल लिया।

लखन, हरी और भानु को अपनी फैक्ट्री में काम देता है और दूसरी तरफ उन लोगों के मालिक चंदन सेठ का मंदी में दिवाला निकल चूका था। एक दिन चंदन सेठ भी लखन के पास काम मांगने आया।

चंदन सेठ- लखन, मुझे माफ़ कर दो। अपने घमंड के चलते मैंने तुम्हारा बहुत अपमान किया।

लखन- मैं तो आपका शुक्र गुज़ार हूँ, अगर आपने मुझे उस वक़्त ठुकराया न होता तो आज मैं यहाँ न होता।

चंदन सेठ- क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं?

लखन- जीवन में एक ठोकर भी जरूरी है, क्यूंकि उसी से हम कामयाबी की मंज़िल तक पहुँचते हैं।

लखन, चंदन सेठ को भी काम पर रख लेता है।

                          


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