Manpreet Kaur

Others

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घमंडी स्वर्णा

घमंडी स्वर्णा

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असम में स्थित जोरहाट शहर में स्वर्णा, अपने माँ-बाप और दो भाइयों के साथ एक बहुत बड़े महल में रहती थी। स्वर्णा का परिवार जोरहाट शहर का सबसे आमिर और अपनी शान और शोहकत से जाना जाता था। स्वर्णा अपने दो भाइयों की एकलौती बेहेन और घर लाड़ली बेटी थी। बचपन से उसकी हर ज़िद्द और फरमाइशों को बिना उसके कहे ही पूरा किया जाता। ज़मीन पर पाऊँ कभी- कभी रखती थी।स्वर्णा के हर जनम दिन पर उसे सोने से लाद दिया जाता। एक राजकुमारी सी ज़िन्दगी जीने वाली स्वर्ण बड़ी होकर, एक बहुत घमंडी लड़की निकली। वह लोगोंसे बात करना तोह दूर, उनकी तरफ देखना भी पसंद नहीं करती थी। किसी को भी अपने लायक नहीं समझती थी। अपनी सहेलियों से भी अपनी ग़ुलामी करवाती थी।यहाँ तक कि उसके सुबह उठने से लेकर, रात को सोने तक हर चीज़ नौकर-चाकर उसके सामने पेश करते। पूरे जोरहाट में स्वर्णा के घमंडी स्वाभाव से लोग परिचित थे, लेकिन उसकी सुंदरता से मोहित, कई बड़े घर के रिश्ते उसकी लिए आया करते।


स्वर्णा हर लड़के को अपनी रहीसी से तोलकर, ठुकरा देती। उसके इसी घमंडी स्वाभाव से उसकी माँ बहुत चिंतित रहती।स्वर्णा की माँ "बेटी स्वर्णा, इतना घमंड अच्छा नहीं, आज जो है, हमेशा रहे, यह जरुरी नहीं।"


स्वर्णा- " माँ, मुझे मेरे लायक कोई लड़का नहीं मिला अब तक। इस शहर में कोई हमसे ज्यादा अमीर हो तो बताओ? मैं तो कहती हूँ की मेरे भाइयों के लिए भी अमीर लड़कियां ढूंढ़ना।"


स्वर्णा की माँ चिंतित होकर अपने पति से बात करती है,स्वर्णा की माँ- "सुनिए, मुझे स्वर्णा की बहुत चिंता हो रही है। उसकी शादी उम्र हो गयी है और उसक घमंडी स्वाभाव देख, कौनसा लड़का उससे शादी करेगा? क्या आपकी नज़र में कोई है ऐसा अच्छे घर का लड़का?"


स्वर्णा के पिता- "क्यों चिंता करती हो? हमारी राजकुमारी के लिए कोई राजकुमार ही आएगा।"


स्वर्णा के पिता भी एक ऐय्याश किस्म के आदमी थे। उनकी धन- संपत्ति इतनी थी, की उन्होंने कई गलत शौख पाले हुए थे। यह देख, स्वर्णा के भाई भी उसी नक़्शे कदम पर चलने लगे। स्वर्णा की माँ ने लाख कोशिश की, पर उनकी कोई नहीं सुनता था।स्वर्णा के पिता अक्सर अपने बच्चों को एक बात कहते की, "हम वक़्त के नहीं, वक़्त हमारा मोहताज हैं "


कुछ दिन बाद, स्वर्णा की माँ की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गयी। घर एक वही थी, जिसमे इंसानियत और दया भावना थी। लेकिन उनकी मौत का किसीको कोई दुःख नहीं हुआ।लोग देखकर यह कहते- अब यह घर ज़रूर बर्बाद होगा, क्यूंकि वह भली औरत की किसीने कदर नहीं की। उसके अच्छे कर्मों से ही इस घर में बरकत थी।स्वर्णा के पिता तो पहले से ही गलत आदतों से घिरे हुए थे। उन्होंने अपनी ऐय्याशियों को और ज्यादा बढ़ा लिया। यह देख दोनों बेटों ने अपनी पसंद से शादी कर, घर और जायदात का बंटवारा कर लिया।


स्वर्णा के पिता नशे में हमेशा धुत रहते और एक दिन इसी के चलते, उनकी भी मौत हो गयी। अपने पिता की मौत का फायदा उठाते हुए, स्वर्णा के भाइयों को भी लालच आ गया। अपनी लाड़ली बेहेन स्वर्णा को भूलके, दोनों बहियों ने अपने पिता की साड़ी जायदात के बंटवारा कर लिया और स्वर्णा को कुछ पैसे देकर घर से निकल दिया, क्यूंकि उसे बिना बताये घर को बेचना था।


स्वर्णा ने लाख मिन्नतें की, "यह आप लोग सही नहीं कर रहे हैं। मुझे दर-दर की ठोकरें खाने छोड़ दिया। अपनी बेहेन पर तरस नहीं आया आपको? मैं कहाँ जाउंगी?”


स्वर्णा के भाइयों ने कहा, "तुमने अपने घमंड के चलते शादी नहीं की और अब हम पर बोज मत बनो। जाओ, कोई ठिकाना ढूंढो।"


स्वर्णा अपनी सहेलियों के पास जाती है और उन सभी से मिलती है जिनको वह अपने लायक नहीं समझती थी। उसकी बत्तमीज़ीओन और घमंडी स्वाभाव याद कर, कोई उससे बात नहीं करता और सहारा देना तो दूर की बात।स्वर्णा बुरी तरह से टूट गयी और कहीं एक छोटा घर लेके रह सके इतने भी पैसे नहीं थे।उसे एक ख़राब और टूटी हुई गाडी एक सड़क के किनारे दिखती है और वह वहीँ रहने का बंदोवस्त करती है।


अपना गुज़रा करने के लिए वह काम ढूंढ़ती है और उसे उन्ही लोगों का सामना करना पड़ा जिनकी उसने अपने घमंड के चलते बहुत बेइज़त्ती की थी। उन् लोगों ने उसे काम नहीं दिया। पढ़ी-लिखी होते हुए भी, उसे अपनी ही एक सहेली के घर सफाई का काम मिलता है, जिससे वह अपनी गुलामी करवाया करती थी। अपने बुरे वक़्त के चलते, वक़्त की नज़ाकत को समाजके वह काम कर, कुछ पैसे इक्कठा करके, एक छोटा सा भाड़े का घर ढूंढ़ती है।


कुछ वक़्त ऐसे ही गुज़रता है और एक दिन स्वर्णा की हालत ख़राब हो जाती है। जांच के बाद पता चला की उसे कैंसर है और इलाज के लिए पैसे भाई नहीं हैं। स्वर्णा की शादी नहीं हुई थी और अकेलेपन की पीड़ा और गरीबी उसे दिन-बा-दिन और बीमार कर रही थी।एक दिन, अस्पताल में एक बहुत बड़े कैंसर के स्पेशलिस्ट डॉक्टर, हर्षवर्धन आये थे। यह वही थे जिनको स्वर्णा ने शादी के लिए ठुकराया था।


स्वर्णा-" हर्षवर्धन तुम? तुम कैंसर स्पेशलिस्ट हो? "


हर्षवर्धन- "हाँ, मैं शहर के सबसे बड़े डॉक्टरों में से हूँ और तुम्हारा इलाज भी मैं ही करूँगा।"


स्वर्णा- "पर मेरे पास इलाज के पैसे नहीं हैं।"


हर्षवर्धन- "इलाज का सार खर्चा मैंने पहले ही भर दिया। तुम फ़िक्र मत करो।"


स्वर्णा- "लेकिन क्यों?"


हर्षवर्धन-" मुझे तुम्हारे बिगड़े हालातों का पता चला। पूरा शहर जानता है तुम्हारे परिवार के किस्से। तुम्हारी बहादुरी की दात देते हुए मेने तुम्हारी मदत करने की सोची।मुझे पूरी उम्मीद है, की तुम्हे अपनी गलतियों से सबक मिल गया होगा।"


स्वर्णा- "क्या तुम्हारी शादी हो गयी?"


हर्षवर्धन- "हाँ, और दुआ करता हूँ की तुम्हें भी एक साथी मिले।"


स्वर्णा- "नहीं, जैसी मेरी ज़िन्दगी है और जैसे मेने खुद को संभाला है, मैं अकेले जीवन गुज़ार लुंगी। माँ के गुजरने के बाद, पूरा परिवार बिखर गया। माँ की बातें अब मुझे जीवन गुज़ारने में मदद करती हैं। भगवान करे, तुम जैसा दोस्त सबको मिले।"


हर्षवर्धन- "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। देखो, अब यहाँ भी मैं तुम्हारी ज़िद्द के आगे हार गया।"


इसी बात पर दोनों हसने लगे। हर्षवर्धन से अपना इलाज करवाके स्वर्णा ठीक हो जाती है और दूसरी जगह अच्छी नौकरी ढूंढ के कुछ पैसे जमा कर, गरीबों की मदद करती है।अब समाज में स्वर्णा को इज़्ज़त और सम्मान मिलने लगा। अपना बाकी का जीवन उसने ऐसे ही गरीबों की मदद करने में लगा दी।



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