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बात सिर्फ़ इतनी थी

बात सिर्फ़ इतनी थी

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पहली दफा जब मैंने उसे देखा, गौर फरमाने वाली बात थी, वह नजर तो पहली थी पर ना जाने क्यों मुझे बहुत पुरानी से लग रही थी । प्रशासनिक भवन की छठी मंजिल ; मुझे एकदम सही से याद है वहीं मैंने पहली बार उसे देखा था । बस एक पल के लिए । न ही उसका नाम पता था और न ही उसके बारे में कुछ और जानता था ,हाँ पर मैं जानना चाहता था । रोज के जैसे मैं आज भी शाम को ग्राउंड में घूमने के लिए निकला था , अचानक फिर से वही हल्के भूरे बाल एकदम काली ऑंखें और कुछ 5 फीट की लंबाई ; मैं एकदम से उसे देखता रहा और ना जाने कब मेरी आँखों से ओझल हो गई मुझे नहीं पता चला । पीछे पलट कर देखा तो सिर्फ उसके लहराते हुए बाल दिख रहे थे ।कुछ ही दिन बीते रहे होंगे कॉलेज की एक प्रतियोगिता में हमारी मुलाकात हुई। हम दोनों इस प्रतियोगिता के प्रतिभागी थे। थोड़ी बातचीत हो हुई। सोफिया, पहली बार में मुझे बहुत प्यारा नाम लगा या वास्तव में वह प्यारा था। मैं उसे अपना नाम बताना भूल गया या शायद वह पूछना। हमारी थोड़ी बातचीत शुरू हुई एक ही विधा से जुड़े होने के कारण हम बहुत जल्दी अच्छे दोस्त बन गए। मुझे नहीं पता मैं कब उसके बारे में इतना ज्यादा सोचने लगा लेकिन अब मुझे हर जगह वही दिखने लगी थी। मुझे नहीं पता इस एहसास को क्या कहेंगे लेकिन यही सच था।

कुछ 5 महीने बीते होंगे हमारी दोस्ती और भी गहरी होती चली गई। मैं उससे अपनी समस्याओं का हल अक्सर मांगा करता था और वह झट से उनका हल बता भी देती। कुछ ऐसा ही रिश्ता था हमारा।

मैं उससे कुछ और भी कहना चाहता था पर नहीं कह सका , डर था या कुछ और मैं कह नहीं सकता । कोई कारण नहीं था बस मुझे अच्छी लगती थी, और बात सिर्फ इतनी थी । हर बार जब भी मैं उससे मिलता , मैं इस बात को कह देना चाहता था पर मैं ऐसा कभी नहीं कर पाया । शायद कुछ चीजें पूरा होने से ज्यादा अधूरा ही अच्छा लगतीं हैं । हमने एक दूसरे जो जानना भी शुरू कर दिया तमाम बार तो वो बिना मेरे कुछ बोले ही मेरी बातों को समझ जाती थी । तमाम बार मेरे परेशान होने पर वह बिना बताए समझ जाया करती थी । यह मेरे लिए एक किसी सपने से कम नहीं होता था कि कोई मुझे बिना बोले समझ जाए ।

आज ना जाने क्या हुआ, मैं बहुत परेशान था ; शायद किसी काम की वजह से, अचानक से वह मेरे सामने आ गयी । मुझे नहीं पता कि मैं उसे क्या क्या बोल दिया शायद वह भी जो नहीं बोलना चाहिए था । मैं उससे यह कभी नहीं कह पाया कि वह मुझे अच्छी लगती है पर ना जाने कैसे आज मैंने उसे कह दिया कि तुम मुझसे कभी बात मत करना । कुछ पुरानी बातें और भी याद आ गई पर मैं उन्हें नहीं कह सका । बात कभी बन पाई या नहीं मुझे नहीं पता पर बिगाड़ने में मैंने कोई कसर नहीं बाकी रखी । मैं इतना कुछ कहता चला गया और उसने सबकुछ चुपचाप सुन लिया ।

पूरे 2 महीने बाद आज फिर से मैं उदास था मेरे पास अपनी बात कहने के लिए आज शायद कोई नहीं था । मैं अकेला था और अपनी गलती के बारे में सोच ही रहा था कि फोन की घंटी बजने लगी । और ......


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