Kumar Gourav

Tragedy

1.0  

Kumar Gourav

Tragedy

अवैध

अवैध

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सर्दी के मौसम में बस यात्रा में बदन सिकोड़े चुपचाप लघुशंका दबाए बैठा था। ड्राइवर ने ठेके पर दारू के लिए बस रोकी और मैं जल्दी से शंका निवारण हेतु उतर गया। अभी शंका निवारण हुआ भी न था कि मेरे ऊपर वज्रपात हुआ, ड्राइवर ने बस आगे बढ़ा दी।

जेब टटोली तो स्मार्ट कहलाने वाला फोन था लेकिन बैटरी न होने के कारण बंद था। मुझे खुद पर गुस्सा आया बस में चार्जिंग प्वाइंट तो था लेकिन मैंने चार्जर सहकर्मी को दे दिया था। उसे वीडियो देखना था और उसकी बैटरी डाउन थी। मुझे लगा अभी लंबा सफर है मोबाइल बाद में भी चार्ज हो सकता है वैसे भी फोन की कोई जरूरत तब महसूस नहीं हुई थी।

पीले बल्ब की रोशनी में ठेके की तरफ बढ़ा तो देखा दरवाजा खुला है। जो जगह मयनोशों से गुलजार होनी चाहिए थी वह कुत्तों से आबाद थी। मैं बचते बचाते काउंटर पर सो रहे व्यक्ति तक पहुंचा और उसे अपनी व्यथा बताई। उसने बगल के कमरें में सो रहे बालक के बिस्तर की ओर इशारा किया जाओ वहाँ सो जाओ।

बालक का लिहाफ उसके लिए कदरन बड़ा था लेकिन फिर भी दो व्यक्तियों के लिए नाकाफी था। थोड़ी देर की कोशिश के बाद मैंने उठकर सिर्फ पैर लिहाफ के अंदर कर खुद को दीवार से टिका दिया। बाहर के खुले दरवाजे से सांय-सांय हवा आ रही थी। जब मुझे पूर्णतः अहसास हुआ कि बालक भी सो नहीं पा रहा है तो मैंने उससे कहा कि उठकर बाहर का दरवाजा बंद कर दे।

बालक ने नजर उठाकर देखा, यहाँ दारू की अलमारी के अलावा और कोई दरवाजा बंद नहीं होता है।

मुझे अचंभा हुआ कहीं रामराज्य में तो नहीं आ गया। कुरेदा तो उसने पीछा छुड़ाने की कोशिश की लंबी कहानी है क्या करोगे जानकर।

मैंने लंबी साँस छोड़ते हुए गुहार किया सुना दे तुझे भी कौन सा नींद आ रही है।

उसने बाकायदा कहानी सुनानी शुरू की- एक बालक था। वह बचपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहा था। आगे-पीछे के नाम पर दारू ठेके की नौकरी थी और वहाँ पीने वालों की गालियां। उसे समझ नहीं आता था उसके जैसे ही मुँह कान वाले तो क्या, उससे भी बदशक्ल लोग उसे हरामी क्यों कहते थे। उसने एक दिन मौका देखकर मालिक से पूछ ही लिया ? मालिक थोड़ी देर तो चुप रहा था फिर उसे टलता नहीं देख बोल दिया, तुझे मंदिर की चौखट पर कोई छोड़ गया था। तेरे माँ-बाप का अता-पता नहीं, शायद तू अवैध संतान था इसलिए हरामी कहते हैं।

जब पैदा हुआ तो कोई न कोई माँ-बाप होगा ही न ? उसने कुरेदा तो मालिक बिदक गया, कोई अपना नहीं आजकल सब कुछ पैसा है माँ-बाप सब।

उसके मन में गाँठ पड़ गई। अवैध और पैसा दो शब्द उसके जेहन में छप गये। तब से उसने चोरी, छिनतई, जुआ हर वह काम किया जो समाज में अवैध था और उसे पैसा दिला सकता था।

अवैध शब्द उसके पहचान के साथ जुड़ा था लेकिन एक आदमी था मोहन। जो उम्र में उससे दसेक साल बड़ा था लेकिन उसे बराबर की इज्जत देता था। एक दिन मोहन ने उससे कुछ घंटे के लिए कमरा माँगा।

लड़की जब कमरे पर पहुंची तब वह वहीं था। दोनों को एकांत में छोड़ने से पहले उसने अपनी जिज्ञासा बता दी। तुम दोनों ऐसा क्या करने वाले हो जो अपने घर पर नहीं कर सकते हो।

लड़की ने नजरें फेर ली। मोहन हँसा- हम लोग प्रेम करने वाले हैं, हमारा मजहब अलग है। अलग मजहब में प्रेम करना अवैध है आजकल।

उनको छोडकर दरवाजे से बाहर निकलते हुए उसने ठान लिया जो अवैध है उसे करना जरूर है। सोचते विचारते हुए वह मालिक के पास पहुंचा। मालिक ने उसकी समस्या का हल बताते हुए कहा कि तेरे आगे-पीछे जात धर्म का कोई ठप्पा नहीं है तू किसी से भी प्रेम कर सकता है।

वह खुश हो गया तभी मालिक ने उसके सर पर हाथ रखकर बाल बिखरा दिये लेकिन मेरी मान तो तू उनसे विशेष प्रेम करना जिन पर जात धर्म का कोई ठप्पा न हो। जो तेरी तरह हो।

मालिक के उस प्रेम भरे स्पर्श ने उसका जीवन बदल दिया। उस क्षण के बाद उस हरामी ने जीवन भर कोई अवैध काम नहीं किया। सिर्फ प्रेम किया। लेकिन इंसानी समाज में तो प्रेम करने के लिए जातपात, देश, धर्म, क्लास का होना जरुरी होता है।

इसलिए .. दरवाजा बंद नहीं होता।

मैं चिहुंका ..वो हरामी तू ही है क्या ? तुझे कैसे पता है ये कहानी ?

उसने मेरी आँखों में झांका। उसकी आँखे छलछला गई ..नहीं अपना सेठ है।

मुझे अपने शब्दों पर शर्मिंदगी हुई। मैं माफी मांगने के लिए शब्द ढूंढ ही रहा था तभी उसकी सर्द जबान कानों के रास्ते सीना चाक कर गई ..वो मैं तो नहीं लेकिन मैं भी हरामी ही हूं। अगर मैं वो हरामी होता तब भी ये दरवाजा बंद नहीं होता।

मैं शर्म से गड़ा जा रहा था। तभी एक पिल्ला सूंधते हुए बगल से गुजरा। मैंने उसे उठाकर गोद में बिठाया और लिहाफ ऊपर खींचकर ढक लिया।

पिल्ला और बालक दोनों मुतमईन होकर सो गये।


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