शिखा श्रीवास्तव

Drama

5.0  

शिखा श्रीवास्तव

Drama

और बसंत खिल उठा

और बसंत खिल उठा

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बासंती हवा के साथ फागुन की आहट और टेसू की महक सारी फ़िज़ा को खुशनुमा बना रही थी।

ये मौसम और टेसू के फूल दोनों ही मिष्टि को बेहद प्रिय थे।

बालकनी में बैठी मिष्टि ना जाने किन ख्यालों में खोई थी, उसके होंठो पर उसकी चिरपरिचित मुस्कुराहट खेल रही थी। तभी फोन की घण्टी से उसकी तन्द्रा भंग हुई। मन ही मन अनगिनत प्रार्थनाओं को दोहराते हुए कांपते हाथों से उसने फोन उठाया और सामने वाले शख्स की बातें सुनकर वो कुछ पल के लिए जड़ हो गयी। तभी मिष्टि की माँ 'अनिता जी' रसोई से निकली और उसे यूँ बुत बना देखकर पूछा "किसका फोन है लाडो"।

माँ की आवाज़ सुनकर मिष्टि की चेतना लौटी और वो दौड़कर उनसे लिपट गयी।

"अरे-अरे क्या हो गया आज बड़ा प्यार आ रहा है माँ पर" अनिता जी बोली।

"ओह्ह माँ आज आपकी बेटी बहुत खुश है। बतौर डिज़ाइनर अपनी पसंदीदा वस्त्र निर्माता कंपनी में काम करने का मेरा सपना सच होने जा रहा है। इंटरव्यू में मेरा चयन हो गया है" मिष्टि ने बताया।

अनिता जी अपनी बेटी की बलाएँ लेती हुई ये खुशखबरी उसके पापा 'अजय जी' को सुनाने चल पड़ी।

तभी फिर से फोन की घण्टी बजी। स्क्रीन पर नम्बर देखकर मिष्टि के चेहरे पर गुलाबी रंगत छा गयी।

फोन उसके बैचमेट अतुल का था जो उसका सबसे अच्छा दोस्त भी था, जिसे वो ना जाने कब से मन ही मन चाहती थी। हज़ारों की भीड़ में सबसे अलग था अतुल। अच्छे पैसे वाले खानदान का होकर भी सादगी से भरा जीवन जीने वाला, मन में ना कोई छल ना कपट, कविताएं लिखने का शौकीन। कक्षा में जब भी वो कोई मोहब्बत से भरी रचना सुनाता, मिष्टि मन ही मन कल्पना में खुद को उसकी नायिका के रूप में देखती और आप ही मुस्कुरा उठती। अतुल भी मिष्टि को पसंद करता था लेकिन स्वभाव से गम्भीर और बेकार की बातों से दूर रहने वाली मिष्टी से कहने से ये सोचकर डरता था कि कहीं वो उसकी दोस्ती भी ना खो दे।

लेकिन अब जब अंततः कॉलेज खत्म हो रहा था और सभी नए जीवन की ओर कदम बढ़ाने जा रहे थे तब आखिरकार अतुल ने तय किया कि वो आज मिष्टि से अपने दिल की बात कहकर रहेगा। इसलिये उसने मिष्टि को फोन किया था।

मिष्टि भी ना जाने कब से इस लम्हे की प्रतीक्षा कर रही थी। आज उसने अतुल के प्रिय नीले रंग की ड्रेस पहनी और उससे मिलने कॉलेज कैंटीन की तरफ चल पड़ी।

अपने ख्यालों में गुम मिष्टि की तन्द्रा अचानक ही कॉलेज के मशहूर बदमाशों की गैंग के नेता 'रवि' की सीटी की आवाज़ सुनकर टूटी जो ठीक उसके सामने आकर खड़ा हो गया था।

"मेरा रास्ता छोड़ो" मिष्टि ने गुस्से से कहा।

"छोड़ दूंगा रास्ता पहले मेरी अंगूठी स्वीकार करो प्रिय," कहते हुए रवि ने अंगूठी पहनाने के लिए मिष्टि का हाथ पकड़ लिया।

दूसरे हाथ से एक जोर का थप्पड़ रवि के गाल पर मारते हुए मिष्टि बोली "अपनी अंगूठी खुद पहनो" और तेजी से वहां से चली गयी।

"भाई सबके सामने आपको थप्पड़ मारकर इस लड़की ने आपकी इज्जत मिट्टी में मिला दी" रवि के चमचों ने कहा।

अपने गाल सहलाते हुए रवि ने कहा "घबरा मत, इस थप्पड़ की कीमत तो मैं इससे वसूल करके रहूंगा।"

उधर मिष्टि जब अतुल से मिली तो उसके चेहरे की खुशी गायब हो चुकी थी।

उसे यूँ उदास देखकर जब अतुल ने कारण पूछा तो मिष्टि ने सारी घटना बता दी।

अतुल ने गुस्से से कहा "उस रवि की इतनी हिम्मत, मैं अभी उसे देखता हूँ"।

रहने दो अतुल हमें बेकार के पचड़ों में नहीं पड़ना, ये कहकर मिष्टि ने उसे रोक लिया और फिर अचानक उसे बुलाने का कारण पूछा।

आखिरकार अपनी धड़कनों को किसी तरह काबू में करके अतुल ने मिष्टि को अपने दिल की बात बता दी।

मिष्टि भूल ही गयी कि वो अतुल के साथ कैंटीन में बैठी है। उसने उत्साह में भरकर अतुल को गले लगा लिया और बोली "मैं तो कब से इस दिन का इंतजार कर रही थी जब तुम कहोगे मैं ही तुम्हारा प्यार हूँ"।

"अरे-अरे बस, हम पब्लिक प्लेस में है मैडम, मुझे नहीं पता था ऊपर से धीर-गम्भीर नज़र आने वाली लड़की अंदर से इतनी बेबाक है" अतुल मिष्टि को छेड़ते हुए बोला।

आस-पास सभी लोगों को अपनी ओर घूरते हुए पाकर मिष्टि अतुल का हाथ पकड़ कर पास के पार्क चली गई। जहां दोनों घंटो भविष्य के सपने बुनते रहे।

लेकिन किसे पता था कि ये सपने सपने ही रह जाएंगे और आज के बाद वो मुस्कान जो मिष्टि कि पहचान थी उससे छीन जाएगी।

अतुल से मिलकर लौटते हुए एक बार फिर रवि ने मिष्टि का रास्ता रोका। इससे पहले की मिष्टि कुछ कहती तेजाब की धार उसके सुंदर चेहरे को जला चुकी थी। दर्द से चीखती मिष्टि बेहोश हो चुकी थी।

अस्पताल में जब मिष्टि कि आँख खुली तो उसने अपने सामने अपने माँ-पापा को देखा जो एकदम निरीह और टूटे हुए नज़र आ रहे थे। धीरे-धीरे मिष्टि की चेतना लौटी और उसे सारा घटनाक्रम याद आया। वो एकदम से चीख पड़ी। उसके आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

"तू तो हमारी बहादुर बिटिया है, ऐसे हिम्मत नहीं हारते लाडो, हम तेरे अपराधी को सज़ा दिलाकर रहेंगे" अजय जी ने कहा।

इससे क्या हमारी बिटिया की खोई हुई रौनक लौट आएगी? नहीं पड़ना अब हमें किसी लफड़े में। हम चले जायेंगे इस शहर से दूर। घबराई हुई अनिता जी बोली।

अब तक खामोश मिष्टि ने अपने आँसुओं को पोंछकर कहा "हम क्यों मुँह चुराकर चले जाएं माँ? मैंने कौन सा गुनाह किया है? और अगर इसी तरह अपराधियों से डरकर सब चुप रहने लगे तो उनकी हिम्मत बढ़ नहीं जाएगी? मैं उन्हें सज़ा जरूर दिलाऊंगी।"

मिष्टि और उसके पापा के प्रयासों से रवि को उसके किये की सज़ा मिल चुकी थी पांच साल का सश्रम कारावास। लेकिन मिष्टि का आत्मविश्वास टूट चुका था। उसने खुद को घर में कैद कर लिया था। बस वो, उसका कमरा और उसकी किताबें।

अतुल की प्यार भरी बातें उसे अक्सर याद आती थी, लेकिन हर पल याद आता था उसका रूखापन जो उसने अस्पताल में उससे मिलने पर दिखाया था। जो अतुल अपनी रचनाओं में सूरत की खूबसूरती की बजाए सीरत की सुंदरता का बखान किया करता था वही अतुल आज अपनी सबसे अच्छी दोस्त के जले हुए चेहरे को देखकर उससे मुँह फेर चुका था।

मिष्टि के सारे सपने उसके सामने टूट चुके थे, जिनके टुकड़े उसकी आत्मा में चुभकर उसे छलनी करते रहते थे।

ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि रौनक डिज़ाईन्स जिन्होंने कैम्प्स सेलेक्शन में मिष्टि को चुना था उनका फोन मिष्टि को आया।

वो जानना चाहते थे मिष्टि अपनी जॉब जॉइन करेगी या नहीं।

फोन रखने के बाद मिष्टि ने चीखते हुए खुद से कहा "नहीं, अब मेरी ज़िंदगी में किसी सपने की जगह नहीं रही। सब खत्म हो चुका है। मेरा बसंत मुरझा चुका है।"

तभी उसके अंतर्मन से आवाज़ आयी "नहीं मिष्टि, कुछ खत्म नहीं हुआ, ना तुम, ना तुम्हारे सपने। सब वैसा ही है। जरूरत है तो बस अपना हाथ थामकर फिर से उठ खड़े होने की और अपनी मंजिल की तरफ कदम बढ़ाने की। तुम्हारा बसंत तुम्हारे अंदर है। याद रखो खुद से ज्यादा कोई और हमें प्यार नहीं कर सकता। इस प्यार पर हक है तुम्हारा, उसे खुद से मत छीनो।"

आखिरकार अपने आँसुओं को पोंछकर मिष्टि कमरे से बाहर निकली और अपने माँ-पापा से कहा कि वो कल से जॉब जॉइन कर रही है।

अजय और अनिता जी उसके इस फैसले से बेहद खुश हुए और उसका हौसला बढ़ाया।

आज दफ्तर में मिष्टि का पहला दिन था। चेहरे को दुपट्टे से ढके हुए सारे रास्ते का सफर उसके लिए बेहद बोझिल था। दफ्तर में भी सभी लोग उसे अजीब तरह से घूर रहे थे। मिष्टि चुपचाप सर झुकाए हुए रिसेप्शन पर बैठी थी।

तभी रिसेप्शनिस्ट ने उसे मैनेजर के कमरे में जाने का इशारा किया।

थोड़ी घबराई सी वो मैनेजर 'मिस्टर आकाश' के कक्ष में पहुँची।

आकाश जी बेहद सख्त मिजाज के माने जाते थे। उनकी नज़रों से किसी की गलती छुप नहीं सकती थी। लेकिन काबिलियत के कद्रदान थे।

मिष्टि को घबराया हुआ देखकर उनकी अनुभवी नज़रों ने सारी वस्तुस्थिति भांप ली।

वो मिष्टि के पास आये और बोले "मैं तुम्हारी हिम्मत को सलाम करता हूँ कि तुमने बिना डरे अपने दोषी को सज़ा दिलाई। मैं जानता हूँ इस समाज की मानसिकता को अच्छी तरह से और समझ सकता हूँ कि लोगों की नज़रों का सामना करना तुम्हारे लिए अभी मुश्किल होगा। लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि जो ईमानदारी मैंने तुम्हारे काम में देखकर तुम्हारा चयन किया है, वही ईमानदारी तुम अपने प्रति भी दिखाओगी और अपने काम से अपनी पहचान बनाकर लोगों की नज़रों का जवाब दोगी।"

उनकी बातों का मिष्टि पर सकारात्मक असर हुआ और अपने आत्मविश्वास के टूटे हुए टुकड़ों को धीरे-धीरे समेटकर वो जी-जान से अपने काम में लग गयी। बहुत ही जल्द उसकी गिनती कंपनी के मुख्य डिज़ाइनर्स में होने लगी।

उसके सभी सहकर्मी भी अब उसे सम्मान की नज़रों से देखने लगे थे। मिष्टी के मददगार और नरम स्वभाव ने दफ्तर में उसकी खास जगह बना दी थी।

वक्त बीतता गया और बेस्ट डिज़ाइनर की अनगिनत ट्रॉफियां मिष्टि के ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने लगी।

काम का काफी अनुभव होने के बाद अब मिष्टि की ख्वाहिश थी कि वो अपना खुद का ब्रांड शुरू करे। उसने आकाश जी से इस संदर्भ में बात की। वो उसके इस फैसले से बहुत खुश हुए और उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए शुभकामनाएं दी।

शुरुआत में मिष्टि ने छोटे स्तर पर अपने डिज़ाइन्स के संग्रह 'बासंती' से अपनी कंपनी 'मिष्टिज इमोशन्स' की नींव रखी। जितनी मिष्टि ने कल्पना भी नहीं कि थी उससे कहीं ज्यादा सफलता मिली बासंती को। मिष्टिज इमोशन्स का कारोबार बढ़ता गया और अब उसकी गिनती नामी कम्पनियों में होने लगी।

इंटरनेशनल फैशन शो में पहली बार मिष्टिज इमोशन्स को शामिल होने का मौका मिला था। मिष्टि की टीम जोरों-शोरों से शो की तैयारी में लगी थी।

दफ्तर में अपने कक्ष में बैठी मिष्टि अंतिम तैयारियों का जायजा ले रही थी, जब उसकी रिसेप्शनिस्ट रिया ने उसे फोन पर कहा "मैम, कोई मिस्टर अतुल है आपसे मिलना चाहते है।"

"ओह्ह रिया मैंने पहले ही कहा है अभी मैं बहुत व्यस्त हूँ किसी से नहीं मिल सकती, कह दो बाद में आये।"

"मैम, वो कह रहे है आपके बहुत खास मित्र है," रिया बोली।

ये सुनकर मिष्टि ने रिया का बोला हुआ नाम याद किया और अचानक ही उसका चेहरा सख्त हो गया। उसने अतुल को बुलवा लिया।

अतुल ने मुस्कुराते हुए मिष्टि के कक्ष में प्रवेश किया।

मिष्टि ने अपनी भावनाओं को काबू करते हुए कहा "मिस्टर अतुल, क्या आपको साधारण शिष्टाचार का भी ज्ञान नहीं है कि किसी के कक्ष में जाने से पहले दरवाजे पर आज्ञा लेनी चाहिए?"

ये सुनकर अतुल का चेहरा बुझ गया। मिष्टि कि कोई प्रतिक्रिया ना देख वो वापस दरवाजे पर चला गया और मिष्टि से पूछकर वापस अंदर आया।

मिष्टि ने उसे बैठने के लिए कहा और आने का कारण पूछा।

"मिष्टि मैं बहुत मुसीबत में हूँ, बहुत उम्मीद लेकर तुम्हारे पास मदद के लिए आया हूँ। आखिर हम पुराने दोस्त है" अतुल ने कहा।

"सॉरी मिस्टर अतुल आप गलत पते पर आये है। आपके सामने मिष्टिज इमोशन्स की मालकिन बैठी है, आपकी कोई दोस्त नहीं।

काम की बात बोलिये" मिष्टि ने सपाट लहजे में कहा।

अतुल के पापा का व्यापार ठप्प हो चुका था, अतुल की बहुत कोशिशों के बाद भी डूबता हुआ व्यापार बच नहीं पाया। उसके पापा के घमंडी स्वभाव के कारण बाजार में कोई उनकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था और ना ही इतने सालों के बाद अब नौकरी के लिए कोशिश करने पर अतुल को कहीं काम मिल पा रहा था। उसकी पत्नी भी बच्चों को लेकर उसे छोड़कर जा चुकी थी। ऐसे में अतुल को मिष्टि की याद आयी। उसे यकीन था कि मिष्टि अपनी दोस्ती और प्यार के नाते उसकी मदद करेगी।

मिष्टि ने अतुल की पूरी बात सुनी। मिष्टि को खामोश देखकर अतुल ने कहा "मैं बहुत शर्मिंदा हूँ मिष्टि कि मैंने तुम्हारे दुख के वक्त तुम्हारा साथ नहीं दिया। काश मैंने हिम्मत दिखाई होती तो आज मैं अकेला नहीं होता।"

"या फिर ये क्यों नहीं कहते कि आज तुम मेरी कंपनी के हिस्सेदार होते। इस बात का ज्यादा पछतावा हो रहा है तुम्हें" मिष्टि ने अतुल की आँखों में देखते हुए कहा।

अतुल की नजरें झुक गयी। उसने कहा "मिष्टि मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"

"प्यार, हँसी आती है तुम्हारे मुँह से ये शब्द सुनकर।

तुम्हारे छोड़कर जाने के बाद नफरत सी हो गयी थी मुझे इस शब्द से, इस भावना से। लेकिन कहते है ना इंसान का दिल सच्चा हो तो प्यार जैसी पवित्र भावना उसकी ज़िन्दगी में लौट ही आती है हमेशा के लिए जैसे मेरी ज़िंदगी में आयी तुम्हारे जाने के बाद।" मिष्टि ने शून्य में देखते हुए कहा।

"कौन है वो खुशनसीब क्या मैं जान सकता हूँ अगर तुम्हें ऐतराज ना हो" अतुल ने मिष्टि की तरफ देखा।

"मेरा प्यार कोई और नहीं मैं खुद हूँ। जब मैं टूट चुकी थी, अकेली पड़ चुकी थी, जब मुझे किसी के साथ कि सबसे ज्यादा जरूरत थी तब जिसने सबसे ज्यादा मुझे संभाला, मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास लौटाया, मुझे फिर से जीना सिखाया, दिल से मुस्कुराना सिखाया वो मैं खुद हूँ।

लेकिन हाँ, इसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद जरूर कहना चाहूंगी। अगर तुमने मुझे ठोकर ना मारी होती तो मैं कभी नहीं समझ पाती की जब तक हम खुद अपने साथ है, जब तक हमारी नज़रों में खुद के लिए मोहब्बत है, तब तक हमें किसी और कि जरूरत ही नहीं।

और मैं आज बहुत खुश हूँ अपने साथ।

खैर, इन बातों को छोड़ो। इस वक्त मैं बहुत व्यस्त हूँ। इंटरनेशनल शो से वापस आने के बाद रिया तुम्हें फोन कर देगी इंटरव्यू के लिए। अगर तुम काबिल साबित हुए तो मिष्टिज इमोशन्स में तुम्हारा स्वागत होगा। अपना नंबर रिया को देते हुए जाना" इतना कहकर मिष्टि ने फ़ाइल में अपनी नजरें गड़ा ली।

अतुल चुपचाप उठकर चला गया।

उसके जाने के बाद मिष्टि उठकर खिड़की के पास चली गयी। खिड़की से आता बासंती हवा का झोंका प्यार से उसे सहला रहा था। मोहब्बत के नए अहसास ने मिष्टि के होंठो पर उसकी चिरपरिचित मुस्कान सजा दी थी।

उसे मुस्कुराता देख बसंत भी एक बार फिर से दुगुनी रंगत से खिल उठा था।


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