अतीत..एक सच (भाग-1)

अतीत..एक सच (भाग-1)

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सुनंदा को लड़के वाले देखने उसके घर आनेवाले थे। घर में चहल-पहल थी। सुनंदा बचपन से बहुत ही सुंदर, सुशील, होशियार, निर्भीक और वाकपटुता में माहिर थी। बचपन से अपने वर्ग में हमेशा प्रथम आती रही। पिताजी सरकारी शिक्षक से सेवानिवृत्त हो चुके थे और माता उसे 5 साल पहले बीमारग्रस्त होने के कारण चल बसी। सुनंदा का एक भाई भी था, सौरभ। वह अभी-अभी ग्रेजुएट हुआ था और नौकरी की तलाश में था।

आज चूँकि लड़के वाले आने वाले थे तो सुनंदा के मन में अनेक सवाल उठ रहे थे। क्या होगा ? कैसे मिलूंगी ? क्या पूछेंगे लड़के वाले..इत्यादि। तभी कार की सिटी की आवाज़ आती है। सौरभ...बेटा..!! देखो तो शायद वो लोग आ गए। गजेंद्र जी (सुनंदा के पापा) ने सौरव को आवाज़ लगाई। सौरव ने गजेंद्र को बताया कि वो लोग आ गए। 

जी, नमस्कार विनय जी (लड़के का पिता) जी, नमस्कार गजेंद्र जी। बताइए कैसे है ? जी, मैं ठीक हूँ विनय जी। ये मेरा बेटा अमन। नमस्ते अंकल। खुश रहो बेटा(गजेंद्र)

और बताइए गजेंद्र जी। सब बढ़िया है न। जी विनय जी। ईश्वर के कृपा से सब बढ़िया है। और बेटे अमन काम कैसा चल रहा है ? जी अंकल, सब बढ़िया चल रहा है।(अमन बैंक में है)

गजेंद्र जी अब हमारी बहु को तो बुलाइये। जी ज़रूर। सौरभ बेटा, जरा दीदी को बुलाना। जी पिताजी। थोड़ी देर बाद हाथ मे नाश्ते की थाली लिए सुनंदा आती है। सबको चाय दो बेटी, सुनंदा चाय देती है और फिर विनय जी के पैर छू आशीर्वाद लेती है। फिर सभी बात करते है। 

फिर अचानक सुनंदा घूंघट से अमन को देखकर तेजी से अपने रूम के अंदर चली जाती है। सभी हैरान और हतप्रभ रह जाते है की आखिर ऐसे क्यूँ चली गई ।


आखिर सुनंदा बिन बोले घर में क्यूँ गई ?

अमन को देखते ही उसे क्या हो गया?

आख़िर अमन के बारे में क्या जानती थी ?


इन सब प्रश्नों के उत्तर अगले लेख में....



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